Maths Lesson Plan - Fraction - Class 5/6 || गणित पाठ योजना - भिन्न - कक्षा - 5/6 - भिन्न पाठ योजना
Автор: Bihar Teachers Toolkit
Загружено: 2025-07-31
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Maths Lesson Plan - Fraction - Class 5/6 || गणित पाठ योजना - भिन्न - कक्षा - 5/6 - भिन्न पाठ योजना || Dashamlav Ko Bhinn Me Badalna|| Bhinn Ka Ghatana || Lesson Plan For Maths || Lesson Plan For Teachers || Bhinn Ka Lesson Plan
पाठ योजना का अर्थ :
पाठ योजना की परिभाषा करते हुए बासिंग लिखते हैं- “पाठ संकेत उन उपलब्धियों की सूची का शीर्षक है, जिन्हें अध्यापक कक्षा में प्राप्त करना चाहता है। इनमें वे सब साधन एवं क्रियाएं भी आ जायेंगी जिनकी सहायता से वे उपलब्धियाँ प्राप्त की जाती हैं।" इस तरह पाठयोजना अध्ययन का लिखित कथन है। जिसमें वह नवीन पाठ से संबंधित समस्त बातों को अंकित कर देता है। इसके द्वारा यह ज्ञात् किया जा सकता है कि उनके शिक्षण के सामान्य उद्देश्य क्या है ? छात्रों का पूर्व ज्ञान क्या है ? एवं उसे अपने पाठ का प्रस्तुतीकरण किस प्रकार से करना है ? तथा छात्रों के ज्ञान का मूल्यांकन किस तरह करना है?
प्रो. ए.सी. बाइनिंग एवं डी.सी. बाइनिंग के अनुसार, “दैनिक पाठ योजना के निर्माण में उद्देश्यों को परिभाषित करना, पाठय-वस्तु का चयन करना तथा उस क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना तथा प्रस्तुतीकरण की विधियों का निर्माण करना मुख्य है।"
एल.बी. सैडस के अनसार, "पाठ-योजना वस्तुतः कार्य करने की योजना है। इसमें अध्यापक का कार्य दर्शन, दर्शन ज्ञान अपने विद्यार्थियों के संबंध में उनकी जानकारी, शिक्षा-लक्ष्यों का बोध, विषय-वस्तु का ज्ञान एवं प्रभावपर्ण विधियों का प्रयोग में उसकी योग्यता का समावेश होता है।
योकम तथा सिम्पसन के अनुसार, “शिक्षक अपनी पाठ्य-सामग्री एवं अपने छात्रों के बारे में जो कुछ भी जानता है, उन सबका प्रयोग पाठ-योजना में किया जाना जरूरी होता है।"
पाठ योजना की आवश्यकता तथा उद्देश्य :
(1) पाठ योजना द्वारा अध्यापक का कार्य-नियमित, नियोजित तथा व्यवस्थित होता है।
(2) इसके द्वारा पाठ छात्रों की समझ में सगमता से आ जाता है।
(3) अध्यापक आत्मविश्वास तथा दृढ़ता के साथ ६ मा में अध्यापन कार्य करता है।
(4) अध्यापक का समय तथा शक्ति नष्ट होने से बचती है।
(5) पाठ योजना का अनुकरण करने से असावधान शिक्षक भारी भूलों से बचेगा तथा सुयोग्य व्यक्ति की मौलिकता में कोई बाधा नहीं पड़ेगी।
(6) पाठ-योजना पाठ्य-विषय को सुसंगठित रूप प्रदान करती है जिससे उसके संचालन में विशेष सुविधा रहती है।
(7) यह प्रतिदिन के कार्य विषय-सामग्री के चयन, शिक्षण की विधियों तथा छात्रों की क्रियाओं के विषय में अध्यापक को विचार करने के लिए बाध्य करता है।
(8) पाठ-योजना अध्यापक को सर्वोत्तम शिक्षण-विधियों का चयन करने में मददगार होती है।
पाठ-योजना का महत्व :
