रामायण के पांच योद्धा आज भी जिंदा है | आप भी कर सकते हैं इनके दर्शन | suvichar motivational
Автор: CRICKET KI FIGHT (REACTION)
Загружено: 2024-03-14
Просмотров: 240
Описание:
your queries
ramayan video
Ramcharitmanas
ramayan chaupayi
ramayan ka rajasya
sita ji hanuman ji ram ji kahani
Ashok vatikA
sundarkand
veer hanuman video
rawan aur ram ji
ramayan me koun koun Amar hai
motivational video
suvichar
आज से 7 हजार वर्ष पूर्व। हालांकि पुराणों की धारणा कुछ अलग है। रामायण काल के वैसे तो कई लोग आज भी जिंदा हैं लेकिन यहां 5 के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
1. हनुमानजी : प्रभु श्रीराम के भक्त हनुमानजी आज भी जिंदा है। प्रभु श्रीराम और माता सीता की कृपा से वे एक कल्प तक इस धरती पर सशरीर ही रहेंगे।
2. विभीषण : भगवान श्री राम ने रावण के अनुज विभीषण को अजर-अमर होने का वरदान दिया था। विभीषण जी सप्त चिरंजीवियों में एक हैं और अभी तक विद्यमान हैं। विभीषण को भी हनुमानजी की तरह चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। वे भी आज सशरीर जीवित हैं।
3. काकभुशुण्डि : भगवान गरुड़ को रामकथा सुनाने वाले काकभुशुण्डि को उनके गुरु लोमश ऋषि ने इच्छामृत्यु का वरदान दिया था। दरअसल, लोमश ऋषि के शाप के चलते काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि को बाद में इसका पश्चाताप हुआ। तब उन्होंने काकभुशुण्डि को बुलाकर शाप से मुक्त होने के साथ ही राम मंत्र दिया और इच्छामृत्यु का वरदान भी दिया। कहते हैं कि कौए का शरीर पाने के बाद ही राममंत्र मिलने के कारण उस शरीर से उन्हें प्रेम हो गया और वे कौए के रूप में ही रहने लगे कालांतर में काकभुशुण्डि के नाम से पहचाने गए।
4. लोमश ऋषि : लोमश ऋषि परम तपस्वी तथा विद्वान थे। इन्हें पुराणों में अमर माना गया है। हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार ये पाण्डवों के ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर के साथ तीर्थयात्रा पर गए थे और उन्हें सब तीर्थों का वृत्तान्त बतलाया था। लोमश ऋषि बड़े-बड़े रोमों या रोओं वाले थे। इन्होंने भगवान शिव से यह वरदान पाया था कि एक कल्प के बाद मेरा एक रोम गिरे और इस प्रकार जब मेरे शरीर के सारे के सारे रोम गिर जाऐं, तब मेरी मृत्यु हो।
5. जामवंत : अग्नि के पुत्र जाम्बवन्त को भी प्रभु श्रीराम से कल्प के अंत तक जीवित रहने का वरदान मिला हुआ है। माना जाता है कि देवासुर संग्राम में देवताओं की सहायता के लिए जामवन्त का जन्म अग्नि के पुत्र के रूप में हुआ था। उनकी माता एक गंधर्व कन्या थीं।
सृष्टि के आदि में प्रथम कल्प के सतयुग में जामवन्तजी उत्पन्न हुए थे। जामवन्त ने अपने सामने ही वामन अवतार को देखा था। वे राजा बलि के काल में भी थे। राजा बलि से तीन पग धरती मांग कर भगवान वामन ने बलि को चिरंजीवी होने का वरदान देकर पाताल लोक का राजा बना दिया था। वामन अवतार के समय जामवन्तजी अपनी युववस्था में थे। जामवन्त को चिरंजीवियों में शामिल किया गया है।
6. मुचुकुन्द : मान्धाता के पुत्र मुचुकुंद त्रेतायुग में इक्ष्वाकु वंश के राजा थे। मुचुकुन्द की पुत्री का नाम शशिभागा था। एक बार देवताओं के बुलावे पर देवता और दानवों की लड़ाई में मुचुकुंद ने देवताओं का साथ दिया था जिसके चलते देवता जीत गए थे। तब इन्द्र ने उन्हें वर मांगने को कहा। उन्होंने वापस पृथ्वीलोक जाने की इच्छा व्यक्त की।
कहते हैं कि तब इन्द्र ने उन्हें बताया कि पृथ्वी पर और देवलोक में समय का बहुत अंतर है जिस कारण अब वह समय नहीं रहा और सब बंधू मर चुके हैं उनके वंश का कोई नहीं बचा। यह जान मुचुकंद दु:खी हुए और वर मांगा कि उन्हें सोना है। तब इन्द्र ने वरदान दिया कि किसी निर्जन स्थान पर सो जाए और यदि कोई उन्हें उठाएगा तो मुचुकंद की दृष्टि पड़ते ही वह भस्म हो जाएगा।
द्वापर में जब कालयवन और कृष्ण में द्वंद्व युद्ध का जय हो गया तब कालयवन श्रीकृष्ण की ओर दौड़ा। श्रीकृष्ण तुरंत ही दूसरी ओर मुंह करके रणभूमि से भाग चले और कालयवन उन्हें पकडऩे के लिए उनके पीछे-पीछे दौडऩे लगा।
श्रीकृष्ण लीला करते हुए भाग रहे थे, कालयवन पग-पग पर यही समझता था कि अब पकड़ा, तब पकड़ा। इस प्रकार भगवान बहुत दूर एक पहाड़ की गुफा में घुस गए। उनके पीछे कालयवन भी घुसा। वहां उसने एक दूसरे ही मनुष्य को सोते हुए देखा। उसे देखकर कालयवन ने सोचा, मुझसे बचने के लिए श्रीकृष्ण इस तरह भेष बदलकर छुप गए हैं:- 'देखो तो सही, मुझे मूर्ख बनाकर साधु बाबा बनकर सो रहा है।' उसने ऐसा कहकर उस सोए हुए व्यक्ति को कसकर एक लात मारी।
वह पुरुष बहुत दिनों से वहां सोया हुआ था। पैर की ठोकर लगने से वह उठ पड़ा और धीरे-धीरे उसने अपनी आंखें खोलीं। इधर-उधर देखने पर पास ही कालयवन खड़ा हुआ दिखाई दिया। वह पुरुष इस प्रकार ठोकर मारकर जगाए जाने से कुछ रुष्ट हो गया था।
उसकी दृष्टि पड़ते ही कालयवन के शरीर में आग पैदा हो गई और वह क्षणभर में जलकर राख का ढेर हो गया। कालयवन को जो पुरुष गुफा में सोए मिले, वे इक्ष्वाकुवंशी महाराजा मांधाता के पुत्र राजा मुचुकुंद थे। इस तरह कालयवन का अंत हो गया। कहते हैं कि उसके बाद मुचुकुंद पुन: हो गए और वे आज भी सोए हुए हैं।
Повторяем попытку...
Доступные форматы для скачивания:
Скачать видео
-
Информация по загрузке: