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गोपाष्टमीपदआगेगायपाछेगायइतगायउतगायस्वरश्रीविठ्ठलदासबापोदरारागपूर्वी तालचौतालहवेलीसंगीतपुष्टीभक्ति

Автор: Manhar Bapodara

Загружено: 2025-10-30

Просмотров: 358

Описание: गोपाष्टमीपद आगे गाय पाछे गाय इत गाय उत गाय स्वर श्री विठ्ठलदास बापोदरा रागपूर्वी ताल चौताल हवेली संगीत पुष्टी भक्ति सरल भक्ति संगीत
पुष्टि यमुने भजो @manharbapodara9902
आगे गाय पाछे गाय इत गाय उत गाय गोविंद को गायनमें बसवोई भावे ।। . .
गायन के संग धाये गायनमें सचुपावे गायनके खुररज लेअंग लपटाये ।।१।।
गायनसो ब्रज छायो बैकुंठ बिसरायो गायन के हेत गिरि कर ले उठावे ।।
छीतस्वामी गिरिधारी विठ्ठलेश वपुधारी ग्वारियाको भेषधरें गायनमें आवे ।।२।।

यह पद गोवर्धनधारी श्रीकृष्ण और उनकी गौ-प्रेम लीला का अत्यंत स्नेहपूर्ण, माधुर्यपूर्ण वर्णन है। भाषा में सहज लोक भाव है और भावों में अपार वात्सल्य। पंक्ति अनुसार अर्थ और भाव
पंक्ति अनुसार अर्थ व भावार्थ
आगे गाय पाछे गाय इत गाय उत गाय गोविंद को गायन में बसवोई भावे
अर्थ: आगे गाय, पीछे गाय, इधर गाय, उधर गाय। श्रीगोविंद को तो गायों में ही बसना प्रिय है।
भाव: कृष्ण का हृदय गायों में रम गया है। ब्रज का हर दिशा दुधिया प्रेम से भरी हुई है। मानो स्वयं प्रभु गायों के हृदय में विराज रहे हों और वे ब्रज को जीवंत बना रही हों।

गायन के संग धाये गायनमें सचुपावे गायनके खुररज ले अंग लपटाये।।१।।
अर्थ: वे गायों के साथ दौड़ते हैं, उन्हीं में छुप जाते हैं, और उनके खुर की धूल अपने अंग पर लगाते हैं।
भाव: कृष्ण को राजसी वैभव नहीं, बल्कि गायों की धूल और संग ही प्रिय है। धूल भी उनके लिए अलंकार है। लीला ममता और सखा भाव से सराबोर।

गायन सो ब्रज छायो बैकुंठ बिसरायो गायन के हेत गिरि कर ले उठावे।।

अर्थ: गायों के कारण ब्रज शोभित है। बैकुंठ भी भूल सा गया। इन्हीं गायों के लिए उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया।
भाव: ब्रजधाम गायों की कृपा से स्वर्ग से बढ़कर हो गया। कृष्ण गो-सेवा और गो-रक्षा के लिए पर्वत तक उठा लेते हैं। उनके लिए गायें पूज्य, प्राण समान।
छी तस्वामी गिरिधारी विठ्ठलेश वपुधारी ग्वारियाको भेष धरें गायन में आवे।।२।।
अर्थ: छी तस्वामी ने गाया है की वही चिदानंद स्वरूप परमस्वामी, गोवर्धनधारी, विठ्ठलेश भगवान, ग्वालों का रूप धारण कर गायों में आ जाते हैं।
भाव: सर्वेश्वर होते हुए भी कृष्ण लल्ला-ग्वाला बनना पसंद करते हैं। परमात्मा का यह सरलतम, मधुरतम रूप भक्तजन के लिए सबसे अधिक सुलभ है। भक्ति का सार:
ईश्वर वहीं आते हैं जहाँ प्रेम, सादगी और सेवा हो।
सार भाव
यह पद बताता है कि
• कृष्ण के केंद्र में गायें हैं • ब्रज की शोभा का मूल गो-रक्षा, गो-प्रेम है
• ईश्वर वैभव देकर नहीं, स्नेह लेकर आते हैं• गोविंद की लीला में गाय ही ब्रह्म प्रेम की मूर्ति हैं
श्रीकृष्ण की गाय-प्रेम लीला हमें संदेश देती है:जहाँ करुणा है, वहीं कृष्ण हैं।
जहाँ सेवा है, वहीं गोवर्धनधारी हैं।
PUSHTI MARGIY BHAKTI SARAL HAVELI SANGEET
GOPASHTAMIKA KA PAD GOCHARAN KA PAD
RAGA :PURAVI TAL :CHAUTAAL
SING BY SHRI VITHALDAS VALLABHDAS BAPODARA
WRITTEN BY SHREE CHHIT SWAMI
SANKALAN AND PUBLISH BY MANHARLAL VITHALDAS BAPODARA MOBILE NO.9824635506
PLEASE INFORM TO YOUR INTERESTED VAISHNAVAS FOR SUPPORT OF THIS TYPE OF BHAVANATMAK BHAKTI PUSHTI SARAL HAVELI SANGEET
इस प्रकार के भावात्मक पुष्टिमार्गीय हवेली संगीत में आपका योगदान हमारे लिए बहुत जरुरी है | हमारी यह विनंती है कि आप शेर (SHARE)कीजिए और like और subscribe करनेके लिए उत्साहित कीजिए |
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गोपाष्टमीपदआगेगायपाछेगायइतगायउतगायस्वरश्रीविठ्ठलदासबापोदरारागपूर्वी  तालचौतालहवेलीसंगीतपुष्टीभक्ति

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