पाठ-योजना का महत्व निम्न बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है-
1. लक्ष्यों की स्पष्टता- अमुक पाठ का शिक्षण यो प्रदान किया जा रहा है? जब तक अध्यापक स्वयं इस प्रश्न के उत्तर के प्रति स्पष्ट नहीं, तब तक वह अपने शिक्षण-कार्य में रुचि नहीं ले सकता। कोई भी कार्य करने से पहले व्यक्ति को उसका लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए। इसी तरह शिक्षण-कार्य शुरू करने से पहले अध्यापक को स्पष्ट रूप से ज्ञात होना चाहिए कि जिस पाठ को वह पढाने जा रहा है उस पाठ को पढ़ाने से उसे किन उद्देश्यों की प्राप्ति कानी है।
2. शिक्षण-विधियों का चयन- शिक्षण के उद्देश्य निश्चित कर लेने के बाद अध्यापक को उचित शिक्षण-विधियों के चयन की जरूरत होती है। कई नई पुरानी शिक्षण-विधियाँ प्रचलित हैं। जैसे- पाठ्य-पुस्तक विधि', भाषण-विधि, समस्या विधि, वाद-विवाद विधि, प्रोजेक्ट विधि आदि। कौनसी शिक्षण-विधि पाठ्य-विषय पढ़ाने के अनुकूल होगी इसका निर्णय पहले से लेना जरूरी है। यह निर्णय लेते समय अध्यापक को विद्यार्थियों की योग्यताओं तथा क्षमताओं का भी ध्यान रखना होता है एवं चुनी गई शिक्षण-विधि की कार्य-प्रक्रिया का भी ध्यान रखना होता है।
3. शिक्षण-सामग्री की व्यवस्था में मददगार- शिक्षण-विधि के अनुरूप अपने शिक्षण को प्रभावशाली एवं सुबोध बनाने हेतु अध्यापक को विभिन्न प्रकार के मददगार साधनों की आवश्यकता पड़ती है।
4. समय तथा शक्ति में बचत- ‘पाठ-योजना' के निर्माण से अध्यापक तथा छात्रों के समय में बचत होती है एवं उनकी शक्ति का भी अपव्यय नहीं होता। योजना के अनुसार समूचा शिक्षण-कार्य स्वाभाविक गति से चलता रहता है। अध्यापक को पता है कि उसे कब क्या करना है ?
पाठ-योजना के सोपान :
पाठ-योजना के व्यवस्थित निर्माण के लिए उसे कई सोपानों में विभाजित किया जाता है। शिक्षा शास्त्री हरबर्ट ने पाठ-योजना के निम्न पाँच सोपानों का वर्णन किया है-
1. भूमिका- इसमें विद्यार्थियों को नये पाठ हेतु तैयार करना होता है। 'ज्ञात से अज्ञात की तरफ' के शिक्षण सूत्र का अनुसरण करते हुए विद्यार्थियों के पूर्व ज्ञान का परीक्षण किया जाता है तथा उन्हें नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए अनुप्रेरित किया जाता है। पूर्व ज्ञान-परीक्षण के लिए अध्यापक विद्यार्थियों से सिर्फ तीन-चार प्रश्न पूछता है। पूर्व ज्ञान परीक्षण के बाद 'पाठ के उद्देश्य को व्यक्त किया जाता है। अतः इस सोपान में दो बातें निहित है-
(i) पूर्व-ज्ञान का परीक्षण.
(ii) नये पाठ के उद्देश्य की घोषणा
2. प्रस्तुतीकरण- उद्देश्य की घोषणा के बाद अध्यापक को विद्याथिया के सामने विषय-सामग्री पेश करनी होती है। इस सोपान में विद्यार्थियों को नया ज्ञान ग्रहण करने हेतु पर्याप्त मानसिक क्रिया करनी पड़ती है। इसलिए अध्यापक को विषय-सामग्री इस प्रकार पेश करनी चाहिए कि विद्यार्थी उसे सरलता तथा सहज
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