दौलजी गोंगजी धाणेरीवीर भाद्राजून | मंडला राठौड़ दोलजी गोगजी का मन्दिर। इतिहास और मन्दिर दर्शन वीडियो
Автор: Mahendra Singh Bhinmal
Загружено: 2023-05-27
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#इतिहास :- #मोमाजी_श्री_धोणेरी_वीर
दोलजी गोंगजी दोनों भाई बड़े ही शूरवीर योद्धा थे, गोंगजी महाराज की आँखों मे इतना तेज था, की साधारण मनुष्य उनकी आँखों से आँख नही मिला पाते थे, अगर गलती से कोई उनसे आँखे मिला लेता तो डर के मर जाता था, इसलिए गोंगजी दिन में हमेशा आखो ओर पट्टी बांधकर रखते थे । एक दिन ऐसा आया जो इतिहास बन गया, जोधपुर दरबार को खबर मिली कि ककु भगू के दो वीर भाई हमारे राज में आकर रह रहे है ओर हमे मिले ही नही, जोधपुर दरबार ने संदेश लिखकर दोलजी गोंगजी को बुलावा भेजा, संदेश वाहक संदेश लेकर दौता पहुंचा और सारी बात दोलजी गोंगजी को बताई, दोनों भाई आपस मे बाते करने लगे, जोधपुर दरबार का बुलावा आया है तो कोई न कोई चाल जरूर है, दोलजी बोले, वो जोधा राठौड़ है, ओर हम मंडला राठौड़ है आपस मे हम भाई है तो किसी प्रकार की चाल तो नही होनी चाहिए, अब महाराजा का बुलावा आया है, तो जाना तो पड़ेगा, जो होगा देखा जायेगा ।प्रातः काल दोनों भाई उठे माँ चामुण्डा का पूजा पाठ कर माँ को बारम्बार नमस्कार कर सुभद्रा माताजी की आज्ञा लेकर जोधपुर के लिए रवाना हुए, चलते चलते जोधपुर रातानाडा जाकर विश्राम किया और घोड़ो को पानी पिलाने लगे, गोंगजी की आँखों पर पट्टी बांधी हुई थी, दोलजी घोड़ो को पानी पिला रहे थे, उस समय तालाब पर जोधपुर दरबार के ऊंटो की टोली को लेकर दो देवासी पानी पिलाने आये हुए थे, एक ऊंट ने पानी पीकर फडफ़ड़ाहट किया तो पानी की बूंदे गोंगजी पर आ पड़ी, गोंगजी बोले, ऊंटो वाला कौन है, ऊंट वाला दरबार का सेवक था तो कम बोले भी कैसे, देवासी ने गोंगजी को गलत बात बोल दी, गोंगजी को सहन नही हुआ, भयंकर क्रोध आया, गोंगजी ने अपने आँखों की पट्टी खोल दी, देवासी की नजर गोंगजी से मिलते ही उसी जगह खत्म हो गया, उधर दोलजी ने भी क्रोध में आकर जोधपुर दरबार के सात ऊँटो को एक साथ मार दिया, उतने में दूसरा देवासी भागकर आया और हाथ जोड़कर दोलजी गोंगजी से बोला, हुकम आपने बहुत तो गजब कर दिया, जोधपुर दरबार के ऊँट मार दिए ।
गोंगजी बोले दोलजी से ये तो हमने गजब कर दिया, जोधपुर दरबार से दुश्मनी मोल ले ली है, अब हमें जोधपुर नहीं जाना है, अभी इसी वक्त यहाँ से दौता दरबार चलना पड़ेगा, जाना तो था जोधपुर दरबार से मिलने लेकिन अपनो ने उनसे दुश्मनी कर दी है, दोनों भाइयों ने चामुण्डा माता को याद किया हे माँ हमारी रक्षा करना जीते जी हमे धुम्बडा पहुँचा लेना ।उधर दूसरा देवासी दरबार मे पहुंचा और दरबार के सामने जोर जोर से रोने लगा, दरबार महाराज के पूछने पर देवासी ने सारी बाते बताई, सारी बाते जानकर जोधपुर दरबार को बहुत क्रोध आया, आँखों से खून बरसने लगा, बोले बड़े प्रेम से दोनों को बुलाया था, लेकिन उन्होंने मेरे ही ऊँटो को मार कर अच्छा नही किया, अब तो उन्हें खत्म करने पर ही आराम की नींद लूंगा, सेनापति को आदेश दिया अभी के अभी फ़ौज तैयार करो ओर दोलजी गोंगजी का सर काटकर मेरे पास लाओ ।दोलजी गोंगजी दौता दरबार पहुंचे, तोगाजी को सारी बात बताई और बोले जाओ पहाड़ की चोटी पर जैसे ही जोधपुर की फ़ौज दिखे हमे बता देना, तोगाजी पहाड़ के ऊपर जाकर देखने लगे उतने में जोधपुर की विशाल फ़ौज आती दिखाई दी, तोगाजी ने जाकर दोलजी गोंगजी को बताया ।दोलजी ने बोला आने दो फ़ौज को देख लेंगे, पहली बात तो यह है कि धुम्बडा भाद्राजून का पहाड़ इतना विशाल है की, फ़ौज को कितनी भी कोशिश करने दो हम तक नही पहुंच पाएगी, चाहे बारह वर्ष के फ़ौज यही बैठी रहे, दोनों भाई बड़े शूरवीर है, मुकाबला करने देंगे नही, ऐसे करते करते छ: महीने तक फ़ौज वही बैठी रही, लेकिन दोलजी गोंगजी का कहि भी पता नही चला ।एक दिन का समाजोग कुआल्डा गाँव के पुरोहित जी राणसिंह दरबार बावसी के पास आये, दरबार महाराज के पूछने पर पुरोहित जी ने दोलजी गोंगजी का ठिकाना ओर रास्ता बता दिया, तब जोधपुर दरबार हो गए घोड़े असवार ओर फ़ौज को लेकर चढ़ाई कर दी, उधर टेकरी पर बैठे तोगाजी ने फ़ौज को आती देख दोलजी गोंगजी के पास गये, तोगाजी बोले फ़ौज ने चढ़ाई कर दी दोलजी गोंगजी जोधपुर की फ़ौज से लड़ने के लिए तैयार हुए, माँ जगदम्बा को याद कर चामुण्डा माता को नमस्कार कर बोले हे माँ लड़ाई में हमारे साथ रहना, दोलजी गोंगजी ढाल तलवार और बंदूक लिए घोड़े पर सवार हुए ओर साथ मे तोगाजी भी तलवार लेकर युद्ध भूमि में उतर गए, दोलजी लड़ते लड़ते फ़ौज को खत्म करने लगे, जोधपुर की फ़ौज को बहुत नुकसान हुआ, फिर जोधपुर दरबार की बंदूक से दोलजी रणभूमि में काम आ गए ।जोधाणे दरबार ने जोधपुर से ओर फ़ौज मंगवाई, उधर गोंगजी बोले तोगाजी से हम तो रणभूमि में काम आ जाएंगे, पीछे हमारी रानियां और बच्चों के साथ अन्याय हो जायेगा, गोंगजी महलो में गये ओर तलवार से अपनी रानियों ओर बच्चो को खत्म करने के बाद रणभूमि में उतरे, घमासान युद्ध होने लगा, खून की नदियां बहने लगी, उधर तोगाजी भी बराबर गोंगजी महाराज का साथ दे रहे थे ।गोंगजी लड़ते लड़ते फ़ौज का खात्मा करते जा रहे थे, माँ चामुण्डा को याद कर बोले, हे माँ आपने कही शूरवीरों का साथ दिया है, इस बार मेरा भी साथ देना जिसे में जोधपुर दरबार से बराबर मुकाबला कर सकू, माता बोली हे बेटा राजगादी पर घाव में नही करने दूंगी, लड़ते लड़ते गोंगजी का सिर कटकर धड़ से अलग हो गया, गोंगजी ने सर को कौलारी में रख दिया, ओर बिना सिर के सेना से लड़ने लगे, लड़ते लड़ते गोंगजी जोधाणे दरबार के पास पहुँचे ।तब जोधपुर दरबार गोंगजी से हाथ बोले, हे शूरवीर जोधा और मंडला दोनों आपस मे भाई है, आप तो वीरो के वीर हो, राजगद्दी पर घाव मत करना, तब बहुत मिम्मत के बाद गोंगजी लड़ते लड़ते शांत हुए, और धरती माँ को याद किया, हे माँ हमे तुम्हारी चरण में लेना, तब धरती फटी ओर दोलजी गोंगजी धरती में समा गए ।दोलजी गोंगजी दोनों भाई वीरो के वीर कहलाए जालौर जिले के हर गांव में उनके मंदिर बने हुए है और घर घर मे उनकी पूजा की जाती है, उनका मुख्य धाम भाद्राजून धुम्बडा पर्वत धोणेरी में आया हुआ है, और धोणेरी मोमाजी के नाम से प्रसिद्ध है।
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