Job oriented education शिक्षा का व्यवसायीकरण या व्यवसाय के लिए शिक्षा
Автор: SHIKHAR VANI
Загружено: 2021-07-16
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भारत की शिक्षा और शिक्षा पद्धति का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। तक्षशिला और नालंदा उन दिनों वैश्विक स्तर के शिक्षण संस्थान हुआ करते थे। आज जब हम विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने पर गौरव की अनुभूति करते हैं, उन दिनों भारत के इन शिक्षण संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र भी इसी प्रकार गौरव की अनुभूति किया करते थे। शिक्षा की गुरुकुल पद्धति हमारी सनातन संस्कृति की ही देन है। इसमें गुरु अपने शिष्य को शिक्षा तो देता ही था अन्य प्रकार की विधाओं का ज्ञान भी उन्हें उपलब्ध कराता था। इस प्रकार भारत विश्व गुरु होने की स्थिति में पूरे विश्व में पूजनीय बना रहता था। भारत के विश्व गुरु होने की बात हमारी इसी शिक्षा पद्धति के कारण होती थी। हम विश्व गुरु शस्त्रों के कारण नहीं शास्त्रों के कारण रहे हैं।
हम सब यह जानते ही हैं कि हम हजारों वर्षों तक कई संस्कृतियों के गुलाम रहे हैं। मुगल या इस्लामिक विचारों ने हम पर सबसे अधिक समय तक राज भी किया और मतांतर कराने का जोर भी दिया। आज संघ प्रमुख मोहन भागवत जब समान डीएनए की बात करते हैं तब उनकी बात के पीछे यही मतांतरण है जो धर्म परिवर्तन का विचार रहता है। यह लम्बा और अलग से बात करने का विषय है। दूसरी संस्कृति ईसाइयत, उसने भी हम पर सैकड़ों वर्षों तक राज किया है। यहां भी धर्मांतरण का जो खेल शुरू हुआ था वह आज तक चल रहा है। लेकिन भारत की सनातन संस्कृति को न तो इस्लाम ही प्रभावित कर पाया और ना ही ईसाइयत। इसका सबसे बड़ा कारण हमारी शिक्षा पद्धति ही रहा है। लार्ड मैकाले ने कॉन्वेंट पद्धति की शिक्षा प्रणाली देकर भारत की गुरुकुल और समस्त विधाओं वाली शिक्षा पद्धति को समाप्त करने का फॉर्मूला पेश किया। जिसमें शिक्षा का अपना एक तरीका तो है ही लेकिन छात्र के मानस पटल पर भारतीयता की अमिट छाप को धुंधला करने का उपक्रम भी है। यह कान्वेंट शिक्षा पद्धति भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की देखरेख और संरक्षण में फलती-फूलती रही है। हालांकि इसका मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से सरस्वती शिशु मंदिरों की शिक्षा प्रणाली के तौर पर पेश की हुई है। इसे प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली के समकक्ष चाहे ना भी माने लेकिन उसी प्रणाली का आज की जरूरतों के हिसाब से उत्तम संस्करण है।
