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अन्नकुटपदबडडेनकोआगेंदेगिरिधरश्रीगोवर्धनपूजनआवतस्वरश्री विठ्ठलदासबापोदराराग सारंगतालधमारहवेलीसंगीत

Автор: Manhar Bapodara

Загружено: 2025-10-20

Просмотров: 319

Описание: अन्नकुट का पद बडडेनको आगें दे गिरिधर श्रीगोवर्धन पूजन आवत स्वर श्री विठ्ठलदास बापोदरा राग सारंग ताल धमार हवेली संगीत पुष्टी भक्ति सरल भक्ति संगीत पुष्टि यमुने भजो
@manharbapodara9902
बडडेन को आगेंदे गिरिधर श्री गोवर्धन पूजन आवत ॥
मानसी गंगा जल न्हवाय के पाछे दूध धोरी को नावत ।।१।।
बहोरि पखार अरगजा चरचत धूप दीप बहु भोग धरावत ।।
दे बीरा आरती करत है ब्रज भामिनी मिल मंगल गावत ।।२।।
टेर ग्वाल भाजन भर देंके पीठ थाप सिरपेच बंधावत ।।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर अब यह ब्रज युग युग राज करो मन भावत ।।३।।
यह पद श्री गोवर्धन पूजा के दिव्य दृश्य का वर्णन करता है — जब ब्रज में श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत की पूजा के लिए सुसज्जित होकर पधारते हैं। हर पंक्ति में लीला और भक्तिभाव झलकता है। आइए इसका पंक्तिवार अर्थ और भावार्थ विस्तार से समझें —
पद:
"बडडेन को आगेंदे गिरिधर श्री गोवर्धन पूजन आवत ॥"
अर्थ:
गिरिधर (श्रीकृष्ण) बड़े आदर और उत्साह के साथ गोवर्धन पूजन के लिए आ रहे हैं।
भाव:
यहाँ भगवान के आगमन का उल्लास दिखाया गया है। संपूर्ण ब्रजमंडल गोवर्धन पूजा के अवसर पर आनन्दित है। स्वयं श्रीकृष्ण, ब्रज बालकों और गोपों के साथ सज-धजकर पर्वत पूजन हेतु जा रहे हैं।
पद:
"मानसी गंगा जल न्हवाय के पाछे दूध धोरी को नावत ।।१।।"
अर्थ:
श्रीकृष्ण ने पहले मानसी-गंगा (यमुना के समान पवित्र जल) में स्नान किया और फिर गौओं का दूध लेकर गोवर्धन की पूजा करने जा रहे हैं।
भाव:
पूजा से पूर्व भगवान ने शुद्धता का विधान पूरा किया — स्नान कर, शुद्ध वस्त्र पहनकर, अपने प्रिय गोधन के दूध से पूजन करने का निश्चय किया। यहाँ भक्तिभाव की गहराई है — भगवान स्वयं अपने भक्तों के समान सरल भाव से पूजा कर रहे हैं।
पद:
"बहोरि पखार अरगजा चरचत धूप दीप बहु भोग धरावत ।।"
अर्थ:
फिर (गोवर्धन पर्वत को) स्नान कराया गया, सुगंधित चंदन और अर्घ्य चढ़ाया गया, धूप, दीप और अनेकों भोग अर्पित किए गए।
भाव:
पूजा का विधिवत वर्णन है — यह दर्शाता है कि गोवर्धन पूजन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि साक्षात् ईश्वर के स्वरूप पर्वत का पूजन है। श्रद्धा, सुगंध, प्रकाश और प्रेम के भोग से यह आराधना पूर्ण होती है।
पद:
"दे बीरा आरती करत है ब्रज भामिनी मिल मंगल गावत ।।२।।"
अर्थ:
ब्रज की सुन्दर गोपियाँ आरती उतार रही हैं और मंगल गीत गा रही हैं।
भाव:
पूरा ब्रज इस पूजा में सम्मिलित है। ब्रज की नारियाँ अपने प्रेम और भक्ति से आरती उतारती हैं। मंगल गीतों की ध्वनि से वातावरण रसपूर्ण और आनन्दमय हो उठा है।
पद:
"टेर ग्वाल भाजन भर देंके पीठ थाप सिरपेच बंधावत ।।"
अर्थ:
ग्वालबाल (गोप) कृष्ण को स्नेहपूर्वक पुकार रहे हैं, भोजन से थाल भरकर दे रहे हैं, और उनके सिर पर मुकुट (सिरपेच) बाँध रहे हैं।
भाव:
यह दृश्य कृष्ण के सखा-भाव का प्रतीक है। मित्रभाव से ग्वालबाल उन्हें सजाते हैं, खिलाते हैं, प्रेम से सेवा करते हैं — यह सहज, स्वाभाविक, हर्ष से भरा भाव है।
पद:
"चतुर्भुज प्रभु गिरिधर अब यह ब्रज युग युग राज करो मन भावत ।।३।।"
अर्थ:
हे चतुर्भुज रूपधारी प्रभु गिरिधर! अब आप सदा-सर्वदा इस ब्रज में राज्य करें — यही हमारा मनोवांछित भाव है।
भाव:
यह समर्पण और प्रेम का भाव है। ब्रजवासी चाहते हैं कि श्रीकृष्ण सदा उनके हृदय और ब्रजभूमि के राजा बने रहें। यह व्रज की अखंड निष्ठा और प्रेम का प्रतीक है — “गोवर्धन पूजन” का अन्त इस प्रेमपूर्ण निवेदन से होता है।
सार भावार्थ:
यह पद गोवर्धन पूजन का भव्य, भक्तिपूर्ण चित्रण है —
ब्रज में श्रीकृष्ण स्वयं पूजा करते हैं, ब्रजवासी और गोपियाँ भक्ति में रमे हैं। धूप, दीप, भोग, आरती, मंगल — सब एक भाव में समाहित हैं:
“गिरिधर ही हमारे स्वामी हैं, वही ब्रज के युग-युग के राजा हैं।”
PUSHTI MARGIY BHAKTI SARAL HAVELI SANGEET
ANNKUTA KA PAD
RAGA :SARANG TAL :धमार
SING BY SHRI VITHALDAS VALLABHDAS BAPODARA
WRITTEN BY SHREE CHATRABHUJ DAS
SANKALAN AND PUBLISH BY MANHARLAL VITHALDAS BAPODARA MOBILE NO.9824635506
PLEASE INFORM TO YOUR INTERESTED VAISHNAVAS FOR SUPPORT OF THIS TYPE OF BHAVANATMAK BHAKTI PUSHTI SARAL HAVELI SANGEET
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अन्नकुटपदबडडेनकोआगेंदेगिरिधरश्रीगोवर्धनपूजनआवतस्वरश्री विठ्ठलदासबापोदराराग सारंगतालधमारहवेलीसंगीत

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