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श्रीमद्भागवत पुराण। स्कंध 10। अध्याय 38। अक्रूर जी की ब्रज यात्रा।

Автор: श्रीमद्भागवत महापुराण

Загружено: 2025-10-28

Просмотров: 16

Описание: श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध, अध्याय 38 में अक्रूर जी की ब्रज यात्रा का अत्यंत भावपूर्ण और अद्भुत वर्णन मिलता है। यह प्रसंग भगवान श्रीकृष्ण के ब्रज से मथुरा प्रस्थान की भूमिका रचता है। नीचे इस अध्याय का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत है —


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🌸 कथा का प्रारंभ : कंस का आदेश

मथुरा में अत्याचारी राजा कंस अपने मृत्यु-भय से व्याकुल रहता था। उसे ज्ञात था कि देवकी का आठवाँ पुत्र, श्रीकृष्ण, ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। उसने यह भी सुन लिया कि नंदबाबा के घर में वही बालक पल रहा है।
तब कंस ने अपने अत्यंत भक्त और धर्मनिष्ठ मंत्री अक्रूर जी को बुलाया। वह जानता था कि अक्रूर यदुवंशी हैं और वसुदेव जी के प्रति श्रद्धा रखते हैं, फिर भी उसने उन्हें अपनी योजना के लिए उपयोग करना चाहा।

कंस ने अक्रूर से कहा —

“अक्रूर! तुम बड़े धर्मज्ञ और मेरे हितैषी हो। तुम नंदग्राम जाओ, वहाँ नंद के पुत्र कृष्ण और बलराम हैं। उन्हें मेरे रथ पर बैठाकर यहाँ मथुरा ले आओ। मैं उनसे कुश्ती प्रतियोगिता में भयंकर पहलवानों को भिड़वाऊँगा।”



कंस के हृदय में कपट और भय था, परंतु अक्रूर के मन में यह सुनकर आनंद भर गया — क्योंकि उन्हें श्रीकृष्ण और बलराम के दर्शन का अवसर मिलने वाला था।


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🌿 अक्रूर जी की ब्रज यात्रा

अक्रूर जी अपने स्वर्ण रथ पर सवार होकर ब्रज की ओर चले। उनके मन में केवल एक ही विचार था — “आज मुझे भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन होंगे!”
रास्ते भर वे प्रेम और भक्ति में डूबे हुए श्रीकृष्ण की लीलाओं, रूप, और गुणों का चिंतन करते रहे। वे सोचते थे —


“वे ही परमेश्वर हैं, जिन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, और रुद्र का रूप धारण किया है। आज मैं उन सच्चिदानंद भगवान के चरणों का स्पर्श करूंगा।”




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🌸 ब्रज की पावन भूमि का दर्शन

जब अक्रूर जी नंदग्राम के निकट पहुँचे, तो उन्होंने देखा —

हर ओर हरी-भरी वनभूमि है,

गौओं के झुंड हैं,

ग्वालबाल खेलते हुए भगवान का नाम गा रहे हैं,

और व्रज की गलियाँ आनंद और प्रेम से भरी हैं।


अक्रूर जी के मन में भाव उमड़ पड़े। उन्होंने सोचा —

“यह वही भूमि है जहाँ स्वयं श्रीहरि अपने चरणों से विचरते हैं। यह भूमि तीनों लोकों में दुर्लभ है।”




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🌺 श्रीकृष्ण और बलराम के दर्शन

नंदग्राम पहुँचकर अक्रूर जी ने देखा कि श्रीकृष्ण और बलराम घर के द्वार पर खड़े हैं। उनके मुखमंडल पर तेज और सौंदर्य झलक रहा था।
अक्रूर जी तुरंत रथ से उतरे, प्रणाम किया और उनके चरणों में गिर पड़े। श्रीकृष्ण ने प्रेमपूर्वक उन्हें उठाया, गले लगाया और नंदबाबा के घर में उनका सत्कार किया।

नंदबाबा और यशोदा जी ने भी अक्रूर जी का बड़े स्नेह से स्वागत किया। उन्होंने पूछा —


“मथुरा में सब कुशल है न? हमारे भाई वसुदेव और देवकी जी कैसे हैं?”



अक्रूर जी कुछ समय मौन रहे — क्योंकि वे जानते थे कि वसुदेव और देवकी जेल में कष्ट भोग रहे हैं। फिर उन्होंने मन ही मन प्रार्थना की कि जल्द ही यह लीला पूर्ण हो।


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🌼 ब्रज में रात का विश्राम

अक्रूर जी उस रात्रि नंदग्राम में ठहरे। उनके हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति अगाध प्रेम था। वे जानते थे कि भगवान अब ब्रज को छोड़कर मथुरा जाएंगे, जिससे व्रजवासियों का हृदय विदीर्ण हो जाएगा।

रात भर वे भगवान के अवतार रहस्य और उनकी लीलाओं का मनन करते रहे।


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🌞 अगले दिन मथुरा की ओर प्रस्थान

प्रातःकाल श्रीकृष्ण और बलराम अक्रूर जी के रथ पर सवार हुए। ग्वालबाल और गोपिकाएँ उन्हें रोकने लगीं —

“कृष्ण! मत जाओ, मथुरा बहुत दूर है! हम तुम्हारे बिना कैसे रहेंगे?”



व्रजवासियों की आँखों से आँसू बह रहे थे। स्वयं यशोदा माता और नंदबाबा भी व्याकुल थे।
परंतु भगवान की लीला ऐसी थी कि उन्हें मथुरा जाना ही था, कंस वध और धर्मस्थापना के लिए।


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🌊 यमुना तट पर अक्रूर का दर्शन अनुभव

रास्ते में जब वे यमुना तट पर पहुँचे, तब अक्रूर जी ने स्नान करने के लिए यमुना में प्रवेश किया। वहाँ उन्हें अद्भुत दर्शन हुए —
उन्होंने जल में देखा कि श्रीकृष्ण ही विष्णु रूप में शेषनाग पर विराजमान हैं, और पास में बलराम शेषावतार के रूप में हैं।
अक्रूर जी विस्मित हो उठे, उनकी आँखों से अश्रु बहने लगे। उन्होंने भावविभोर होकर भगवान की स्तुति की।


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🌹 अध्याय का सारांश

इस अध्याय में अक्रूर जी की भक्ति, उनकी श्रद्धा, और श्रीकृष्ण के ब्रज से मथुरा गमन की भूमिका का अत्यंत मार्मिक चित्रण मिलता है।
यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि सच्चा भक्त सदैव भगवान के दर्शन की लालसा रखता है, और जो उन्हें समर्पण भाव से स्मरण करता है, वह अंततः भगवान की कृपा का अधिकारी बनता है।


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श्रीमद्भागवत पुराण। स्कंध 10। अध्याय 38। अक्रूर जी की ब्रज यात्रा।

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