क्या Aliens ने Ellora की गुफाओं में Kailash Temple बनाया ? Full Documentary | Jay Raj Films
Автор: Jay Raj Films
Загружено: 2025-10-18
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कैलाश मंदिर के रहस्य और विस्तृत विवरण (Kailash Temple Mystery and Detailed Information)
कैलाश मंदिर, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद (छत्रपति संभाजीनगर) जिले में एलोरा की गुफाओं (गुफा संख्या 16) में स्थित है, दुनिया के सबसे अद्भुत और रहस्यमयी स्थापत्य चमत्कारों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे हिंदू धर्म में शिव के निवास, कैलाश पर्वत का प्रतिरूप माना जाता है।
1. मंदिर का इतिहास और निर्माण (History and Construction of the Temple)
• निर्माणकर्ता और काल: इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट वंश के पराक्रमी राजा कृष्ण प्रथम (शासनकाल: लगभग 756 ई. से 773 ई.) के शासनकाल में किया गया था।
• उद्देश्य: शिलालेखों के अनुसार, राजा कृष्ण प्रथम ने राष्ट्रकूटों की शक्ति, समृद्धि और हिंदू धर्म के प्रति समर्पण को प्रदर्शित करने के लिए इस 'वंड्रस' मंदिर का निर्माण करवाया था।
• निर्माण की कथा: एक लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, राजा के गंभीर रूप से बीमार होने पर उनकी रानी ने शिव से उनके स्वस्थ होने की मन्नत मांगी थी। मन्नत पूरी होने पर रानी ने एक भव्य मंदिर बनवाने का प्रण लिया और मंदिर के शिखर (शीर्ष) के दर्शन होने तक उपवास रखने का संकल्प लिया। चूंकि पारंपरिक विधि से मंदिर बनने में बहुत समय लगता, इसलिए राजा ने ऐसे शिल्पी को खोजने का आदेश दिया जो जल्दी मंदिर बना सके। तब एक शिल्पी ने पहाड़ को ऊपर से नीचे की ओर काटकर मंदिर बनाने का प्रस्ताव रखा, जिससे शिखर सबसे पहले बन गया और रानी का व्रत पूरा हो सका।
2. वास्तुकला का मुख्य रहस्य (The Main Architectural Mystery)
कैलाश मंदिर को दुनिया की सबसे बड़ी एकाश्मक (Monolithic) संरचना माना जाता है, और यही इसका सबसे बड़ा रहस्य है:
• टॉप-डाउन कार्विंग तकनीक (Top-Down Carving Technique): इस मंदिर को ईंटों या पत्थरों को जोड़कर नहीं बनाया गया, बल्कि इसे एक ही विशाल चट्टान (सह्याद्री पहाड़ियों की बेसाल्ट चट्टान) को ऊपर से नीचे की ओर (Top-Down) तराशकर गढ़ा गया है।
• पहले एक बड़े चट्टानी हिस्से को अलग किया गया, और फिर इसे किसी मूर्तिकला की तरह भीतर और बाहर से काटा गया।
• यह तकनीक आज के आधुनिक इंजीनियरिंग युग में भी एक चुनौती है।
• हटाए गए पत्थर का अनुमान: पुरातात्विक अनुमानों के अनुसार, इस विशाल मंदिर को बनाने के लिए लगभग 40,000 टन (या कुछ अनुमानों के अनुसार 2 लाख टन) से अधिक चट्टान को हटाया गया होगा।
• निर्माण का समय: निर्माण के समय को लेकर मतभेद हैं:
• आधिकारिक और ऐतिहासिक रिकॉर्ड इसे राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम के शासनकाल (17-18 वर्ष) में पूरा होने का संकेत देते हैं।
• आधुनिक विशेषज्ञ इस कार्य की विशालता और जटिलता को देखते हुए मानते हैं कि इसे पूरा करने में कम से कम 100 से 150 वर्ष लगे होंगे। यह समय का अंतर ही 'दैवीय हस्तक्षेप' या 'अज्ञात उन्नत तकनीक' के सिद्धांतों को जन्म देता है।
3. मंदिर की संरचना और भव्यता (Structure and Grandeur of the Temple)
• आकार: मंदिर 276 फीट लंबा, 154 फीट चौड़ा और लगभग 90 फीट (या 107 फीट) ऊंचा है।
• स्थापत्य शैली: इसमें मुख्य रूप से द्रविड़ वास्तुकला की झलक मिलती है, लेकिन साथ ही पल्लव और चालुक्य शैलियों का भी प्रभाव दिखता है।
• प्रमुख भाग:
• नंदी मंडप: मुख्य द्वार के अंदर एक खुला मंडप है, जिसमें भगवान शिव के वाहन नंदी बैल की विशाल प्रतिमा विराजमान है।
• विशाल स्तंभ: मंडप और मंदिर में विशालकाय स्तंभ हैं, और सामने दोनों ओर विशालकाय हाथी तथा स्तंभ बने हैं, जो पूरे मंदिर को उठाए हुए प्रतीत होते हैं।
• गर्भगृह: मुख्य मंडप के बाद गर्भगृह है, जहाँ शिवलिंग स्थापित है। यह मंदिर दो मंजिला दिखाई देता है।
• जटिल नक्काशी और मूर्तियाँ:
• मंदिर की दीवारों, स्तंभों और छतों पर बारीक नक्काशी की गई है।
• इसमें भारतीय महाकाव्यों रामायण और महाभारत के दृश्यों को मूर्तियों के रूप में उकेरा गया है।
• अन्य प्रसिद्ध मूर्तियों में कैलाश पर्वत को उठाते हुए राक्षस रावण (रावणानुग्रह), शिव का तांडव नृत्य (नटराज), और शिव-पार्वती की कथाएँ शामिल हैं।
4. मंदिर से जुड़े अन्य रहस्य (Other Mysteries Associated with the Temple)
• एलियंस का सिद्धांत: कुछ गैर-ऐतिहासिक स्रोतों में यह दावा किया जाता है कि इसका निर्माण इंसानों के बस की बात नहीं थी, इसलिए यह उन्नत तकनीक वाले एलियंस द्वारा बनाया गया होगा। हालांकि पुरातत्व और इतिहास में इसका कोई आधार नहीं है।
• भूमिअस्त्र की किंवदंती: एक लोककथा के अनुसार, रानी की मन्नत पूरी करने के लिए एक शिल्पकार को 'भूमिअस्त्र' प्राप्त हुआ था, जो पत्थर को भाप में बदल सकता था, जिससे निर्माण इतनी जल्दी पूरा हुआ। यह भी एक किंवदंती मात्र है।
• पुजारी का अभाव: एलोरा की गुफाओं में स्थित होने के कारण, यूनेस्को विश्व विरासत स्थल के रूप में, यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधीन है, और यहाँ सामान्य मंदिरों की तरह नित्य पूजा नहीं की जाती है, न ही कोई नियमित पुजारी होता है। यह एक संरक्षित स्मारक है।
कैलाश मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्राचीन भारतीय कारीगरों की रचनात्मकता, इंजीनियरिंग कौशल और धार्मिकता का एक ऐसा संगम है, जो इसे दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित वास्तुशिल्प चमत्कारों में से एक बनाता है।
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