History of King Harshavardhan | महान् सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास | Pushyabhuti Dynasty
Автор: AnyQ
Загружено: 2025-02-10
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सम्राट हर्षवर्धन का इतिहास | History of Harshwardhan in Hindi
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हेलो दोस्तों कैसे हैं आप सभी का स्वागत हैं हमारे चैनल पर आज हम भारत के महान राजाओं के बारे बात करने वाले हैं वैसे तो भारत में बहुत सारे महान राजा थे और सभी ने अपने शासन काल मे अपने तरीके से राज किया और अपने राज्य विस्तार भी किया पर मैं बात करने वाला हूं ऐसे ही एक राजा के बारे में जिनका भारतीय इतिहास में अपनी अलग ही नाम है तो चलिए जानते हैं
लगभग चौथी शताब्दी से लेकर 6 वीं शताब्दी तक मगध पर से भारत पर राज करने वाले गुप्त वंश का जब अन्त हुआ, तब देश मे एक नए वंश पुष्यभूति वंश का उदय हुआ़ सम्राट हर्षवर्धन का उदय हुआ। उन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाकर पूरे उत्तर भारत पर शासन किया
सम्राट हर्षवर्धन 16 वर्ष की छोटी उम्र में ही राजा बन गए थे। अपने बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या के बाद उन्हें राजपाट सौंप दिया गया था। छोटी उम्र में ही हर्षवर्धन को राजा शशांक गोर के खिलाफ युद्ध के मैदान में लड़ना पड़ा था। शशांक गोर ने ही राज्यवर्धन की हत्या की थी।
हर्षवर्धन ने एक विशाल सेना तैयार की और करीब 6साल तक उत्तर भारत के विशाल हिस्से पर किया राज वल्लभी (गुजरात), पंजाब,गंजाम (उड़ीसा) बंगाल, मिथिला (बिहार) और कन्नौज (उत्तर प्रदेश) जीत कर पूरे उत्तर भारत पर अपना दबदबा कायम कर लिया था। जल्दी ही हर्षवर्धन का साम्राज्य गुजरात (पश्चिम) से लेकर आसाम (पूर्व) तक और कश्मीर (उत्तर) से लेकर नर्मदा नदी (दक्षिण) तक फैल गया था।
।माना जाता है कि सम्राट हर्षवर्धन की सेना में 1 लाख से अधिक सैनिक थे। यही नहीं, सेना में 60 हजार से अधिक हाथियों को भी रखा गया था।
सम्राट हर्षवर्धन ने भले ही अलग-अलग राज्यों को जीत लिया था, लेकिन उन राज्यों के राजाओं को अपना शासन चलाने की पूर्ण स्वतंत्रता दे रखा था। शर्त यह थी कि वे हर्ष को अपना सम्राट मानेंगे। हालांकि इस तरह की संधि कन्नौज और थानेश्वर के राजाओं के साथ नहीं की गई थी।
वहीं 7वीं सदी में हर्ष ने कला और संस्कृति के बलबूते पर, सभी देशों के बीच बेहतर संबंध बनाकर रखे थे। इतिहास के मुताबिक, चीन के मशहूर चीनी यात्री ह्वेन त्सांग हर्ष के राज-दरबार में 8 साल तक उनके दोस्त की तरह रहे थे।
हर्षवर्धन ने ‘सती’ प्रथा पर भी प्रतिबंध लगाया था और। सामाजिक कुरीतियों को जड़ से खत्म करने का भी बीड़ा उठाया था। उनके राज में सती प्रथा पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था। कहा जाता है कि सम्राट हर्षवर्धन ने अपनी बहन को भी सती होने से बचाया था।
वे सभी धर्मों का आदर समान करते थे पारम्परिक हिन्दू परिवार में जन्म लेने के बाद भी उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था | बौद्ध हो या जैन धर्म, हर्ष किसी भी धर्म में भेद-भाव नहीं करते थे। चीनी दूत ह्वेन त्सांग ने अपनी किताबों में भी हर्ष को महाया बौद्ध धर्म के प्रचारक तरह बताया है।
सम्राट हर्षवर्धन ने शिक्षा को भी देश भर में फैलाया। हर्षवर्धन के शासनकाल में नालंदा विश्वविद्यालय एक शिक्षा के सर्वश्रेष्ठ केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
हर्षवर्धन एक बहुत अच्छे लेखक ही नहीं, बल्कि एक कुशल कवि और नाटककार भी थे। हर्ष की ही देख-रेख में ‘बाणभट्ट’ और ‘मयूरभट्ट’ जैसे मशहूर कवियों का जन्म हुआ था। यही नहीं, हर्ष खुद भी एक बहुत ही मंजे हुए नाटककार के रूप में सामने आए। ‘नागनन्दा’, ‘रत्नावली’ और ‘प्रियदर्शिका’ उनके द्वारा लिखे गए कुछ नामचीन नाटक हैं। तथा
भारत की अर्थव्यवस्था ने भी हर्षवर्धन के शासनकाल में बहुत तरक्की की थी। भारत, जो मुख्य तौर पर एक कृषि-प्रधान देश माना जाता है; हर्ष के कुशल शासन में तरक्की की उचाईयों को छू लिया था हर्ष के शासनकाल में भारत ने आर्थिक रूप से बहुत प्रगति की थी।
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