भगवान शिव की तीसरी आंख का रहस्य | shiv ki tisri aankh | भगवान शिव के तीन नेत्र क्यों है?
Автор: brmhlife
Загружено: 2023-05-28
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शिव की तीसरी आंख को हिन्दू धर्म में त्रिनेत्र कहा जाता है और यह एक प्रतीक है जो उनके भगवानत्व और आद्यात्मिक गुणों को प्रकट करता है। यह रहस्यमय चरित्रित आंख कई विभिन्न पाठों और कथाओं में उपस्थित है और विभिन्न विवरणों और प्रकटनों के अनुसार इसका अर्थ अलग-अलग हो सकता है।
यहां कुछ मुख्य रूप से प्रस्तुत किए गए रूपों में शिव की तीसरी आंख के महत्वपूर्ण अर्थ हैं:
त्रिमूर्ति रूप: हिन्दू धर्म में, शिव का त्रिनेत्र त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, और महेश) का प्रतीक है और इसे उनके संसार के रचयिता, संभालक और संहारक स्वरूप को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। यह तीनों देवताओं की शक्तियों के प्रतीक रूप में भी देखा जा सकता है।
त्रिकाल दर्शन: शिव की तीसरी आंख उनकी आत्मा के अद्वितीयता और उसकी अनन्तता को प्रकट करती है। यह दर्शन उनकी अपार ज्ञान, जिसे त्रिकाल दर्शन कहा जाता है, को दर्शाता है। यह शिव के ज्ञान, भूत, वर्तमान, और भविष्य के लिए समान रूप से उपयुक्त होने का प्रतीक है।
संसार का विनाश: तीसरी आंख शिव की अद्भुत और भयानक शक्ति को प्रकट करती है, जो संसार का संहार करने के लिए होती है। इसे उनके तांडव नृत्य के दौरान देखा जाता है, जो सृष्टि की समाप्ति और नई सृष्टि की शुरुआत के साथ जुड़ा होता है।
अवधूत और सिद्ध: तीसरी आंख को अवधूत और सिद्ध पुरुषों के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। इसे उनकी अपरिवर्तित और अत्याधुनिक दृष्टि के प्रतीक के रूप में समझा जाता है, जो जगत की माया और मानवीय बंधनों से परे होती है।
ये अर्थ शिव की तीसरी आंख के कुछ मुख्य परिभाषित रूप हैं, लेकिन इसके अलावा भी अनेक विभिन्न अवधारणाएं और भावनाएं हो सकती हैं जो इस प्रतीक को घिरती हैं। इसे धार्मिक, दार्शनिक और काव्यात्मक पाठों में विस्तार से व्याख्यान किया जाता है।
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