bhanpura chhatri||museum historical|| यशवंतराव होलकर छतरी||भानपुरा मध्य प्रदेश||होलकर छतरी
Автор: safal journey
Загружено: 2023-08-03
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भानपुरा स्थित यशवंतराव होलकरजी महाराज कि छत्री का इतिहास
इंदौर के महाराजा यशवंत राव होलकर जी की समाधि छत्री के बारे में भानपुरा मध्य प्रदेश में जिला मन्दसोर भानपुरा (म. प्र. ) ( मंदसौर जिला ) के वैभवशाली इतिहास का प्रतीक है इन्दौर के Maharaja यशवंतराव होलकर की छत्रि । छतरी का मतलब है:- -राजा महाराजाओं का भव्य समाधि स्थल । करीब -- 200 वर्ष पुरानी इन यशवंतराव होलकर की समाधि हैं। इसके बाद यशवंतराव होलकर के समाधिस्थल पर भी छत्री का निर्माण कराया गया। छतरी की खूबसूरती देखते ही बनती है। ये छत्रि मराठा और राजपूत स्थापत्य में निर्मित हैं। इनमें यशवंतराव होलकर के दिवंगत सदस्यों के साथ ही द्वारपाल और विभिन्न मूर्तियां भी हैं, जिनमें होलकर राज परंपरा की वेशभूषा की झलक भी दिखाई देती है। छत्रियों के शिखर, कंगूरे और मेहराबों पर आकर्षक शिल्प है। परंपरा के मुताबिक छत्रि में शिवलिंग की स्थापना की गई हैं, साथ ही जिनकी छत्री (यशवंतराव होलकर) है उनकी मूर्ति भी लगाई गई हैं।
यशवंतराव होलकर की छत्री का संरक्षण पुरातत्व विभाग करता है। यशवंतराव होल्कर की छतरी का प्रवेश द्वार की संरचना हिन्दू शैली के राजप्रासादों जैसी है। झरोखों का निर्माण दर्शनीय है। पत्थर के मेहराब और स्तंभों पर सुन्दर नक्काशी की गई है। और युग पुरुष की भांति 200 वर्षों का इतिहास अपने में संजोये हुए है। एकदम भव्य, सुन्दर, स्थापत्य कला का साक्षात् नमूना ! राजसी परिवार के
सदस्यों का अंतिम संस्कार करने के बाद वहां उनकी समाधि बना दी जाती थीं . इतना अवश्य है कि होल्कर परिवार के पास स्थापत्यकला में निपुण अनेकों कलाकार और मूर्तिकार थे जो इन छतरियों का निर्माण कर सकते थे जो शायद आजकल दुर्लभ हैं। यशवंतराव होल्कर की मृत्योपरान्त अंतिम संस्कार के लिये रेवा नदी पर आना और फिर यहीं नदी तट पर समाधि स्थल का बनाया जाना नितान्त स्वाभाविक ही है। ( भानपुरा मेरी जान) यहां यशवंतराव होल्कर की छतरी ही है, लगभग 5-6 फिट ऊंचे प्लेटफार्म पर गर्भगृह का निर्माण किया गया है जिसमें यशवंतराव होल्कर राज परिवार के दिवंगत सदस्यों की आदमकद प्रतिमायें लगी हुई हैं। वाह्य दीवारों पर भी लगभग मानव आकार की ही मूर्तियां उकेरी गई हैं.
यशवंतराव ने अकेले ही अंग्रेजो से युद्ध लड़ का भारत से बाहर खदेड़ना का फैसला किया। इसके लिए उन्हें बड़े लश्कर और गोला बारूद की जरुरत थी जिसके लिए उन्होंने भानपुरा (मंदसौर जिला) में कारखाना डाला और लश्कर के लिए दिन रात मेहनत करना चालू किया पर इतनी कड़ी मेहनत की वजह से 28 अक्टूबर 1806 में सिर्फ 30 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया। यशवंतराव होल्कर की रक्त पिपासु प्रवृत्ति बहुत प्रसिद्ध है। 28 अक्तूबर, 1806 ई. को जब यशवंतराव होलकर की मृत्यु हुई तब वह केवल 30 वर्ष के थे और इन्दौर से 432 किमी दूर भानपुरा (म.प्र.) (मंदसौर जिला) Jungalo में सिंधिया के पिंडारियों का मुकाबला करने के लिये पीतल की तोपें ढलवा रहे थे और बताया जाता है कि वह उस समय लगभग विक्षिप्तावस्था में थे।#travel #family #dailyvlog #traveling #travelvlog##madhyapradesh#safal journey
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