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बधाईबधाई कृपानिधानश्रीकल्याणराय स्वरश्रीविठ्ठलदासबापोदराऔरबीनामहेतारागमिश्र षडजतालतीनतालपुष्टीभक्ति

Автор: Manhar Bapodara

Загружено: 2025-11-11

Просмотров: 252

Описание: बधाई बधाई कृपा निधान श्री कल्याण राय स्वर श्री विठ्ठलदास बापोदरा और बीना महेता राग मिश्र षडज कौशिक धैवत ताल तीनताल पुष्टी भक्ति सरल भक्ति संगीत पुष्टि यमुने भजो
@manharbapodara9902
पद का संक्षेप सार
यह पद कल्याणरायजी श्रीनाथजी के ही रूप) की मधुर किशोर मूर्ति का “स्वरूप-स्मरण” है।
भक्त (सेवक) अपने नयन-मन से प्रभु की सजीव मूर्ति का “दर्शन-भाव” करता है —
जैसे सेवा में खड़े होकर ठाकुरजी को निहार रहा हो।
यह पद “माधुर्य प्रधान साकार दर्शन-भावना” का अनुपम उदाहरण है।
भावानुसार रसविभाजन
१) कृपानिधि श्री कल्याणराय — दीनभाव और कृपाभाव
भक्त पहले ही शब्द में “कृपानिधि” कहकर अपने स्वस्वरूप का अनुभव करता है —
“मैं दीन, अधम, निर्बल हूँ; और आप कृपा के सागर।”
यहाँ दास्यभाव से प्रवेश होता है।
यही भाव “सेवा का द्वार” है — बिना दीनभाव के सेवा सुलभ नहीं।
२) मधुर मधुर मधुरपति सुंदर — माधुर्य भाव का उदय
त्रिवार “मधुर” कहकर भक्त अपनी वाणी से माधुर्य रस का अनुभव गूंजा देता है।
यह कोई शब्द नहीं — यह रस की लहर है।
यहाँ सेवक अपने इष्टदेव के मुखारविंद, नेत्र, नासिका आदि की स्मरण-सेवा करता है। सेवा दृष्टि में अर्थ:
सेवक “मंगल आरती” या “शृंगार के पश्चात दर्शन” के समय यह पद गाता है,
जहाँ ठाकुरजी का मुख-सौंदर्य प्रकट है।
३) मधुरकृति शोभित, हिय में बसी जाय — साक्षात्कार भाव
यहाँ “अंतरदृष्टि में दर्शन” है —
भक्त कहता है: प्रभु का रूप बाहर नहीं, मेरे हृदय में बस गया है।
यह अभिन्नता-भाव (स्वरूपानुभूति) का संकेत है।
पुष्टिभाव:
जब कृपा से प्रभु अपने स्वरूप का साक्षात्कार कराते हैं, तब भक्त के हृदय में “अनन्यता” का भाव जागृत होता है।
४) कुवलयदल श्यामल वपु सोहे — श्याम माधुर्य दर्शन
यहाँ भक्त नीलवर्ण के श्याम शरीर का ध्यान करता है —
जैसे नील कमल की शीतल छाया में प्रभु झलकते हों।
सेवा स्थिति:
यह प्रातःकाल का शृंगार-दर्शन हो सकता है — जब ठाकुरजी नए वस्त्र, नवीन आलंकार से सजे हों।
भक्त का नेत्र और मन दोनों प्रभु के रंग-रूप में लीन हो जाते हैं।
५) कसुंबल पाग, मोरचंद्रिका... नखशिख सुंदर — अलंकार माधुर्य
अब भक्त शृंगार-दर्शन के प्रत्येक अंग का रसिक ध्यान करता है —
पाग, सिरपेच, कलगी, मोती की लटकन —
यह सब केवल सौंदर्य नहीं, यह सेवा का अंग-परिधान भाव है।
पुष्टिमार्ग में भावार्थ:
भक्त जब ठाकुरजी की सेवा में वस्त्राभूषण अर्पित करता है,
तो यह उसके भावसहित अर्पण का रूप है —
प्रत्येक अलंकार प्रेम से युक्त है, जैसे “कृपा-भेट” हो।
