Allah ke Wali Auliya Allah ka Makam or Unka Rutba
Автор: Wafaa Aur Jannat
Загружено: 2025-12-18
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यह बात बिल्कुल सच है कि चारों इमाम (इमाम अबू हनीफा, इमाम मालिक, इमाम शाफ़ई, और इमाम अहमद इब्न हंबल) हक (सत्य) पर हैं और अहले सुन्नत व जमात (Sunni mainstream) में उनको सबसे बड़ा मुकाम हासिल है।
🤔 इख्तिलाफ (मतभेद) क्यों है?
इख्तिलाफ (मतभेद) होने के मुख्य कारण हक़ से भटकाव नहीं, बल्कि इस्लामी शरीयत को समझने के विभिन्न तरीके हैं, जिन्हें मनहज (Methodology) कहा जाता है।
यहाँ कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं:
1. क़ुरान और हदीस को समझने का तरीका (Manhaj)
दलीलें जमा करना: अलग-अलग इमामों को कुछ खास हदीसें मिलीं, और कुछ नहीं मिलीं (उस दौर में हदीसों को जमा करने का काम जारी था)।
हदीसों की विश्वसनीयता (Authenticity): किसी इमाम ने एक हदीस को सही (Sahi) माना, जबकि दूसरे ने उसे कमज़ोर (Da'if) माना, जिससे फतवे बदल गए।
अरबी भाषा का ज्ञान: कुरान की आयतों और हदीसों के लफ़्ज़ों (शब्दों) के अलग-अलग मतलब निकालने से फिकही मसला बदल जाता है।
2. उसूल-ए-फिकह (Principles of Jurisprudence) में अंतर
इमामों ने शरीयत के फैसले करने के लिए अपने अलग नियम बनाए। जैसे:
इस्तेमाल-ए-क़ियास (Analogy): कुछ इमाम क़ियास (तुलना) का इस्तेमाल ज़्यादा करते हैं, जबकि कुछ कम।
इस्तिहसान (Juristic Preference): इमाम अबू हनीफा ने इस तरीक़े का ज़्यादा इस्तेमाल किया, जहाँ वह सहूलियत या बेहतर नतीजे के लिए कभी-कभी क़ियास के ज़ाहिरी नियम से हट जाते थे।
अहल-ए-मदीना का अमल (Practice of the people of Medina): इमाम मालिक अक्सर मदीना के लोगों के अमल को एक अहम दलील मानते थे।
3. नस्ख़ (Abrogation) का ज्ञान
शरीयत के कुछ अहकाम (आदेश) बाद में नासिख़ (नस्ख़ करने वाले) अहकाम से बदल दिए गए थे।
अगर किसी इमाम को पुराना हुक्म पता चला और नया हुक्म नहीं पता चला, तो उनका फतवा अलग हो जाएगा।
🤝 इख्तिलाफ का हुक्म (Verdict on the Difference)
यह इख्तिलाफ रहमत (Mercy) का ज़रिया माना जाता है।
सहूलियत (Ease): अगर किसी एक मसले में एक मज़हब (मसलक) में मुश्किल है, तो शरीयत ने दूसरे मज़हब पर अमल करने की गुंजाइश रखी है (बशर्ते कि इंसान सिर्फ अपनी सहूलियत के लिए बार-बार मज़हब न बदले)।
इम्तियाज़ (Distinction): इन इमामों का इख्तिलाफ 'हक़ या बातिल' (Right or Wrong) का नहीं है, बल्कि 'सही या असही' (More Correct or Less Correct) का है।
इजतिहाद (Independent Reasoning): चारों इमामों ने अल्लाह और उसके रसूल के दीन को समझने के लिए पूरी कोशिश की। हदीस है कि जो इजतिहाद करता है और सही नतीजे पर पहुँचता है, उसे दो अज्र (इनाम) मिलते हैं, और जो कोशिश करता है लेकिन सही नतीजे पर नहीं पहुँचता, उसे एक अज्र मिलता है।
निष्कर्ष यह है: चारों इमामों का मकसद एक है - अल्लाह की रज़ा और उसके रसूल की पैरवी। उनके बीच का अंतर तरीकों (Manhaj) और समझने (Fahm) का है, न कि दीन से हटने का। इसलिए, एक आम मुसलमान के लिए ज़रूरी है कि वह किसी एक इमाम के मज़हब (हनाफी, मालिकी, शाफ़ई, या हंबली) पर अमल करे।
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