मेरे बेटे ने कहा—‘माँ, तुम बस घर संभालो’… लेकिन जिस दिन मैं उड़ान भरकर चली गई, उसकी दुनिया हिल गई
Загружено: 2025-11-21
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एक माँ को घर की चौकीदार समझने वाले बेटे को उस दिन सच पता चला…
जब उसकी 72-साल की माँ चुपचाप अकेले विदेश उड़ गई।
इस कहानी में एक ऐसी दादी की यात्रा है जिसे परिवार ने पीछे छोड़ दिया।
उसे कहा गया—
“माँ, आप बस घर संभालिए… आपकी उम्र उड़ने की नहीं।”
लेकिन उस एक सफ़र ने सब कुछ बदल दिया—
उसकी सोच, उसका आत्मविश्वास, और उसकी जगह इस परिवार में।
यह कहानी सिर्फ़ यात्रा नहीं है,
यह एक औरत की खुद को दोबारा पहचानने की लड़ाई है।
वो उम्र, जो दुनिया “रुकने की” मानती है…
वो असल में जीने की उम्र होती है।
अगर आपने भी कभी महसूस किया है कि आपको कम करके आँका गया,
आपके हक़ को उम्र या रिश्तों के नाम पर छोटा किया गया…
तो यह कहानी आपके दिल को छू जाएगी।
👇 बताइए—आप किस उम्र में अपनी पहली आज़ादी लेना चाहते हैं?
👇 क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है? कॉमेंट में ज़रूर लिखें।
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