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एक मंदिर जहाँ पूजी जाती हैं दो देवियाँ । Kot Bhramari Temple Bageshwar । Pagdandi.

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Автор: Pagdandi

Загружено: 2023-09-18

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कोट भ्रामरी मंदिर बागेश्वर
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बाबा बागनाथ की नगरी बागेश्वर, और बागेश्वर जनपद का सुप्रसिद्ध बैजनाथ धाम। गरूड़ क्षेत्र में स्थित बैजनाथ धाम से ग्वालदम वाली सड़क पर 3 किलोमीटर आगे चलें तो आता है माता का एक भव्य दरबार, ये दरबार माता भ्रामरी का है, साथ ही यहाँ पूजी जाती है माँ नंदा। डंगोली क्षेत्र में स्थित इस दरबार को 'कोट भ्रामरी मंदिर' के रूप में जाना जाता है, जहां पर माँ भ्रामरी और नंदा की पूजा एक साथ की जाती है।
इतिहास के कुछ पन्ने कहते हैं कि माँ नंदा चंद राजाओं की कुलदेवी हुई, वही माँ भ्रामरी को कत्यूरी राजाओं ने अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा। नंदा राजजात यात्रा का एक अहम पड़ाव यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना हुआ है। जहां पर साल में दो बार भव्य मेलों का आयोजन होता है। पहला मेला चैत्र मास की अष्टमी को लगता है जिसे कोट भ्रामरी मेले के रूप में जाना जाता है, यह मेला माता भ्रामरी को समर्पित होता है। वही मंदिर में दूसरा मेला भादौ मास के अष्टमी को आयोजित होता है, जो अन्य शहरों में आयोजित होने वाले मेलों के तरह ही नंदाष्टमी के रूप में जाना जाता है जिसमें माँ भ्रामरी के साथ ही मुख्य रूप से नंदा माता की पूजा की जाती है।
बागेश्वर का गरुड़ क्षेत्र कत्यूर घाटी के नाम से भी जाना जाता है। और कत्यूर घाटी के वासिंदे माँ भ्रामरी को अपनी कुलदेवी मानते हैं। माता भ्रामरी के दरबार में आयोजित होने वाले साल के दो मेलों के साथ ही मुख्य आकर्षण का केंद्र होती है चतुर्दशी की होली। जब क्षेत्र के करीब 150 से अधिक गाँव के लोग माता कोट भ्रामरी के दरबार में एक साथ हाजिरी देने पहुँचते हैं।
इतिहासकार कहते हैं कि कुमाऊँ में कत्यूरी राजाओं का लंबा शासन रहा,और कत्यूरी राजाओं की राजधानी रही कत्यूर घाटी यानी बागेश्वर का गरुड़ क्षेत्र। कत्यूरी राजाओं ने डंगोली नामक स्थान पर एक मंदिर की स्थापना की जिसे नाम दिया गया 'कोट की माईं'। कोट यानी किला, ये क्षेत्र कत्यूरियों का किला था, यही कारण है कि यहाँ स्थापित की गई देवी के धाम को किले की माईं या कोट की माईं का नाम दिया गया। मंदिर में माता की काली मूर्ति स्थापित की गई है, जिसे माँ भ्रामरी के रूप में पूजा जाता है।

क्या है माँ भ्रामरी का इतिहास-
कहते हैं कि अरुणाक्ष्य नामक राक्षस ने ब्रह्मा जी से वरदान पा लिया था कि ना ही उसे कोई दो पैर वाला प्राणी मार सकता है और ना ही चार पैर वाला। ब्रह्मा जी से ये वरदान पाने के बाद एक दृष्टि से अरुणाक्ष्य अमर हो चुका था, जिसके बाद उसने लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। असहाय लोग शिवजी की शरण में पहुँचे लेकिन ब्रह्मा जी के वरदान के कारण शिवजी भी लोगों की सहायता नहीं कर सकते थे पर शिवजी ने लोगों से कहा कि वो माँ जगदंबा भवानी की स्तुति करें वो उनकी मदद कर सकती हैं। कहा जाता है कि जिसके बाद मां जगदम्बा ने भवर रूप धारण कर अरुणाक्ष्य का वध किया। भवर के 6 पाँव होते हैं जिस कारण ब्रह्मा जी का वरदान भी जीवित रहा और अरुणाक्ष्य नामक राक्षस से प्रजा मुक्त भी हो गई। जिस स्थान पर माँ जगदम्बा ने भवर रूप धारण किया था वो स्थान आज बदल चुका है, आज वहाँ पर एक भव्य मंदिर है और साथ ही लोगों की अटूट आस्था।

कोट भ्रामरी मंदिर में कैसे आई माँ नंदा?

कोट भ्रामरी में नंदा माँ की स्थापना की कहानी कुमाऊँ में कत्यूरी शासन के पतन और चंद राजाओं के साशन के शुरुआती दौर से जुड़ी हुई है। चंद राजाओं ने कत्यूरी राजाओं को हराकर कुमाऊँ को अपने अधिपत्य में ले लिया। चंद शासन शुरू हुआ तो शुरू हुआ चंद राजाओं का रीतिरिवाज। जहाँ-जहाँ राजाओं के गढ़ बने वहाँ-वहाँ उन्होंने अपनी कुलदेवी माँ नंदा को स्थापना किया। बागेश्वर के गरुड़ क्षेत्र में माँ कोट भ्रामरी मंदिर के समीप झालामाली गाँव में चंद राजाओं ने नंदा माता की स्थापना कर कत्यूर घाटी में नंदा के भक्तों की नीव रखी। वक़्त के साथ इतिहास में बदलाव किया गया। माँ नंदा और मां भ्रामरी की हामी के बाद झालामाली गाँव से माता नंदा की मूर्ति को माँ कोट भ्रामरी मंदिर में स्थापित कर दिया गया। अब माँ भ्रामरी और माता नंदा दोनों की पूजा एक साथ कोट भ्रामरी मन्दिर में की जारी है और मंदिर की गर्भगृह में माँ जगदम्बा की स्वरूप दोनों देवियाँ अपना आसन लगाए हुई है।
माता कोट भ्रामरी का धाम अपने साथ आस्था ही नहीं बल्कि इतिहास का भी एक बड़ा अध्याय समेटे हुए है, हालाँकि उत्तराखंड या फिर कुमाऊँ के इतिहास में माँ भ्रामरी का धाम अपनी वो जगह नहीं बना पाया जो राज्य के अन्य प्रसिद्ध मठ-मंदिरों ने बनाया। किंतु आस्था के साथ इतिहास को भी जानने की रुचि रखते वाले लोग आज भी अक्सर माँ कोट भ्रामरी के धाम की ओर आकर्षित होते हैं।

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