मध्यकालीन भारतीय इतिहास: भक्ति आंदोलन( Medieval Indian History: Bhakti Movement)
Автор: Informant हिन्दी
Загружено: 2023-08-24
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मध्यकालीन भारतीय इतिहास: भक्ति आंदोलन( Medieval Indian History: Bhakti Movement)
भक्ति आंदोलन
सल्तनत काल से ही हिन्दू मुस्लिम संघर्ष का काल था । दिल्ली सुल्तानों ने हिन्दू धर्म के प्रति अत्याचार करना आरंभ कर दिये थे । उन्होंने अनेक मंदिरेां और मुर्तियों को तोड़ने लगे थे । जिससे हिन्दुओ ने अपने धर्म की रक्षा के लिए एकेश्वरवाद को महत्व दिया और धर्म सुधारको ने एक आन्दोलन चालाया यही आन्दोलन भक्ति आन्दोलन के नाम से विख्यात हुआ। मध्यकाल में सुल्तानों के अत्याचार एवं दमन की नीति से भारतीय समाज आंतकित और निराश हो चुका था । ऐसी स्थिति में कुछ विचारकों एवं संतों ने हिन्दू धर्म की कुरितियों को दूर करने के लिए एक अभियान प्रारंभ किया । इसी अभियान को भक्ति आन्दोलन के नाम से जाना जाता था।
भक्ति आन्दोलन का उद्देश्य
भक्ति आन्दोलन के निम्नलिखित दो उद्देश्य है।
हिन्दू धर्म एवं समाज में सुधार करना - भक्ति मार्ग अपनाने से समाज में धर्म के प्रति एकता की भावना जागृत हो गयी ।
इस्लाम एवं हिन्दू धर्म में समन्वय करना - भक्ति आन्दोलन के द्वारा इस्लाम व हिन्दू धर्म के प्रति समन्वय की भावना का विकास हुआ ।
भक्ति आन्दोलन को अपनाने के कारण
मुस्लिम आक्रमणकारी के अत्याचार - भारत में मुस्लिम अत्याचारियों ने बबर्र ता से अत्याचार किया हिन्दुओं का कत्लेआम, मूर्तियों मंदिरों का विध्वंस आदि । इससे निजात पाने के लिए भक्ति आंदोलन को अपनाया गया ।
धर्म एवं जाति का भय - मुस्लिम आक्रमणकारियों से हिन्दू सम्पद्राय के लागे भयभीत थे उन्हें यह डर था कि उनके धर्म एवं जाति का विनाश हो जायेगा । इसलिए इनकी रक्षा हेतु भक्ति आन्दोलन का आश्रय लिया गया ।
इस्लाम का प्रभाव - हिन्दुओं ने अनुभव किया कि इस्लाम धर्म में सादगी व सरलाता है । उनमें जातीय भेदभाव नहीं है इसलिए हिन्दुओं ने इन्हें दूर करने के लिए जो मार्ग अपनाया। उसने भक्ति आंदोलन का रूप धारण कर लिया ।
राजनैतिक सगंठन - मुस्लिम सुल्तानों ने भारतीयों पर भयकंर अत्याचार किया । भारतीय राजाओं को परास्त कर अपनी सत्ता की स्थापना की । इस संघर्ष से मुक्ति पाने के लिए भारतीयों ने अपने राज्य की पुर्नस्थापना की । जिससे हिन्दू धर्म संगठित हो गया और भक्ति मार्ग को बल मिला ।
रूढ़िवादिता - मध्यकाल के आते आते हिन्दू धर्म रूढिव़ादी हो गया था । यज्ञो, अनुष्ठानों की संकीर्णता से लोग ऊब गये थे । वे सरल धर्म चाहते थे । जिससे भक्ति मार्ग का उदय हुआ।
पारस्परिक मतभेद - हिन्दू धर्म में भेदभाव बहुत था । निम्न वर्गो की दशा बहुत दयनीय थी । भेदभाव को समाप्त करने के लिए भक्ति मार्ग को अपनाया गया ।
हिन्दुओं की निराशा - मुसलमानों के अत्याचाार से हिन्दुओं की निराशा बढ़ चुकी थी। वे बहुत हताश हो गये थे र्इश्वर के अतिरिक्त उन्हें कोर्इ नहीं दिखार्इ दे रहा था जिसके कारण वे भक्ति मार्ग को अपनाया ।
