पराक्रमी वाल्मीकि जाति || Bahujan Sangam
Автор: Bahujan Sangam बहुजन संगम
Загружено: 2021-01-29
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हमारे देश में एक जाति ऐसी भी है जिसने हमेशा सनातन धर्म की रक्षा की, जो मुगलों से भी भिड़े और जिन्होंने आज़ादी की जंग में भी अपनी वीरता का लोहा मनवा दिया लेकिन आज वही शूरवीर जाति, अछूत का बिल्ला अपने सीने पर टांगे समाज में उपेक्षित है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं वाल्मीकि यानी मेहतर जाति की।
वाल्मीकि हिन्दू सनातन धर्म को मानने वाली एक जाति है जो दलित समुदाय के अंतर्गत आती है। इनका पारम्परिक काम मल-मूत्र को साफ करना और अन्य सफाई कार्य करना रहा है।
वाल्मीकि नाम महर्षि वाल्मीकि से लिया गया है जिन्हें ये समुदाय अपना गुरू मानता है। वाल्मीकि समुदाय के लोग भगवान वाल्मीकि जी को ईश्वर का अवतार मानते हैं तथा उनके द्वारा रचित श्रीमद रामायण तथा योगवासिष्ठ को पवित्र ग्रन्थ मानते हैं।
ऋषि परंपरा में सर्वाधिक प्रसिद्ध आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी। यह विडंबना ही है कि महर्षि वाल्मीकि को अपना मानने वाला और खुद को उनके नाम से संबोधित करने वाला ‘वाल्मीकि समुदाय’ आज समाज में हाशिये पर पड़ा है।
आज अगर देश आजाद है तो इसमें बहुत बड़ा योगदान वाल्मीकि योद्धाओं का भी है, आज अगर सनातन हिन्दू धर्म सुरक्षित है तो इसका एक कारण वाल्मीकि शूरवीर भी हैं। आज भी जब कहीं साम्प्रदायिक दंगा होता है तो वाल्मीकि भाई पूरे हिन्दू धर्म की ढाल बन जाते हैं। जरूरत इस बात की है कि हिन्दू धर्म की इस पराक्रमी कौम को समाज की मुख्यधारा में लाया जाए और उन्हें आगे बढ़ने के समान अवसर दिए जाएं।
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