६) पितवर त्रिवलि, तिलक, द्रगनसों बुलाय — सौंदर्य और सजीवता
यहाँ प्रभु का रूप स्थिर नहीं, सजीव है।
उनकी आँखें “कुछ कहती हैं” —
यानी यह रसिक संवाद का क्षण है,
जहाँ ठाकुरजी और भक्त के बीच मौन प्रेम-वार्ता होती है।
रसदृष्टि:
यह माधुर्य रस का उच्च स्तर है —
भक्त के लिए ठाकुरजी अब प्रतिमा नहीं, जीवंत प्रियतम हैं।
७) चतुर्भुज चहुँ आयुधधारी — लीला भाव
यहाँ प्रभु के “अंशरूप” का स्मरण है —
संपूर्ण ऐश्वर्य सहित फिर भी ब्रजभाव में खेलते हुए।
पुष्टिमार्ग में दृष्टि:
भक्त जानता है कि प्रभु सर्वशक्तिमान हैं,
परंतु वह केवल उनके लीलामाधुर्य को ही चाहता है,
क्योंकि वहीं “पुष्टि-रस” प्रकट होता है।
८) मंद मंद मुसकाय सांवरो — मुरली माधुर्य
अब रस अपनी चरम स्थिति में पहुँचता है।
प्रभु की मृदुल मुस्कान और अधर पर मुरली का स्पर्श —
यह मुरली-भाव का दर्शन है, जो गोपिकाभाव का प्रतीक है।
सेवा-रस में अर्थ:
यह संध्या या निकुंज लीला ध्यान का भाव है
जहाँ ठाकुरजी मंद मुस्कान सहित भक्त के हृदय को मोह लेते हैं।
९) ईनके शरण रहो सब आय — परिपूर्ण शरणागति
अंत में भक्त सबको संदेश देता है —
“इनके सिवा कोई आश्रय नहीं।”
पुष्टिमार्गीय मूलभाव:
यहाँ “शरण” शब्द पूर्ण समर्पण का पर्याय है।
जब जीव सब अहंकार त्यागकर केवल कृपा पर आश्रित होता है,
तभी वह “पुष्टि-भक्त” कहलाता है।
समग्र रस-सिद्धान्त
तत्व रसभाव सेवा-दृष्टि
कृपानिधि दीनभाव कृपा-प्रार्थना
मधुर माधुर्य रूप-रस शृंगार-दर्शन
नंदनंदन रूप लीलाभाव ब्रजस्मरण
मुरली मुस्कान माधुर्य-प्रेम अंतर्मुखी भक्ति
शरणागति सिद्धि-भाव आत्म-समर्पण
निष्कर्ष भाव
यह पद केवल “वर्णन” नहीं है,
यह एक “सेवा-साधना” है —
जहाँ प्रत्येक शब्द, वस्त्र, मुस्कान और दृष्टि के पीछे
भक्त का आत्मीय प्रेम और स्वानुभव की लहर प्रवाहित होती है।
इस पद का रस “माधुर्य + दास्य + अनन्यता + शरणागति” के संयोग से बना है —
जो वल्लभाचार्यीय पुष्टिमार्ग के चार प्रमुख रसरूपों का सार है।_
PUSHTI MARGIY BHAKTI SARAL HAVELI SANGEETPAD
SHREE KALYANRAY PRABHU KA MANORATH PRASANGE BADHAAI
RAGA :BHINN SHADAJKAUSHIK DHAIVAT DHWANI
TAL :TINTAAL
SING BY SHRI VITHALDAS VALLABHDAS BAPODARA,BINA MAHETA
WRITTEN BY SHREE INDIRABETIJI MAHODAYA
SANKALAN AND PUBLISH BY MANHARLAL VITHALDAS BAPODARA MOBILE NO.9824635506
PLEASE INFORM TO YOUR INTERESTED VAISHNAVAS FOR SUPPORT OF THIS TYPE OF BHAVANATMAK BHAKTI PUSHTI SARAL HAVELI SANGEET
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बधाईबधाई कृपानिधानश्रीकल्याणराय स्वरश्रीविठ्ठलदासबापोदराऔरबीनामहेतारागमिश्र षडजतालतीनतालपुष्टीभक्ति

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