दुर्लभ प्राचीन विचित्र वीर हनुमान माला मंत्र । जाप 11 बार
Автор: Mantra - Tantra - Yantra ( मंत्र - तंत्र - यंत्र )
Загружено: 2025-12-12
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मंत्र तंत्र यंत्र चॅनेल मे आप सभी का स्वागत है आज मै आप सभी के लिये दुर्लभ प्राचीन विचित्र वीर हनुमान माला मंत्र लेकर आया हु
अगर आपके जीवन में बार-बार बाधाएँ आ रही हैं,
अगर भय, नकारात्मक ऊर्जा, शत्रु बाधा या मानसिक तनाव आपको घेर रहा है,
तो यह विचित्र वीर हनुमान माला मंत्र आपके लिए एक दिव्य कवच के समान है।
कहा जाता है कि यह मंत्र
वीर हनुमान जी के उग्र, रक्षक और चमत्कारी स्वरूप को जाग्रत करता है।
इस मंत्र की माला जाप से
डर भागता है,
आत्मविश्वास बढ़ता है,
और जीवन में अदृश्य रक्षा कवच बन जाता है।
जो साधक इस मंत्र को
श्रद्धा से सुनता है या जप करता है,
उसके आसपास की नकारात्मक शक्तियाँ स्वतः ही नष्ट होने लगती हैं।
भूत-प्रेत बाधा, नजर दोष, शत्रु षड्यंत्र और अनहोनी भय—
सब पर यह मंत्र भारी माना गया है।
हनुमान जी को विचित्र वीर इसलिए कहा गया है
क्योंकि वे हर परिस्थिति में
भक्त की रक्षा के लिए
अप्रत्याशित और चमत्कारी रूप से प्रकट होते हैं।
यदि यह वीडियो आप तक पहुँची है,
तो समझ लीजिए कि
हनुमान जी की कृपा आप पर विशेष रूप से बनी हुई है।
इस मंत्र को प्रतिदिन
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में
या मंगलवार एवं शनिवार को
एकाग्र मन से अवश्य सुनें।
कम से कम 11 बार सुनना अत्यंत फलदायी माना गया है।
मंत्र सुनते समय मन में केवल एक ही भाव रखें—
“हे विचित्र वीर हनुमान, मेरी रक्षा करो, मुझे शक्ति दो।”
यह यह विचित्र वीर हनुमान माला मंत्र आप सभी के लिए मैं ग्यारा बार जाप करके दे रहा हु इसे प्रतिदिन सुने और लाभले चॅनल को शेअर करे सबस्क्राईब करे इसी गुरुदक्षिणा की हम आपसे आशा करते है धन्यवाद
श्रीविचित्रवीर हनुमन् मालामन्त्र
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीविचित्र-वीर-हनुमन्माला मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्रो भगवान् ऋषिः। अनुष्टुप छन्दः। श्रीविचित्र-वीर-हनुमान्-देवता। ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे माला-मन्त्र-जपे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः-
श्रीरामचन्द्रो भगवान् ऋषये नमः शिरसि।
अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे। श्रीविचित्र-वीर-हनुमान्-देवतायै नमः हृदि। ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे माला-मन्त्र-जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
षडङ्गन्यासः-
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
ॐ ह्रः करतल-करपृष्ठाभ्यां नम:।
ध्यानः- वामे करे वैर-वहं वहन्तम्,
शैलं परे श्रृखला-मालयाढ्यम्।
दधानमाध्मातमु्ग्र-वर्णम्,
भजे ज्वलत्-कुण्डलमाञ्नेयम्।।
माला-मन्त्रः-
“ॐ नमो भगवते, विचित्रवीर-हनुमते, प्रलय-कालानल-प्रभा-ज्वलत्-प्रताप-वज्रदेहाय, अञ्जनीगर्भ-सम्भूताय, प्रकट-विक्रमवीर- दैत्य-दानव-यक्ष-राक्षस-ग्रह-बन्धनाय, भूतग्रह, प्रेतग्रह, पिशाचग्रह, शाकिनीग्रह, डाकिनीग्रह, काकिनीग्रह, कामिनीग्रह, ब्रह्मग्रह, ब्रह्मराक्षस-ग्रह, चोर-ग्रह बन्धनाय, एहि एहि, आगच्छागच्छ, आवेशयावेशय, मम हृदयं प्रवेशय प्रवेशय, स्फुट स्फुट, प्रस्फुट प्रस्फुट, सत्यं कथय कथय, व्याघ्रमुखं बन्धय बन्धय, सर्पमुखं बन्धय बन्धय, राजमुखं बन्धय बन्धय, सभामुखं बन्धय बन्धय, शत्रुमुखं बन्धय बन्धय, सर्वमुखं बन्धय बन्धय, लंका-प्रासाद-भञ्जक। सर्वजनं मे वशमानय, श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वानाकर्षयाकर्षय, शत्रून् मर्दय मर्दय, मारय मारय, चूर्णय चूर्णय, खे खे श्रीरामचन्द्राज्ञया प्रज्ञया मम कार्य-सिद्धिं कुरु कुरु, मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् श्रीविचित्रवीर-हनुमते। मम सर्व-शत्रून् भस्मी-कुरु कुरु, हन हन, हुं फट् स्वाहा।।”
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