जब आदिवासी पुरुष बूढ़े हो जाते हैं, तो वे क्या करते हैं?
Автор: Tribal World
Загружено: 2025-11-07
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क्या आपने कभी सोचा है कि जब आदिवासी पुरुष बूढ़े हो जाते हैं, तो वे क्या करते हैं? 🌿 जहाँ आम लोग बढ़ती उम्र के साथ बेबस महसूस करते हैं, वहीं आदिवासी अपने बुढ़ापे को उत्सव की तरह जीते हैं। वे कहते हैं — “शेर मर जाएगा, लेकिन घास नहीं खाएगा।” 🦁 यानी जब तक जान है, तब तक आत्मसम्मान और ज़िंदगी का मज़ा भी है। इसलिए जब जनजाति के युवा शिकार पर निकलते हैं, तो बुज़ुर्ग अपनी लाठी के सहारे मैदान में उतरते हैं और कंचे खेलने लगते हैं। यह सिर्फ़ खेल नहीं, बल्कि जीने की इच्छा का प्रतीक है।
इन आदिवासी बूढ़ों को मांस मुफ़्त में मिलता है, इसलिए उन्हें काम करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। लेकिन फिर भी वे खुद को बेकार नहीं मानते। 💪 उनका कहना है — “जब तक गले में साँस है, तब तक मौत का इंतज़ार नहीं, ज़िंदगी का खेल खेलो।” यही Philosophy उन्हें खुश रखती है, और यही वजह है कि आदिवासी समाज में उम्र सिर्फ़ एक नंबर होती है। ❤️ अगर आपको भी ये Life Lesson अच्छा लगा, तो वीडियो को Like करें, Share करें और Comment करें — “Life Ends When You Stop Playing!” ⚡
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