तू खुद की खोज में निकल तू किसलिए हताश है, श्री अमिताभ बच्चन की आवाज में एक जबरदस्त कविता है।
Автор: Deepak Raj Rajput
Загружено: 2017-05-31
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श्री अमिताभ बच्चन की आवाज में एक जबरदस्त कविता है।
तू खुद की खोज में निकल तू किसलिए हताश है,
तू चल, तेरे वजूद की समय को भी तलाश है, .
जो तुझसे लिपटी बेड़ियां; समझ ना इनको वस्त्र तू
ये बेड़िया पिघाल के; बना ले इनको शस्त्र तू
तू खुद की खोज में निकल...
चरित्र जब पवित्र है, तो क्यों है ये दशा तेरी?
ये पापियों को हक नहीं; कि लें परीक्षा तेरी!
तू खुद की खोज में निकल...
जला के भष्म कर उसे; जो क्रूरता का जाल है,
तू आरती की लौ नहीं; तू क्रोध की मशाल है,
तू खुद की खोज में निकल...
चुनर उड़ा के ध्वज बना; गगन भी कंपकपाएगा,
अगर तेरी चुनर गिरी; तो एक भूकंप आएगा
तू खुद की खोज में निकल;
तू किसलिए हताश है,
तू चल; तेरे वजूद की समय को भी तलाश है।
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