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अधिकांश अखबार व चैनल आज भी जातीय पक्षपात और पूर्वाग्रह से भरे होने के साथ अन्य जातियों (बहिष्कृतों व वंचितों ) के हितों को नुकसान पहुंचा रहे हॆं।
मीडिया के ढांचे को जातिगत पूर्वाग्रह से ग्रसित होने तथा मीडिया संस्थानों में उच्च पदों पर सवर्णों का कब्जा होने से मुख्यतःशेष वंचित व बहिष्कृत जातियों के साथ होने बाले अन्याय व अत्याचार की खबरें अनदेखी कर दी जाती हैं। या उनको तोड-मरोड कर पेश किया जाता है।
    अर्थात मीडिया उत्पादों पर सामाजिक प्रष्ठभूमि का प्रभाव व सामग्री का चयन,प्रकाशन तथा प्रसारण में आज भी देखा जा सकता है।
स्पष्ट है कि जब तक मीडिया में हर एक तबके की यथोचित भागी दारी नहीं होगी तब तक सूचना का एकपक्षीय,पूर्वाग्रह से ग्रसित असंतुलित प्रचार व प्रसार जारी बना ही रहेगा।
इस स्थिति में हमें बहिष्कृतों के हितों की रक्षा करने के लिए ( मीडिया ) अखबार व चैनल की सख्त जरूरत महसूस हुई। “बहिष्कृत लोगों पर आज हो रहे और भविष्य में होने वाले अन्याय पर योजनाबद्ध तरीके से योजना बनाकर चर्चा करनी होगी। चर्चा करने के लिए ( मीडिया )समाचार–पत्र और सोशल मीडिया जॆसा दूसरा और कोई माध्यम नहीं है ।