वृत्तासुर के वध की सम्पूर्ण कथा ! | Swami Shri Raghavacharya Ji Maharaj
Автор: Swami Raghvacharya
Загружено: 2025-12-06
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वृत्तासुर के वध की सम्पूर्ण कथा ! | Swami Shri Raghavacharya Ji Maharaj
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अध्यक्ष: श्रीरामलला सदन देवस्थान ट्रस्ट, रामकोट अयोध्या 🚩
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🌸 जानिए — वृत्तासुर का वास्तविक स्वरूप और उसका दिव्य वध!
भागवत एवं पुराणों में वर्णित
वृत्तासुर—एक ऐसा असुर
जो देखने में राक्षस था,
परंतु अंदर से परम भक्त,
पूर्णत: शरणागति और भक्ति का स्वरूप था।
इंद्र और वृत्तासुर का युद्ध
केवल देव–असुर का संघर्ष नहीं,
बल्कि धर्म, कर्म और भक्ति का अत्यंत गूढ़ रहस्य है।
जिसे संसार असुर समझ रहा था,
वह वास्तव में
भगवान का अनन्य भक्त चित्केतु था,
जो पूर्वजन्म के कर्मों के कारण
असुर योनि में जन्म लेकर भी
अडिग भक्ति में स्थित था।
इंद्र ने जब वज्र उठाया—
वृत्तासुर ने मुस्कुराकर कहा:
“हे देवराज! यह वज्र मुझ पर नहीं—
मेरे पापों पर पड़ेगा।
मेरी इच्छा केवल पद-सेवन है—
मृत्यु मेरी मुक्ति है।”
ऐसी विरक्ति,
ऐसा समर्पण,
ऐसा भक्तभाव
देवताओं में भी दुर्लभ है।
📖 इस प्रवचन में जानिए—
✨ वृत्तासुर का जन्म—राजा चित्केतु की अद्भुत कथा
✨ देवताओं और वृत्तासुर के युद्ध का गहरा रहस्य
✨ क्यों देवताओं को भी असुर पर विजय पाने हेतु दधीचि की हड्डियों का सहारा लेना पड़ा?
✨ वृत्तासुर के वे संवाद जो भागवत के सर्वोच्च भक्ति ग्रंथ बन गए
✨ इंद्र के मन में भय—और वृत्तासुर के मन में आनंद!
✨ मृत्यु को ‘मोक्ष का प्रवेश द्वार’ मानने वाला परम भक्त
✨ वृत्तासुर का वध क्यों विजय नहीं, बल्कि विरक्ति और समर्पण की जीत था?
🌸 जीवनोपदेश :
👉 रूप देखकर किसी का मूल्यांकन न करें—
कभी-कभी ‘असुर रूप’ में भी
सबसे महान भक्त छिपा होता है।
👉 भक्ति का चरम रूप—
कर्मों का फल भोगते हुए भी भगवान को न छोड़ना।
👉 वृत्तासुर की कथा सिखाती है—
सच्चे भक्त के लिए मृत्यु भी उत्सव है,
क्योंकि वह उसे भगवान के चरणों तक पहुँचा देती है।
👉 इंद्र के पास शक्ति थी,
पर वृत्तासुर के पास भक्ति थी—
और भक्ति सदा सर्वोच्च है।
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Shrimadjagadguru Swami Dr. Raghavacharyaji, Peethादिश्वर – Shridham Ramvarnashram, Ayodhya;
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🙏 **“वृत्तासुर का वध केवल युद्ध नहीं—
भक्ति, समर्पण और विरक्ति की सर्वोच्च विजय है।”**
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