Birudi | बिरूडी | Latest New Harul | Sardar Singh Bharti | Sardar Khashan
Автор: Sardar Singh Bharti Official
Загружено: 2025-11-15
Просмотров: 32685
Описание:
Song :- Birudi | बिरूडी
Singer :- Sardar Singh Bharti | Sardar Khashan
Music :- Parbhu Panwar
Lyrics :- Lok Geet
Camera :- Vinod Kunwar
Videio Edit :- Vinod Kunwar
Thanks :- Bharat Chauhan, Fateh Singh Chauhan
Producer :- Sardar Singh Bharti
Best Support :- Bharti Recording Studio
Sardar Singh Bharti Official
हमारा यह पेज उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है
उत्तराखंड की लोक-संस्कृति अत्यंत समृद्ध, विविध एवं जीवन्त है। हिमालय की गोद में बसा यह प्रदेश अपनी भौगोलिक परिस्थितियों, प्राकृतिक संपदा और ऐतिहासिक परंपराओं के कारण विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान रखता है। इसकी लोक-संस्कृति में लोकगीत, लोकनृत्य, वाद्ययंत्र, परिधान, लोककथाएँ, रीति-रिवाज़, मेलों और त्यौहारों का अनूठा संगम देखने को मिलता है।
१. लोकगीत एवं लोकनृत्य
उत्तराखंड के लोकगीत सरल, हृदयस्पर्शी और भावनाओं से परिपूर्ण होते हैं। झोड़ा, चांचरी, चौफ़ाला और मंगल जैसे गीत प्रमुख हैं।
झोड़ा और चांचरी नृत्य सामूहिक उत्सवों का मुख्य आकर्षण होते हैं, जिनमें पुरुष और महिलाएँ हाथ पकड़कर गोल घेरे में नृत्य करते हैं।
छपेली नृत्य युवा वर्ग में अत्यधिक लोकप्रिय है, जिसमें गीत और नृत्य के साथ हास्य-व्यंग्य का भी मिश्रण होता है।
२. वाद्ययंत्र
उत्तराखंड के लोकवाद्य जैसे दमाऊँ, ढोल, हुड़का, रणसिंगा और भौंकु लोकनृत्यों और धार्मिक आयोजनों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। विशेषकर हुड़का कुमाऊँ क्षेत्र में गाथा-गायन हेतु प्रयुक्त होता है।
३. परिधान
पुरुष प्रायः धोती-कुर्ता और चूला पहनते हैं।
महिलाएँ घाघरा, ओढ़नी और पिछौड़ा धारण करती हैं। पिछौड़ा उत्तराखंड की विवाहित महिलाओं का सांस्कृतिक प्रतीक है, जिसे विशेष अवसरों पर पहना जाता है।
४. रीति-रिवाज़ और पर्व
विवाह, जन्म और अन्य संस्कारों में लोकगीतों व नृत्यों की विशेष परंपरा है।
यहाँ के मुख्य पर्व हैं — घी त्यार, हरेला, ओलगिया, कुम्भ, नंदा देवी राजजात, काकरियाभूमि मेला और बग्वाल मेला। ये पर्व प्रकृति, कृषि और देवभूमि की आस्था से गहराई से जुड़े हैं।
५. लोककथाएँ और देव परंपरा
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहाँ के लोग लोकदेवताओं जैसे गोलू देवता, भोलानाथ, हरुहीत आदि में गहन आस्था रखते हैं। लोककथाओं और गाथाओं में वीरता, प्रेम, बलिदान और धार्मिक विश्वासों की झलक मिलती है।
👉 संक्षेप में, उत्तराखंड की लोक-संस्कृति उसकी प्रकृति, आस्था और जनजीवन का सजीव दर्पण है। यह संस्कृति न केवल यहाँ के लोगों को आपस में जोड़ती है, बल्कि उन्हें उनकी जड़ों से भी जोड़े रखती है।
क्या आप चाहेंगे कि मैं उत्तराखंड की कुमाऊँ और गढ़वाल—इन दोनों अंचलों की लोक-संस्कृति का अलग-अलग विवरण भी दूँ?
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