Introduction of Philosophy- (दर्शनशास्त्र का परिचय)
Автор: Seekho with Saurabh
Загружено: 2023-08-14
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Introduction of Philosophy- (दर्शनशास्त्र का परिचय)- तत्त्वमीमांसा (Metaphysics), ज्ञानमीमांसा(Epistemology), मूल्यमीमांसा(Axiology), पाश्चात्य दर्शन (Western Philosophy) & भारतीय दर्शन (Indian Philosophy)
पाश्चात्य दर्शन में विज्ञान की प्रधानता रहने के कारण दर्शन और धर्म का संबंध विरोधात्मक माना जाता है. इसी कारण पाश्चात्य दर्शन में धर्म की उपेक्षा की गयी है. इसके विपरीत भारतीय दर्शन में सत्य के साक्षात्कार के लिए जप, तप, योग आदि साधनों की मदद लेनी पड़ती है। ये साधन उसे दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं और वह सत्य का साक्षात्कार करने में समर्थ हो पाता है. यह धार्मिक दृष्टिकोण है. पाश्चात्य परंपरा में दर्शन और धर्म को परस्पर भिन्न माना जाता है, लेकिन भारतीय परंपरा में दर्शन और धर्म सदैव अभिन्न रूप में साथ-साथ रहते हैं. इस प्रकार, पाश्चात्य दर्शन का दृष्टिकोण वैज्ञानिक है, जबकि भारतीय दर्शन का धार्मिक। पाश्चात्य विचारक दर्शन को नीतिशास्त्र, तर्कशास्त्र, प्रमाणशास्त्र, तत्वज्ञान, धर्मशास्त्र आदि कृत्रिम खंडों में विभक्त करके अध्ययन करते हैं. यह विधि विश्लेषणात्मक है. परंतु, भारतीय दर्शन में दूसरी पद्धति अपनायी गयी है।
भारतीय विचारक दर्शन को इसकी संपूर्णता में ग्रहण करते हैं. यहां दर्शन को तर्कशास्त्र, प्रमाणशास्त्र, नीतिशास्त्र आदि कृत्रिम विभागों में तोड़ कर अध्ययन नहीं किया जाता.
भारतीय परंपरा में नीतिशास्त्र, तर्कशास्त्र, प्रमाणशास्त्र, तत्वविज्ञान, धर्मशास्त्र आदि का अध्ययन एक साथ किया जाता है. इसलिए, इसकी विधि संश्लेषणात्मक कही जाती है. प्लेटो आदि कुछ विचारकों को छोड़ कर प्रायः सभी पाश्चात्य दार्शनिक इहलोक तक अपना अध्ययन सीमित रखते हैं। ये इहलोक के अलावा किसी अन्य लोक पर ध्यान नहीं देते। पाश्चात्य दर्शन इहलोक की ही सत्ता में विश्वास करता है, जबकि भारतीय दर्शन इहलोक के अतिरिक्त परलोक की सत्ता में भी विश्वास करता है. भारतीय विचारधारा में स्वर्ग और नरक की मीमांसा हुई जिनकी चार्वाक दर्शन को छोड़ कर सभी दर्शनों में मान्यता मिली है। पाश्चात्य परंपरा में भौतिकवाद का अधिक बोलबाला है. वहां खाने-पीने एवं मौज उड़ाने पर विशेष जोर दिया जाता है. आत्मा की अपेक्षा शरीर को अधिक महत्व दिया जाता है. इसके विपरीत, भारतीय दर्शन में आध्यात्मिकता की प्रधानता है। यहां शरीर की अपेक्षा आत्मा को, इंद्रिय सुख की अपेक्षा आत्मसंयम को और भौतिक सिद्धियों की अपेक्षा आध्यात्मिक मूल्यों को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. पाश्चात्य दार्शनिक भौतिकवाद से अधिक प्रभावित हैं, किंतु भारतीय विचारक अध्यात्मवाद होना पसंद करते हैं.
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