🪷अध्यात्मबोधदीपम्-योगदर्शन स्वाध्याय🪷 उदाहरण सहित जाने चित्तवृत्ति निरोध के उपाय "अभ्यास और वैराग्य"
Автор: आचार्य वागीश - Acharya Vageesh
Загружено: 2025-12-16
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चित्त वृत्ति निरोध के लिए क्या करें?....
योगदर्शन में चित्तवृत्ति निरोध के मुख्य उपाय बताते हुए महर्षि पतंजलि ने कहा है कि "अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः"(योगसूत्र 1.12) अर्थात् मन की वृत्तियों (विचारों और मानसिक उतार-चढ़ावों) को नियंत्रित करने के लिए अभ्यास (निरंतर प्रयास) और वैराग्य (अनासक्ति या निष्काम भाव) ये दो मुख्य उपाय हैं, जिनका एक साथ पालन करने से चित्त शांत होता है और समाधि की ओर बढ़ा जा सकता है।
इसलिए अभ्यास और वैराग्य के माध्यम से हम योग में प्रतिष्ठित होते हैं | यह हमारी क्लिष्ट वृत्तियों अर्थात ऐसी विचारों को सहज ही रोकता है जो हमें दुःख देती हैं, हमारे मन में विचलन उत्पन्न करती हैं |
व्यास भाष्य के अनुसार, चित्त को नदी कहा गया है जो कि दो धाराओं में बहती है | उसकी एक धारा कल्याण के लिए बहती है और दूसरी पाप के लिए | जो धारा कल्याण पथ पर बहती है वह साधक को कैवल्य के मार्ग पर ले जाने वाली है और विवेक-मार्ग पर झुकी हुई है | जो धारा संसार की ओर ले जाने वाली है और अविवेक विषय मार्ग की ओर झुकी हुई है | इस प्रकार चित्त की वृत्तियों का निरोध अभ्यास और वैराग्य के अधीन होता है|
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