जहाँ पगड़ी नहीं, परख बिकती है।
Автор: Factygum
Загружено: 2025-04-21
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एक बार एक व्यापारी राजदरबार में गया। उसने ₹5 की पगड़ी खरीदी थी, लेकिन उसे खूबसूरत रंगों से सजाया था। राजा ने पगड़ी देखकर दाम पूछा। व्यापारी ने कहा, "10 स्वर्ण मुद्राएं।" वज़ीर ने कहा, "यह तो ₹5 की है!" व्यापारी मुस्कराया और बोला, "मैं जा रहा हूँ, यह दरबार नहीं, वह सम्राट नहीं, जो इसे समझे।" राजा ने तुरंत पगड़ी खरीद ली। हैरान वज़ीर ने कारण पूछा। व्यापारी बोला, "तुम्हें पगड़ी की कीमत मालूम है, मुझे आदमी की कमजोरी—अहंकार। यही रुकावट है जीवन में प्रकाश के मार्ग पर।"
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