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Manusmriti aur Samvidhan, Manav Charitra Aur Dharm

Автор: Manav Charitra Aur Dharm

Загружено: 2025-11-06

Просмотров: 49

Описание: मनुस्मृति भारत की सबसे पुरानी धर्म अस्त्रों में से एक है शायद वेदों से भी पहले का, क्योंकि वेद लिखने वाले भी इस मनुस्मृति में बताए गए नियम और कानून का पालन करते थे।
लेकिन इतिहासकारों के अनुसार इसकी पांडुलिपियां आज से दो हजार साल पहले मिली है, इसके पहले पुराणों और भागवत की पांडुलिपियां मिल चुकी थी।
पर समाजिक व्यवस्था के बिना समाज व्यवस्थित नहीं किया जा सकता, इसलिए ये माना जाना चाहिए कि, जबतक कोई और समाजिक व्यवस्था की पांडुलिपियां नहीं मिल जाती सबसे प्राचीन मनुस्मृति ही होगी क्योंकि जैसे सबसे पहले मैंने बताया वेदों को रचने वाले भी एक समाजिक व्यवस्था में ही रहते थे।
मनुस्मृति में कहा गया है:
'जन्मना जायते शुद्र संस्कारात् द्विज उच्यते।'
"जन्म से शुद्र होता है और संस्कार से उत्तरोत्तर द्विज बन के उठते हैं।"
ब्रह्मा को सम्पूर्ण समाजिक व्यवस्था का एक स्वरूप मान के ऐसी प्रदर्शन किया गया और ब्रह्मा के प्रतिरूप को समाजिक व्यवस्था की चार श्रेणियों में विभाजित किया गया:
1. ब्राह्मण शिक्षा, शिक्षा अग्नि अग्नि मुंह में
2. क्षत्रिय शक्ति, शक्ति रक्षा, स्थान बाजू में
3. वैश्य पोषण, कर्म आपूर्ति, स्थान कटि
4. शुद्र मनुष्य की प्रारंभिक अवस्था।
ब्रह्मा मानव के अध्यात्मिक और संस्कारों का उत्तरोत्तर उत्थान का सोपान है।
जो पैर से उपर की ओर जाता है।
नवजात से शिक्षित होने और सेवक का स्थान चरणों में।
शिक्षित होने के बाद ऊपर की ओर बढ़ते हुए द्विज, ब्राह्मण बनाता है और मुक्ति प्राप्त करके सहस्रार में स्थापित होता है।
पहले तीन को द्विज कहते हैं,
शुद्र चुंकि विद्यार्थी होता है इसलिए द्विज नहीं होता।

अब लोग कहते हैं OBC का वर्णन क्यों नहीं मिलता!
OBC, संस्कृत में OBC नहीं होता।
चार वर्ण ही होते है।
ये अंबेडकर का दिया हुआ है ये वो लोग हैं जिनको संविधान ने न जनरल का दर्जा दिया है और ना दलित का। इनको बीच में लटका रखा है।
अगर ओबीसी को रखना ही है तो अन्य बताए गये चार‌ वर्णों के अनुसार ही उसका स्थान भी शुद्र से प्रारम्भ होकर द्विज तक जाएगा।
कोई भी मनुष्य इन चार‌ वर्णों से बाहर नहीं है।

मनुस्मृति में सभी मनुष्य के लिए एक ही समाजिक व्यवस्था थी:
जन्म से शिक्षित होने तक शुद्र और फिर द्विज वर्ण आ जाते थे।

एक समूह और होता था जो असुर और राक्षस कहे जाते थे।
इनका स्थान चार वर्णों से बाहर पृथक पहचान दी गयी थी।
रावण ब्राह्मण होकर भी असुर और राक्षस श्रेणी में ही आता था।
और राजा बली राक्षस होते हुए भी द्विज कहलाए।
बाल्मीकि ब्राह्मण हुए।
परशुराम क्षत्रिय
विश्वामित्र ब्राह्मण।
मनुस्मृति के बारे में आलोचना कर के भ्रम फैलाते लोगों का मकसद हिन्दू धर्म को आघात पहुंचाना और अनुयायियों को भटका के पथभ्रष्ट करना है।
सरकार भी इस षड्यंत्र में पुरी तरह संलिप्त हैं।
संविधानिक रूप से हिन्दू धर्मशास्त्रों की पढ़ाई और शिक्षा की मनाही है।
जो शिक्षण संस्थान चला रहे हैं जैसे बाबा रामदेव, श्री रविशंकर अन्य वो अपने आर्थिक स्थिति और संसाधन के आधार पर चला रहे हैं, न शिक्षकों को सरकार वेतन देती है और न संस्थानों को चलाने के लिए वित्तीय पोषण ही करती है।
जब कि मदरसा और कान्वेंट का संपूर्ण खर्च निर्माण से लेकर निर्वहन से लेकर शिक्षकों के वेतन तक का संपूर्ण खर्च सरकार उठाती है।
समझ आया आपको ये धार्मिक षड्यंत्र

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