Live Hindustani Classical Session | Raag Chayanat – Guru Sanjay Dewale | Gwalior Gharana | 2Nov 2025
Автор: swar sanskar
Загружено: 2025-11-01
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राग छायानट
स्वर मध्यम दोनों। शेष शुद्ध स्वर।
जाति सम्पूर्ण - सम्पूर्ण वक्र
थाट कल्याण
वादी - संवादी पंचम - रिषभ
समय रात्रि का दूसरा प्रहर
विश्रांति स्थान रे; ग; प; - सा'; प; रे;
मुख्य अंग ,प रे रे ; रे ग म प ; ग म रे सा ; सा' प रे ग ; म ग म रे सा रे सा;
आरोह - अवरोह सा रे ग रे ; ग प म ग रे सा ; सा रे ग म प ध नि सा' - सा' नि ध प म् प ध प ; रे ग म प म ग रे सा;
राग छायानट को राग छाया भी कहते हैं। यह छाया और नट रागों का मिश्रित रूप है। शुद्ध मध्यम का प्रयोग आरोह और अवरोह में समान रूप से किया जाता है। परन्तु तीव्र मध्यम का प्रयोग मात्र आरोह में ही होता है और कहीं नहीं होता यथा ध म् प या प ध म् प या म् प ध प। आरोह में शुद्ध निषाद को कभी-कभी छोड़कर तार सप्तक के सा’ पर इस तरह से जाते हैं जैसे – रे ग म प ; प ध प प सा’। इसी तरह तार सप्तक के सा’ से पंचम पर मींड द्वारा आने से राग का वातावरण बनता है। इसके पूर्वांग में रे ग म प तथा उत्तरांग में प ध नि सा’ अथवा प सा’ सा’ रे’ इस तरह जाते हैं।
कभी कभी निषाद कोमल को विवादी स्वर के रूप में प्रयोग किया जाता है जैसे – रे ग म नि१ ध प। इसमें पंचम तथा रिषभ की स्वर संगति अत्यंत महत्वपूर्ण तथा राग वाचक है। प प रे यह मींड में लेने पर राग झलकने लगता है। इस राग में मींड तथा कण का विशेष महत्त्व है। आलाप तथा तानें अधिकतर रिषभ से शुरू की जाती हैं। इसका विस्तार मंद्र तथा मध्य सप्तक में विशेष रूप से किया जाता है। इसके निकटवर्ती राग केदार, कामोद और हमीर हैं।
यह गंभीर प्रकृति का राग है। इसमें ख्याल, तराने आदी गाये जाते हैं। यह स्वर संगतियाँ छायानट राग का रूप दर्शाती हैं –
रे रे ग ; ग म प म ; ग म रे ; रे ग म प ; प ध प रे रे ग म प ; म ग म रे सा ; ,प ,प सा ; ,प रे सा ; रे ग म प ध प रे; रे रे ग ; ग ग म ; प म ग म रे सा ; ,प सा रे रे सा ; रे ग म प ; प ध प ; प म् ध प प रे ; ग म प सा’ ; रे’ सा’ ; ध ध प ; ध प म् प ; रे रे ग ; रे ग म प ध प ; म् प म् प ध प ; ध नि ; ध प ; रे ग ; रे सा ; ,प सा रे रे सा ; रे ग म नि१ ध प ; रे रे सा ; |
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