नन्दी की सवारी | श्री शिव स्तुति | with lyrics पं. सर्वेश उपाध्याय
Автор: Dharma Shikshak
Загружено: 2023-04-07
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श्री शिव स्तुति (नन्दी की सवारी...)with lyrics पं. सर्वेश उपाध्याय @Dharmashikshak
॥ शिव स्तुति ॥
॥ दोहा ॥
श्री गिरिजापति बंदि कर चरण मध्य शिर नाय।
कहत गीता राधे तुम मो पर हो सहाय॥
कविता
नंदी की सवारी नाग अंगीकार धारी।
नित संत सुखकारी नीलकण्ठ त्रिपुरारी हैं॥
गले मुण्डमाला भारी सर सोहै जटाधारी।
बाम अंग में बिहारी गिरिजा सुतवारी हैं॥
दानी बड़े भारी शेष शारदा पुकारी।
काशीपति मदनारी कर शूल च्रकधारी हैं॥
कला जाकी उजियारी लख देव सो निहारी।
यश गावें वेदचारी सो हमारी रखवारी हैं॥
शम्भू बैठे हैं विशाला पीवें भंग का प्याला।
नित रहे मतवाला अहि अंग पै चढ़ाये हैं॥
गले सोहै मुण्डमाला कर डमरू विशाला।
अरु ओढ़ें मृग छाला भस्म अंग में लगाए हैं॥
संग सुरभी सूतशाला करै भक्त प्रतिपाला।
मृत्यु हरै अकाला शीश जटा को बढ़ाए हैं॥
कहै भक्त करो मोहि तुम निहाला।
गिरिजापति आला जैसे काम को जलाए हैं॥
मारा है जलन्धर औ त्रिपुर को संहारा।
जिन जारा है काम जाके शीश गंगाधारा है॥
धारा है अपार जासु महिमा तीनों लोक।
भाल सोहैं चन्द्र जाकी सुषमा की सारा है॥
सारा अहि बात सब खायो हालाहल जानि।
जगत के आधार जाहि वेदन उचारा है॥
चाराें हैं भाग जागे दूार हैं गिरीश कन्या।
कहत अयोध्या सोई मालिक हमारा है॥
अष्ट गुरु जानि जाके मुख वेदवानी शम्भू।
भवन में भवानी सुख सम्पत्ति लहा करें॥
मुण्डन की माला जाके चन्द्रमा ललाट सोहै।
दासन के दस जाके दारिद दहा करै॥
चारों दूार बन्दी जाके दूार पाल नंदी।
कहत कवि अनंदी नाहक नर हाहा करें॥
जगत रिसाय यमराज की कहा बसाये।
शंकर सहाय तो भयंकर कहा करैं॥
॥ सवैया ॥
गौर शरीर में गौरि विराजत और जटा सिर सोहत जाके।
नागन को उपवीत लहै कहै अयोध्या शीश भाल में वाके॥
दान करै पल में फल चारिऔ टारत अंक लिखे विधना के।
शंकर नाम निशंक सदा हो भरोसे रहें निशि वासर ताके॥
॥ दोहा ॥
मगसर मास हेमंत ऋतु,छट दिन है शुभ बुध्द।
कहत अयोध्यादास तुम, शिव के विनय समुद्र॥
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