(गीता-2) अर्जुन का संघर्ष कृष्ण से || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2022)
Автор: आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
Загружено: 2022-06-14
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वीडियो जानकारी: शास्त्र कौमुदी, 07.04.2022, ग्रेटर नॉएडा
Title: Arjun ka Sangharsh Krishna se || Acharya Prashant
📋 Video Chapters:
0:00 - Intro
0:53 - गीता अध्याय 1.38 और 1.39
1:30 - अर्जुन का मोह और धर्म का प्रश्न
2:50 - सत्य और असत्य की जटिलता
9:08 - अर्जुन के तर्क और कृष्ण का ज्ञान
28:35 - अर्जुन का मोह और धर्म का प्रश्न
38:40 - कृष्ण का ज्ञान और अर्जुन की स्थिति
50:02 - कृष्ण की भूमिका और अर्जुन का मार्गदर्शन
59:00 - कृष्ण का संदेश और अर्जुन का परिवर्तन
1:05:05 - अर्जुन का निर्णय और संघर्ष, गीता अध्याय 1.40
1:09:24 - अर्जुन का अंतर्द्वंद्व, गीता अध्याय 1.41
1:16:13 - अर्जुन की चिंता और वर्णसंकर, गीता अध्याय 1.42
1:17:20 - जातिधर्म और कुलधर्म, गीता अध्याय 1.43
1:19:50 - गीता अध्याय 1.44
1:21:00 - अर्जुन की चालाकी, गीता अध्याय 1.45
1:22:50 - धर्म और अधर्म का संघर्ष
1:28:35 - अर्जुन का निष्कर्ष, गीता अध्याय 1.46
1:32:00 - अर्जुन का निर्णय, गीता अध्याय 1.47
1:34:37 - समापन
प्रसंग:
यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।।
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन।।
अनुवाद: यद्यपि ये धृतराष्ट्र-पुत्र लोभ से अन्धे होने के कारण कुलनाशकारी दोष से उत्पन्न पाप को नहीं समझ रहे,
तो भी हे जनार्दन, कुलक्षय से होने वाले दोष को देख-सुन कर भी हम लोगों को इस पाप से
निवृत्त होने का विचार क्यों नहीं करना चाहिए?
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय १, श्लोक ३८-३९)
अर्जुन उवाच
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।।
कुल के नाश से चले आ रहे कुल के धर्म नष्ट हो जाते हैं और कुलधर्म के नष्ट होने से पाप समस्त कुल को दबा लेता है।
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय १, श्लोक ४०)
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः।।
हे कृष्ण, कुल में अधर्म का प्रभाव होने से कुल में कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं।
हे वार्ष्णेय, स्त्रियों के दूषित होने से वर्णसंकर संतान पैदा होती है।
श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय १, श्लोक ४१)
संगीत: मिलिंद दाते
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