भारत की आज शिक्षा प्रणाली के बारे में आजाद भारत के शिक्षाविदों ने रोजगार और गुणों से युक्त शिक्षा पद्धति प्रणाली तय करने का एक तरीका देश के सामने रखा था। उसमें शिक्षा की कीमत वसूलने की बजाए सेवा के बदले शुल्क लेने की मानसिकता को सामने रख था। तब से भारत की शिक्षा के बदले कम से कम शुल्क लेकर विद्या दान करने की परंपरा चलती आ रही है। लेकिन पिछले एक-दो दशकों में शिक्षा का व्यवसायीकरण होने लगा। जब से यह पांच सितारा शिक्षण संस्थान सर चढ़कर बोलने लगे हैं तब से न तो शिक्षक गुरु रहा और ना ही विद्यालय मंदिर। सुविधाएं और दिखावे की ऐसी होड़ मची है कि गुणवत्तायुक्त शिक्षा की बात तो लगभग तिरोहित ही हो गई। उच्च से उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाला व्यक्ति भी गुणों का जीरो स्कोर ही अपने पास अर्जित कर पाता है। यहां शिक्षा के बदले शुल्क की बात तो की जाती है लेकिन वह सामान्य व्यक्ति की क्षमताओं से इतनी अधिक होती है कि उसे शुल्क कहने की बजाय विशुद्ध व्यवसाय कहना ही उचित होगा। शिक्षा प्राप्त कराने के पीछे संस्कार युक्त शिक्षा और रोजगार प्राप्त करने वाली शिक्षा की तुलना में अब शिक्षा केवल रोजगार प्राप्त करने का संसाधन भर रह गई है। यह सब सहज भाव से चल ही रहा था तथा बड़े घराने इस शिक्षा व्यवसाय में उतर कर लाखों का लाभ अर्जित कर ही रहे थे लेकिन कोरोना महामारी ने इन सारी व्यवस्थाओं की पोल खोल दी।
कोरोना महामारी के इस भयावह काल में सरकारों की आंखों के सामने यह बात स्पष्ट दिखाई दे रही है कि जहां काम-काज रोजगार बंद है ऐसी स्थिति में इन पांच सितारा शिक्षण संस्थाओं को अपने नौनिहालों की भारी भरकम फीस भरने की स्थिति बड़ी संख्या में अभिभावकों के पास नहीं है। तब शासन ने यह आदेश पारित कर दिया कि केवल ट्यूशन फीस ही शिक्षण संस्थान वसूल कर पाएंगे। शासन के इस आदेश पर राज्यों के उच्च न्यायालय की मुहर भी लग गई। लेकिन पांच सितारा और शासन तंत्र पर जबरदस्त पकड़ रखने वाले यह शिक्षण संस्थान नित नए बहाने खोज कर छात्रों के पालकों पर धन वसूली का दबाव बनाते रहे हैं। जब अगले शिक्षण सत्र में राज्य की सरकारों ने फिर से ट्यूशन फीस वसूलने तक ही इनकी क्षमताओं को सीमित कर दिया सब इन शिक्षण संस्थानों के संचालकों द्वारा सड़क पर उतर कर सरकार के निर्णय का विरोध किया जाने लगा है। बड़ा चंदा देने वाले इन शिक्षण संस्थानों कि एक-दो दिन की हड़ताल का ही देश भर की शासन व्यवस्था पर बड़ा प्रभाव पड़ता दिखाई दे रहा है। जहां तीसरी कोरोना लहर आने की बात की जा रही है। उसका प्रभाव बच्चों पर होगा वैज्ञानिक ऐसी बातें कह रहे हैं, फिर भी सरकारें शिक्षण संस्थाओं को खोलने की चरणबद्ध योजना पेश कर रही है। इसका मतलब यह है कि शिक्षण संस्थान खोलने की आड में अभिभावकों से फीस के साथ अन्य प्रकार का शुल्क भी वसूल कर लिया जाए और महामारी की आड़ में फिर से शिक्षण संस्थानों को बंद कर दिया जाए। यह खेल शिक्षण संस्थाओं को लाभ तो दे सकता है लेकिन नौनिहालों को बड़ी जोखिम में डालने वाला है। इसलिए यह कहना उचित होगा कि इन पांच सितारा शिक्षण संस्थाओं ने न तो हमारी शिक्षा पद्धति को ही संस्कार युक्त और विश्व गुरु बनाने में योगदान दिया है। इनके दम पर हम विश्व गुरु बनने की क्षमता प्राप्त कर लेंगे इसमें भी संदेह है। ऐसे में महंगाई की मार से खाली हो रही अभिभावकों की जेब की रक्षा इन शिक्षण संस्थानों से तो जरूर करना चाहिए।
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