सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा ।।Aatmkathya Class 10th Chapter
Автор: SUCCESS FM2
Загружено: 2024-09-01
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सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्मकथा ।।Aatmkathya Class 10th Chapter
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जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता "आत्मकथ्य" में कवि अपने जीवन का संस्मरण प्रस्तुत करते हैं। कवि कहते हैं कि हर व्यक्ति का मन रूपी भौंरा अपनी कहानी सुना रहा है। आज असंख्य पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं, यानी उनकी जीवन लीला समाप्त हो रही है। इस प्रकार अंतहीन नील आकाश के नीचे हर पल अनगिनत जीवन का इतिहास बन और बिगड़ रहा है।
कवि कहते हैं कि उनके जीवन में कुछ सुखद पल आए जिनके सहारे वे वर्तमान जीवन बिता रहे हैं। उन्होंने प्रेम के अनगिनत सपने संजोये थे, परन्तु वे सपने मात्र रह गए, वास्तविक जीवन में उन्हें कुछ ना मिल सका। कवि अपनी प्रेयसी के सुन्दर लाल गालों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मानो भोर अपनी लाली उनकी प्रेयसी के गालों की लाली से प्राप्त करती है। परन्तु अब ऐसे रूपसी की छवि अब उनका सहारा बनकर रह गयी है क्योंकि वास्तविक जीवन वे क्षण कवि को मिलने से पहले ही छिटक कर दूर चले गए।
कवि कहते हैं कि अभी समय भी नहीं है कि वे अपनी आत्मकथा लिखें। उनका मन थका हुआ है और उनकी व्यथा अभी भी सोई हुई है। उन्हें लगता है कि उनकी आत्मकथा सुनकर किसी को कोई लाभ नहीं होगा। वे कहते हैं कि उनकी आत्मकथा एक भोली-भाली, सीधी-सादी कहानी है जिसमें कोई विशेष बात नहीं है।
कवि की आत्मकथा में उनके जीवन की सारी उतार-चढ़ावों की झलक मिलती है। वे एक भावुक और संवेदनशील व्यक्ति थे। वे प्रेम, जीवन और मृत्यु जैसे गूढ़ प्रश्नों पर विचार करते थे। उनकी आत्मकथा हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
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