ब्रह्मा, विष्णु और महेश से ऊपर की शक्तियां: जानिए सच्चाई
Автор: Mysterious Facts
Загружено: 2024-01-12
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क्या ब्रह्मा.विष्णु और महेश से उपर भी कोई शक्तियां है #astrology
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इस वीडियो में, हम जानेंगे कि क्या ब्रह्मा, विष्णु और महेश से ऊपर शक्तियां हैं या नहीं। हम वेदों, पुराणों और आध्यात्मिक ग्रंथों के माध्यम से इस प्रश्न का उत्तर ढूंढेंगे और इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
गीता अध्याय 15 श्लोक 16
द्वौ, इमौ, पुरुषौ, लोके, क्षरः, च, अक्षरः, एव, च,
क्षरः, सर्वाणि, भूतानि, कूटस्थः, अक्षरः, उच्यते।।16।।
अनुवाद: (लोके) इस संसारमें (द्वौ) दो प्रकारके (पुरुषौ) भगवान हैं (क्षरः) नाशवान् (च) और (अक्षरः) अविनाशी (एव) इसी प्रकार (इमौ) इन दोनों लोकों में (सर्वाणि) सम्पूर्ण (भूतानि) भूतप्राणियोंके शरीर तो (क्षरः) नाशवान् (च) और (कूटस्थः) जीवात्मा (अक्षरः) अविनाशी (उच्यते) कहा जाता है। (16)
गीता अध्याय 15 श्लोक 17
उत्तमः, पुरुषः, तु, अन्यः, परमात्मा, इति, उदाहृतः,
यः, लोकत्रायम् आविश्य, बिभर्ति, अव्ययः, ईश्वरः।।17।।
अनुवाद: (उत्तमः) उत्तम (पुरुषः) भगवान (तु) तो उपरोक्त दोनों प्रभुओं क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरुष से (अन्यः) अन्य ही है (यः) जो (लोकत्रायम्) तीनों लोकोंमें (आविश्य) प्रवेश करके (बिभर्ति) सबका धारण पोषण करता है एवं (अव्ययः) अविनाशी (ईश्वरः) परमेश्वर (परमात्मा) परमात्मा (इति) इस प्रकार (उदाहृतः) कहा गया है। यह प्रमाण गीता अध्याय 13 श्लोक 22 में भी है। (17)
गीता अध्याय 7 श्लोक 24
अव्यक्तम्, व्यक्तिम्, आपन्नम्, मन्यन्ते, माम्, अबुद्धयः।
परम्, भावम्, अजानन्तः, मम, अव्ययम्, अनुत्तमम्।।24।।
अनुवाद: (अबुद्धयः) बुद्धिहीन लोग (मम) मेरे (अनुत्तमम्) अश्रेष्ठ (अव्ययम्) अटल (परम्) परम (भावम्) भावको (अजानन्तः) न जानते हुए (अव्यक्तम्) छिपे हुए अर्थात् परोक्ष (माम्) मुझ कालको (व्यक्तिम्) मनुष्य की तरह आकार में कृष्ण अवतार (आपन्नम्) प्राप्त हुआ (मन्यन्ते) मानते हैं अर्थात् मैं कृष्ण नहीं हूँ। (24)
केवल हिन्दी अनुवाद: बुद्धिहीन लोग मेरे अश्रेष्ठ अटल परम भावको न जानते हुए छिपे हुए अर्थात् परोक्ष मुझ कालको मनुष्य की तरह आकार में कृष्ण अवतार प्राप्त हुआ मानते हैं अर्थात् मैं कृष्ण नहीं हूँ। (24)
गीता अध्याय 7 श्लोक 25
न, अहम्, प्रकाशः, सर्वस्य, योगमायासमावृतः।
मूढः, अयम्, न, अभिजानाति, लोकः, माम्, अजम्, अव्ययम्।।25।।
अनुवाद: (अहम्) मैं (योगमाया समावृतः) योगमायासे छिपा हुआ (सर्वस्य) सबके (प्रकाशः) प्रत्यक्ष (न) नहीं होता अर्थात् अदृश्य रहता हूँ इसलिये(माम्) मुझ (अजम्) जन्म न लेने वाले (अव्ययम्) अविनाशी अटल भावको (अयम्) यह (मूढः) अज्ञानी (लोकः) जनसमुदाय संसार (न) नहीं (अभिजानाति) जानता अर्थात् मुझको अवतार रूप में आया समझता है। क्योंकि ब्रह्म अपनी शब्द शक्ति से अपने नाना रूप बना लेता है, यह दुर्गा का पति है इसलिए इस श्लोक में कह रहा है कि मैं श्री कृष्ण आदि की तरह दुर्गा से जन्म नहीं लेता। (25)
केवल हिन्दी अनुवाद: मैं योगमायासे छिपा हुआ सबके प्रत्यक्ष नहीं होता अर्थात् अदृश्य रहता हूँ इसलिये मुझ जन्म न लेने वाले अविनाशी अटल भावको यह अज्ञानी जनसमुदाय संसार नहीं जानता अर्थात् मुझको अवतार रूप में आया समझता है। क्योंकि ब्रह्म अपनी शब्द शक्ति से अपने नाना रूप बना लेता है, यह दुर्गा का पति है इसलिए इस श्लोक में कह रहा है कि मैं श्री कृष्ण आदि की तरह दुर्गा से जन्म नहीं लेता। (25)
विशेष:- गीता अध्याय 7 श्लोक संख्या 24.25 में गीता ज्ञान दाता प्रभु अपने विषय में कह रहा है कि मैं अव्यक्त रहता है अर्थात् मैं अपनी योग माया अर्थात् सिद्धी शक्ति से छिपा रहता हूँ। सर्व के समक्ष अपने वास्तविक काल रूप में नहीं आता। यह प्रथम अव्यक्त हुआ। फिर गीता अध्याय 8 श्लोक 18 में कहा है कि ये सर्व प्राणी प्रलय के समय अव्यक्त में लीन हो जाते हैं। विचार करें यह दूसरा अव्यक्त हुआ। फिर गीता अध्याय 8 श्लोक 20 में कहा है कि उस अव्यक्त प्रभु से अर्थात् परब्रह्म से दूसरा अव्यक्त अर्थात् गुप्त परमात्मा तो सर्व प्राणियों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता वह सनातन अव्यक्त अर्थात् वह आदि परोक्ष प्रभु तीसरा अव्यक्त परमात्मा है। गीता अध्याय 8 श्लोक 21 में कहा है कि उस गुप्त परमात्मा को अविनाशी अव्यक्त कहा जाता है। जिस परमात्मा के पास जाने के पश्चात् प्राणी फिर लौटकर संसार में नहीं आते वह स्थान वास्तव में पूर्ण मोक्ष स्थल है। वह स्थान मेरे अर्थात् गीता ज्ञान दाता के स्थान अर्थात् ब्रह्म लोक से श्रेष्ठ है। विचार करें यह तीसरा अव्यक्त अर्थात् गुप्त प्रभु सिद्ध हुआ जो वास्तव में अविनाशी है। यह प्रमाण गीता अध्याय 15 श्लोक 1.4 व 16.17 में है। जिसमें तीन परमात्माओं का वर्णन स्पष्ट है। एक क्षर पुरूष अर्थात् ब्रह्म दूसरा अक्षर पुरूष अर्थात् परब्रह्म तथा तीसरा परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म परम अक्षर ब्रह्म का प्रमाण गीता अध्याय 8 श्लोक 1 तथा 3 में है।
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