शनिवार को शनि देव की कथा सुनने से भक्तों को परम आनंद की अनुभूति होती है
Автор: BHAKTI SAGAR2.0
Загружено: 2020-12-25
Просмотров: 20
Описание: रहा। एक ग्वाले ने उसे पानी पिलाया. राजा ने हो कर उसे अपनी अंगूठी दी। वह अंगूठी देकर राजा नगर को चल दिया, वहां अपना नाम उज्जैन निवासी वीका बताया। वहां एक सेठ की दूकान में उसने जल इत्यादि पिया. कुछ विश्राम भी किया। भाग्यवश सेठ की बड़ी बिक्री हुई। सेठ उसे खाना इत्यादि कराने खुश होकर अपने घर ले गया। वहां उसने एक खूंटी देखा, कि एक हार टंगा है, जिसे खूंटी निगल रही है। थोड़ी देर में पूरा हार गायब था। सेठ ने आने देखा कि हार गायब है। उसने समझा कि वीका ने ही उसे चुराया है। उसने वीका को कोतवाल के पास पकड़वा दिया। फिर राजा ने भी उसे चोर समझ कर हाथ पैर कटवा दिये। वह चौरंगिया बन गया। नगर के बाहर फिंकवा दिया गया। वहां से एक तेली निकल रहा था, जिसे दया आयी, उसने वीका को अपनी गाडी़ में बिठा लिया। वह अपनी जीभ से बैलों को हांकने लगा। काल राजा की शनि दशा समाप्त हो गयी। वर्षा काल आने वह मल्हार गाने लगा। वह जिस नगर में था, वहां की राजकुमारी मनभावनी को वह इतना भाया, कि उसने मन ही मन प्रण कर लिया, कि वह राग गाने वाले से ही करेगी। उसने दासी को ढूंढने भेजा। दासी ने बताया कि वह एक चौरंगिया है। परन्तु राजकुमारी ना मानी। अगले ही से उठते ही वह अनशन बैठ गयी, कि करेगी तो उसी से। उसे बहुतेरा समझाने भी जब वह ना मानी, तो राजा ने तेली को बुला भेजा, की तैयारी करने को कहा।फिर उसका राजकुमारी से हो गया। एक सोते स्वप्न में ने राजा से कहा: राजन्, देखा तुमने मुझे छोटा बता कर कितना दुःख झेला है। राजा ने उनसे क्षमा मांगी, प्रार्थना की , कि हे जैसा दुःख मुझे दिया है, किसी को ना दें। देव मान गये, कहा: जो मेरी कथा व्रत कहेगा, उसे मेरी दशा में कोई दुःख ना होगा। जो नित्य मेरा ध्यान करेगा, चींटियों को आटा डालेगा, उसके सारे मनोरथ पूर्ण होंगे। ही राजा को हाथ पैर भी वापस दिये। प्रातः आंख खुलने राजकुमारी ने देखा, तो वह आश्चर्यचकित रह गयी। वीका ने उसे बताया, कि वह उज्जैन का राजा विक्रमादित्य है। सभी । सेठ ने जब सुना, तो वह पैरों गिर कर क्षमा मांगने लगा। राजा ने कहा, कि वह तो का कोप था। इसमें किसी का कोई दोष नहीं। सेठ ने फिर भी निवेदन किया, कि मुझे शांति ही मिलेगी जब मेरे घर चलकर भोजन करेंगे। सेठ ने अपने घर नाना प्रकार के व्यंजनों से राजा का सत्कार किया। ही सबने देखा, कि जो खूंटी हार निगल गयी थी, वही अब उसे उगल रही थी। सेठ ने अनेक मोहरें देकर राजा का धन्यवाद किया, अपनी कन्या श्रीकंवरी से पाणिग्रहण का निवेदन किया। राजा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। कुछ सय राजा अपनी दोनों रानीयों मनभावनी र श्रीकंवरी को सभी उपाहार् सहित लेकर उज्जैन नगरी को चले। वहां पुरवासियों ने सीमा र ही उनका स्वागत किया। सारे नगर में दीपमाला हुई, व सबने खुशी मनायी। राजा ने घोषणा की , कि मैंने शनि देव को सबसे छोटा बताया था, जबकि असल में वही सर्वोपरि हैं। तबसे सारे राज्य में निदेव की पूजा र कथा नियमित होने लगी। सारी प्रजा ने बत मय खुशी र आनंद के थ बीताया। जो कोई शनि देव की इस कथा को सुनता या पढ़ता है, उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं। व्रत के दिइस कथा को अवश्य पढ़ना चाहिये।
Повторяем попытку...
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео
-
Информация по загрузке: