जानिए क्यों भगवान शिव ने मगरमच्छ बनकर ली पार्वती की परीक्षा?
Автор: Artha
Загружено: 2023-07-12
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भगवान शिव के प्रति माता पार्वती का आत्म समर्पण विलछण है जब माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या कर रही थी, तब उनकी परीक्षा लेने भगवान शिव की आज्ञा से सप्तऋषि वहाँ प्रकट हुए और उन सप्तऋषियों ने माता के सामने शंकर जी के बारे में बहुत कुछ निंदास्वरूप बातें की। उनके सैकड़ों अवगुण गिनाये। परंतु इन सब बातों का पार्वती जी पर कोई प्रभाव नही पड़ा। उन्होंने दृढ़ निश्चय और संकल्प के साथ अपना तप जारी रखा। जब इस सब से भी बात नही बनी तो भगवान शंकर ने खुद परीक्षा लेने की ठानी। भगवान शंकर प्रकट हुए और माता पार्वती को वरदान देते हुए कहा कि.. "देवी पार्वती मैं तुम्हारी इस कठिन तपस्या से बहोत प्रसन्न हुआ और तुम्हें तुम्हारी तपस्या का फल देनें मैं यहाँ आया हूँ, किन्तु इस फल को प्राप्त करने के पश्चात जब तक पूरे विधि विधान से हमारा विवाह ना हो जाए तब तक स्मरण रहे की तुमसे कोई त्रुटि ना होने पाए, अन्यथा तुम्हारी तपश्या निष्फलित हो जायेगी और तुम्हें फिर कठिन तपस्या से गुजरना पड़ेगा। तब देवी पार्वती ने मुस्कुरा कर कहा "आपको पाने के लिए मैं हजारों बार हज़ारों वर्ष तक ऐसी तपस्या कर सकती हूँ मेरे प्रभु! पर मैं आपको प्राप्त करने में और विलंब नही करना चाहती हूँ इसलिए मैं आपके द्वारा दिये निर्देश को अवश्य स्मरण रखूँगी।"
भगवान शिव यह सुनकर मुस्कुराते हुए अदृश्य हो गए। और देवी पार्वती भी वहाँ से प्रस्थान करने ही वाली थी की उसी समय जहाँ माता पार्वती तप कर रही थी वहीं तालाब के पास एक मगरमछ ने एक लड़के को पकड़ लिया होता है, लड़का बचाने के लिए शोर मचा रहा होता है। और जैसे ही देवी पार्वती को लड़के की आवाज़ सुनाई दी वें उस ओर भागी। उन्होंने देखा मगरमच्छ लड़के को तालाब के भीतर खींच रहा था। की तभी लड़के ने माता को देखा और गुहार लगाते हुए देवी पार्वती से कहा- मेरी ना तो मां है न बाप, न कोई मित्र... माता आप मेरी रक्षा करें.. .
तब पार्वती जी ने मगरमच्छ से प्राथना करते हुए कहा- "हे ग्राह ! इस लडके को छोड़ दो।"
मगरमच्छ बोला- "दिन के छठे पहर में जो मुझे मिलता है, उसे अपना आहार समझ कर स्वीकार करना, मेरा नियम है।
ब्रह्मदेव ने दिन के छठे पहर इस लड़के को भेजा है। मैं इसे क्यों छोडूं ?"
पार्वती जी ने फिर विनती की- "तुम इसे छोड़ दो। बदले में तुम्हें जो चाहिए वह मुझसे कहो।"
मगरमच्छ बोला- "एक ही शर्त पर मैं इसे छोड़ सकता हूं। आपने तप करके महादेव से जो वरदान लिया, यदि उस तप का फल मुझे दे दोगी तो मैं इसे छोड़ दूंगा। "
पार्वती जी तैयार हो गईं। उन्होंने कहा- "मैं अपने तप का फल तुम्हें देने को तैयार हूं लेकिन तुम इस बालक को छोड़ दो।"
मगरमच्छ ने समझाया- सोच लो देवी, जोश में आकर संकल्प मत करो। हजारों वर्षों तक तुमने जैसा तप किया है वह देवताओं के लिए भी संभव नहीं। उसका सारा फल इस बालक के प्राणों के बदले चला जाएगा।
पार्वती जी ने कहा- मेरा निश्चय पक्का है। मैं तुम्हें अपने तप का फल देती हूं। तुम इसका जीवन दे दो। तप तो मैं पुन: कर सकती हूं, किंतु यदि तुम इस लड़के को निगल जाते तो क्या इसका जीवन वापस मिल जाता ?
फिर मगरमच्छ ने पार्वती जी से कहा जैसी तुम्हारी इच्छा देवी! और तपदान करने का संकल्प करवाया। तप का दान होते ही मगरमच्छ का देह तेज से चमकने लगा। और देखते ही देखते वह मगरमच्छ और वो लड़का दोनों ही एकसाथ अदृश्य हो गए। और वहाँ स्वयं शिव प्रकट हुए और देवी पार्वती की उनके प्रति ऐसी विलछण आत्म समर्पण देख अति प्रसन्न हुए। और उसी क्षण देवी पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार कर, उनसे विवाह करने के लिए पूरी तरह से राज़ी हो गए। और इस तरह
देवी पार्वती ने अपने विलक्षण आत्मसमर्पण से भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया।
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