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पितृ एकादशी को अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए जरूर करें 1 काम,कई जन्मों के पितृदोष होंगे समाप्त

पितृ पक्ष की कथा

पितृ पक्ष की कहानी

पितृ पक्ष की प्राचीन कथा

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Автор: Aacharya Guruji

Загружено: 2020-09-06

Просмотров: 67479

Описание: पितृ एकादशी को अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए जरूर करें 1 काम,कई जन्मों के पितृदोष होंगे समाप्त
पितरों के पवित्र श्राद्ध समय पितृ पक्ष में भूलकर भी न करें ये काम,वरना जिंदगीभर होगा पछतावा
पितृ पक्ष में भागवत कथा सुने पितृ होंगे खुश,कई जन्मों के पितृ दोष होंगे समाप्त,बनेंगे बिगड़े हुए काम
पितृ पक्ष की यह प्राचीन कथा एक बार पूरी सुने,सभी पितरो को मिलेगी मुक्ति,भयंकर पितृदोष होंगे समाप्त🌈🔔🌈
#पितृ_पक्ष की कथा सुनने से सभी पूर्वज होंगे बहुत खुश,101पीढ़ियों को मिलेगा तुरंत मोक्ष,पितृदोष समाप्त
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पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों के निमित्त ब्राह्मण भोजन हेतु अपनी श्रद्धानुसार 5,11,21,51 ब्राह्मण के भोजन हेतु "आचार्य गुरुजी" को धन राशि देना चाहते हैं तो आप पेटीएम-9425660814/9893018124,गूगल पे-9893018124/ फोन पे-9893018124 अथवा बैंक अकाउंट से नगद दक्षिणा दे सकते हैं। Aacharya Dharmendra Shastri Saving A/C Number -63004313331 IFSC Code - SBIN0030382Bank - State Bank Of India Branch - Link Road-1,Shivaji nagar 6 No.stop, bhopal
शास्त्र कहते हैं कि पितृ अत्यंत दयालु तथा कृपालु होते
श्राद्ध-तर्पण से पितृ को संतुष्टि मिलती है। पितृगण प्रसन्न होकर संतान सुख, धन-धान्य, विद्या, राजसुख, यश-कीर्ति, पुष्टि, शक्ति, स्वर्ग एवं मोक्ष तक प्रदान करते हैं। लेकिन वे इतने नाजुक होते हैं कि छोटी सी गलती उन्हें आहत कर देती है। वे अपनी उपेक्षा से रूठ जाते हैं। अगर वे देखते हैं कि उनके वंशज सामाजिक बुराई में लगे हैं। बैर, क्रोध, नशा या अपशब्द से वे कुपित हो जाते हैं और शाप देकर जाते हैं। अत: ध्यान रखें कि ऐसा कोई काम ना करें जो उन्हें दुखी करें।
श्राद्ध विधि: गाय के दूध में पकाए हुए चावल में शक्कर, इलायची, केसर व शहद मिलाकर खीर बनाएं। गाय के गोबर के कंडे को जलाकर पूर्ण प्रज्वलित करें। प्रज्वलित कंडे को किसी बर्तन में रखकर दक्षिणमुखी होकर खीर से तीन आहुति दें। महाभारत के दौरान, कर्ण की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए। कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया, वह तो आहार तलाश रहे थे।इंद्र से पूछा किउन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया। तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उसने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया। तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सकें। कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया और 16 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया। तर्पण किया, इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा गया,पितृ पक्ष की लोककथा के अनुसार जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किंतु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी।पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा।वह बोली- 'आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी। दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी।' फिर उसने जोगे को अपने पीहर न्यौता देने के लिए भेज दिया।दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में जुट गई। उसने रसोई तैयार की। अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई। आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था।इस अवसर पर न जोगे की पत्नी ने उसे रोका, न वह रुकी। शीघ्र ही दोपहर हो गई। पितर भूमि पर उतरे। जोगे-भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो क्या देखते हैं कि उसके ससुराल वाले वहां भोजन पर जुटे हुए हैं। निराश होकर वे भोगे के यहां गए। वहां क्या था? मात्र पितरों के नाम पर 'अगियारी' दे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे।थोड़ी देर में सारे पितर इकट्ठे हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। फिर वे सोचने लगे- अगर भोगे समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता, मगर भोगे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी। यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई। अचानक वे नाच-नाचकर गाने लगे- 'भोगे के घर धन हो जाए। भोगे के घर धन हो जाए।'सांझ होने को हुई। भोगे के बच्चों को कुछ भी खाने को नहीं मिला था। उन्होंने मां से कहा- भूख लगी है। तब उन्हें टालने की गरज से भोगे की पत्नी ने कहा- 'जाओ! आंगन में हौदी औंधी रखी है, उसे जाकर खोल लो और जो कुछ मिले, बांटकर खा लेना।'बच्चे वहां पहुंचे, तो क्या देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े-दौड़े मां के पास पहुंचे और उसे सारी बातें बताईं। आंगन में आकर भोगे की पत्नी ने यह सब कुछ देखा तो वह भी हैरान रह गई।इस प्रकार भोगे भी धनी हो गया, मगर धन पाकर वह घमंडी नहीं हुआ। दूसरे साल का पितृ पक्ष आया। श्राद्ध के दिन भोगे की स्त्री ने छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाएं। ब्राह्मणों को बुलाकर श्राद्ध किया। भोजन कराया, दक्षिणा दी। जेठ-जेठानी को सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन कराया। इससे पितर बड़े प्रसन्न तथा तृप्त हुए।

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पितृ एकादशी को अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए जरूर करें 1 काम,कई जन्मों के पितृदोष होंगे समाप्त

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