शिव के वाहन नंदी की कथा। कौन हैं नंदी? शिव के वाहन क्यूं बने नंदीश्वर?
Автор: Gyan Capsule Astha
Загружено: 2022-01-22
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वीडियो में हमने नंदीश्वर की कथा बताई है यह शिवपुराण की शतरुद्र संहिता के छठे और सातवें अध्याय में दी गई है। शिलाद ऋषि थे, वे ब्रह्मचारी थे, उनके कोई संतान नहीं थी। इसी कारण वे पुत्र प्राप्ति की इच्छा से इंद्र की तपस्या करने लगे। इंद्र ने वरदान मांगने को कहा तो ऋषि बोले मुझे अजन्मा, अजर और अमर पुत्र चाहिए। इंद्र ने कहा मैं ऐसा वरदान नहीं दे सकता ऐसा वरदान तो महादेव ही दे सकते हैं। ऋषि महादेव की तपस्या करने लगे। महादेव ने वरदान मांगने को कहा ऋषि बोले मुझे अजन्मा अजर अमर पुत्र चाहिए। शिवजी ने बोला ऐसा तो बस मैं ही हूं इसलिए मुझे ही आपके पुत्र के रूप में जन्म लेना होगा। कुछ समय बाद शिवजी ने शिलाद ऋषि के पुत्र के रूप में जन्म लिया। हाथ में त्रिशूल, सिर पर जटा जुट वाले बालक को देखकर चारों ओर आनंद छा गया। ऋषि ने अपने पुत्र का नाम नंदी रखा। नंदी साधारण बालक की तरह आश्रम में रहने लगे जब वे सात वर्ष के थे तब वरुण और मित्र नाम के दो मुनि आश्रम पर आए। वे नंदी को देख कर बोले मुनि आपका यह पुत्र अल्पायु है और इसकी आयु का मात्र एक वर्ष ही और शेष है। यह सुन कर ऋषि विलाप करने लगे, नंदी ने अपने पिता को सांत्वना देते हुए कहा पिताजी में महादेव की तपस्या करके मृत्यु को दूर भगा दूंगा। नंदी वन में तपस्या करने चले गए। शिवजी माता पार्वती के साथ प्रकट हो गए और बोले वत्स नंदी तुम अजर अमर हो, वे दोनों ऋषि तो मेरे ही द्वारा भेजे गए थे। शिवजी ने नंदी को वरदान मांगने को कहा तो नंदी ने बोला की प्रभु मैं आपका वाहन बनना चाहता हूं। शिवजी ने जटा में से जल ले कर छिड़का जिससे नंदी बैल के स्वरूप में हो गए। प्रत्येक मंदिर में नंदी की मूर्ति भगवान शिव के साथ होती है लेकिन महाराष्ट्र के नाशिक के पंचवटी स्थान पर गोदावरी नदी के किनारे कपालेश्वर महादेव का मंदिर है जिसमें शिवजी के सामने नंदी की मूर्ति नहीं है। इसके पीछे ले कथा यह है कि एक समय ब्रह्मा जी के पांच मुख हुआ करते थे। जिनमें चार से वे भगवान का नाम लेते और एक से सदैव निंदा करते रहते। वह पांचवां मुख शिवजी ने काट दिया। शिवजी को ब्रह्म हत्या का दोष लगा जिससे मुक्त होने के लिए वे पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे। वे घूमते घूमते सोमेश्वर नाम के स्थान पर पहुंचे। वहां उन्हें एक बछड़ा मिला वह नंदी ही थे उन्होंने बोला की गोदावरी नदी के राम कुंड में स्नान करने से आप ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो जायेंगे। शिवजी ने स्नान किया और फिर वे पाप से मुक्त हो गए नंदी ने शिवजी को पाप से मुक्त होने का रास्ता बताया इसलिए यहां शिवजी ने नंदी को अपना गुरु माना और अपने सामने बैठने से मना कर दिया। यही कारण है कि कपालेश्वर महादेव मंदिर में नंदी की मूर्ति नहीं है।
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