असली प्रकाश क्या है? || आचार्य प्रशांत, कबीर साहब पर (2024)
Автор: शास्त्रज्ञान
Загружено: 2024-11-17
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वीडियो जानकारी: संत सरिता, 28.01.2024, ग्रेटर नॉएडा
Title : Jeevan Mein Majbooti Kaise Laayen? Asli Seekh || Acharya Prashant
📋 Video Chapters:
0:00 - Intro
0:04 - रोम रोम जाके परकाशा, ताको निर्मल ज्ञाना : आध्यात्मिक प्रकाश ही ज्ञान है
14:28 - देह को जान लेना ही झूठे ज्ञान से मुक्ति है
25:39 - ब्रह्माण्ड क्या है?
32:08 - अधूरा ज्ञान, अज्ञान से भी अधिक खतरनाक क्यों?
45:40 - निर्मल ज्ञान बनाम मलिन ज्ञान
54:18 - शिकारी और शिकार दोनों हम
59:11 - अपनी नीयत को कैसे पहचानें?
1:15:22 - छोटी और ऊँची कामना के बीच अंतर
1:25:26 - किन बातों से ज़िंदगी नर्क है?
1:33:57 - अपने ऊपर कड़ी नज़र रखनी है
1:38:51 - हम सहारा क्यों ढूँढ़ते हैं?
1:48:24 - मज़बूती कैसे लाएँ जीवन में?
1:55:45 - भजन
2:00:54 - समापन
विवरण:
इस वीडियो में आचार्य प्रशांत जी ने उपनिषदों के ज्ञान और आत्मज्ञान की गहराई पर चर्चा की है। उन्होंने बताया कि वास्तविक ज्ञान केवल बाहरी अनुभवों से नहीं, बल्कि अपने भीतर के अंधकार को समझने से आता है। आचार्य जी ने यह स्पष्ट किया कि हमारे भीतर जो अहंकार और वृत्तियाँ हैं, वे ही हमारे ज्ञान के मार्ग में बाधा डालती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि बाहरी दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है, वह सब हमारे भीतर की वृत्तियों और संस्कारों से प्रभावित होता है। आचार्य जी ने उदाहरणों के माध्यम से समझाया कि कैसे हम अपने तर्कों और विचारों के जाल में फंस जाते हैं और अपने ही झूठ को सच मान लेते हैं।
आचार्य जी ने यह भी बताया कि आत्मज्ञान का अर्थ है अपने भीतर के अंधकार को पहचानना और उसे प्रकाश में लाना। उन्होंने कहा कि जब हम अपने भीतर के अंधकार को समझ लेते हैं, तब हम वास्तविक ज्ञान की ओर बढ़ते हैं।
प्रसंग:
~ ज्ञानी कौन होता है?
~ प्रकाश का वास्तविक अर्थ क्या है?
~ मूल अंधेरा कौन सा होता है?
~ वह कौन सा प्रकाश है जो मन का अंधेरा मिटाता है?
~ क्या है अहमवृत्ति?
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रैन दिवस पिय संग रहत हैं, मैं पापिन नहिं जाना ॥
मात-पिता घर जन्म बीतिया, आया गवन नगिचाना।
आजै मिलो पिया अपने से, करिहो कौन बहाना ॥
रैन दिवस पिय संग रहत हैं, मैं पापिन नहिं जाना ॥
मानुष जनम तो बिरथा खोये, राम नाम नहिं जाना।
हे सखि मेरो तन मन काँपै, सोई शब्द सुनि काना ॥
रैन दिवस पिय संग रहत हैं, मैं पापिन नहिं जाना ॥
रोम-रोम जाके परकाशा, ताको निर्मल ज्ञाना।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, करो स्थिर मन ध्याना ॥
~ संत कबीर
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संगीत: मिलिंद दाते
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