भक्ति आन्दोलन की विशेषतायें-
भक्ति आन्दोलन की निम्नलिखित विशेषताये है । जो निम्नानुसार है-
एक र्इश्वरमें आस्था- र्इश्वर एक है वह सर्व शक्तिमान है ।
बाह्य आडम्बरों का विरोध- भक्ति आन्दोलन के सतां ने कर्मकाण्ड का खण्डन किया । सच्ची भक्ति से मोक्ष एवं र्इश्वर की प्राप्ति होती है ।
सन्यास का विरोध- भक्ति आन्दोलन के अनुसार यदि सच्ची भक्ति है र्इश्वर में श्रद्धा है तो गृहस्थ में ही मोक्ष मिल सकता है ।
वर्ण व्यवस्था का विरोध- भक्ति आन्दालेन के आन्दोलन के प्रवतकों ने वर्ण व्यवस्था का विरोध किया है । र्इश्वर के अनुसार सभी एक है ।
मानव सेवा पर बल- भक्ति आन्दाले न के समर्थकों ने यह माना कि मानव सेवा सर्वोपरि है । इससे मोक्ष मिल सकता है ।
हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रयास- भक्ति आन्दोलन के द्वारा सतांे ने लोगों को यह समझाया कि राम, रहीम में कोर्इ अंतर नहीं ।
स्थानीय भाषाओं में उपदेश- संतों ने अपना उपदेश स्थानीय भाषाओं में दिया । भक्तों ने इसे सरलता से ग्रहण किया ।
समन्वयवादी प्र्रवृत्ति- संतो, चिन्तकों, विचारकों ने र्इष्र्या की भावना को समाप्त करके लोगों में सामजंस्य, समन्वय की भावनाओं को प्रोत्साहन दिया ।
गुरू के महत्व मेंं वृद्धि- भक्ति आन्दोलन के संतो ने गुरू एवं शिक्षक के महत्व पर बल दिया । गुरू ही र्इश्वर के रहस्य को सुलझाने एवं मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है । समर्पण की भावना- समर्पण की भावना से सत्य का साक्षात्कार एवं मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है ।
समानता की भावना- र्इश्वर के समक्ष सभी लागे समान है । र्इश्वर सत्य है । सभी जगह विद्यमान है । उनमें भेदभाव नहीं है । यही भक्ति मार्ग का सही रास्ता है ।
भक्ति आन्दोलन के प्रमुख संत
आचार्य रामानुज- इनका जन्म आधुनिक आन्ध्रपद्रेश के त्रिपुती नगर में 1066 र्इ. में हुआ था । वे विष्णु के भक्त थे । उन्होंने सभी के लिए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खोला ।
रामानंद- इनका जन्म प्रयाग में एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था । वे एक महान धर्म सुधारक थे । वे अल्पायु में ही सन्यास ग्रहण कर लिये थे, ये राम के भक्त थे इन्होंने वैष्णव धर्म का द्वार सभी के लिए खोल दिया था । वे प्रेम व भक्ति पर जोर दिये ।
कबीर- कबीर एक महान सतं थे । इनका जन्म 1398 में काशी में हुआ था । इन्होंने भी प्रेम व भक्ति पर बल दिया । इन्होंने अंधविश्वास, कर्मकांड, दकियानूसी विचार, तीर्थ आदि पर खूब व्यंग्य किया है । उन्होंने पहली बार धर्म को अकर्मण्यता की भूमि से कटाकर कर्मयोगी की भूमि में लाकर खड़ा कर दिया । कबीर हिन्दू, मुसलमान, सम्प्रदायों की एकता का महान अग्रदूत था ।
चैतन्य- चैतन्य महाप्रभु सन्यासी होने के बाद कृष्ण भक्ति में लीन हो गये । उनका विश्वास था कि प्रेम, भक्ति, संगीत, नृत्य आदि से र्इश्वर को प्राप्त किया जा सकता है ।
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