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खानाबदोश जीवन || Life style of " Kashmir K Bakkerwal "||

Автор: Sudha Ghildiyal

Загружено: 2025-09-15

Просмотров: 268

Описание: #कश्मीर के बक्करवाल :
#भारत की सांस्कृतिक विविधता में घुमंतु जनजातियों का विशिष्ट स्थान है। इन जनजातियों ने न केवल अपनी पारंपरिक आजीविका को बनाए रखा है, बल्कि कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में भी जीवन जीने की अनूठी शैली विकसित की है। कश्मीर के बक्करवाल इन्हीं घुमंतु समुदायों में से एक हैं, जिनकी पहचान पशुपालन, मौसमी प्रवास और विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराओं से होती है। यद्यपि भारत सरकार ने इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया है, किंतु आज भी यह समुदाय शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा से जूझ रहा है।
बक्करवालों का इतिहास और उत्पत्ति
“बक्करवाल” शब्द “बकर” (बकरी/भेड़) और “वाल” (पालने वाला) से बना है, अर्थात् भेड़-बकरी पालने वाला।
इतिहासकारों का मत है कि बक्करवाल मूलतः गूज्जर जनजाति की शाखा हैं।
इनके पूर्वज मध्य एशिया और अफगानिस्तान से आए और 14वीं–15वीं शताब्दी के दौरान कश्मीर में बस गए।समय के साथ इन्होंने ट्रांसह्यूमन्स (Transhumance) यानी मौसमी प्रवास को जीवन का अंग बना लिया।गर्मियों में ये पिर पंजाल और हिमालय की ऊँचाईयों पर चारागाहों की ओर जाते हैं, जबकि सर्दियों में जम्मू, पुंछ और राजौरी जैसे निचले क्षेत्रों में लौट आते हैं।
जीवन-शैली और सांस्कृतिक परंपराएँ ये लोग ऊनी तंबुओं (कथा या गूज्जर तंबू) में रहते हैं, जिन्हें आसानी से ढोया जा सके। तंबू प्रकृति से तालमेल का प्रतीक है।खान-पानइनका भोजन दूध, दही, मक्खन, घी और मांस पर आधारित है। नून चाय इनकी संस्कृति का अहम हिस्सा है।
पहनावापुरुष ऊनी फिरन और पगड़ी पहनते हैं, जबकि महिलाएँ रंगीन फिरन, दुपट्टा और आभूषण धारण करती हैं।त्योहारअधिकांश बक्करवाल मुस्लिम हैं, अतः ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा इनके प्रमुख त्योहार हैं। विवाह और उत्सव अवसरों पर लोकगीत और नृत्य का आयोजन होता है।भाषा और साहित्यइनकी भाषा गोजरी है। लोकगीत और मौखिक परंपराएँ इनके सांस्कृतिक जीवन का केंद्र हैं। महिलाएँ चरागाहों में काम करते समय गीत गाती हैं, जो सामूहिकता का प्रतीक है।सामाजिक और आर्थिक संगठनबक्करवाल समाज गोत्रों (clans) में विभाजित है और इनके मुखिया को लम्बरदार कहा जाता है।मुख्य पेशा भेड़-बकरी पालन है। ऊन, दूध और मांस इनकी आय के प्रमुख स्रोत हैंसामूहिकता और पारस्परिक सहयोग इनकी सामाजिक संरचना की विशेषता है।वर्तमान समस्याएँ और चुनौतियाँ
1. शिक्षाघुमंतु जीवन के कारण बच्चे नियमित विद्यालयों में नहीं जा पाते। मोबाइल स्कूल योजनाएँ अपर्याप्त हैं।2. स्वास्थ्यदूरदराज इलाकों में अस्पताल और चिकित्सक न होने से महिलाएँ व बच्चे गंभीर कठिनाइयाँ झेलते हैं। पशुधन के रोगों का इलाज भी चुनौती है।3. आर्थिक संकटवन विभाग के नियंत्रण और विकास परियोजनाओं के कारण चारागाह सीमित हो गए हैं।जलवायु परिवर्तन से ऊँचे चारागाह प्रभावित हो रहे हैं।
पशु-उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल पाने से आर्थिक असुरक्षा बढ़ रही है।4. विस्थापन
सड़क, बाँध, सैन्य परियोजनाओं और पर्यटन विकास ने इनके पारंपरिक मार्गों को प्रभावित किया है।5. सामाजिक-राजनीतिक हाशियाकरण
अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने के बावजूद इनकी आवाज़ राजनीतिक मंचों पर कम सुनाई देती है।6. सांस्कृतिक संकटनई पीढ़ी पारंपरिक घुमंतु जीवन से दूर होकर स्थायी बस्तियों और आधुनिक नौकरियों की ओर आकर्षित हो रही है, जिससे इनकी निष्कर्षबक्करवाल कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग हैं। उनका इतिहास प्रवास और पशुपालन से जुड़ा रहा है। परंतु आज यह समुदाय शिक्षा, स्वास्थ्य, विस्थापन, आर्थिक असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है।
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