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Politics, Part-5.3 | पूँजीवादी व्यवस्था के नकारात्मक और सकारात्मक परिणाम

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Автор: Left Front

Загружено: 2018-05-21

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Описание: राजनीति भाग - 05.3 पूँजीवादी व्यवस्था के नकारात्मक और सकारात्मक परिणाम ( ये तीसरा हिस्सा हैं)

पूँजीवादी राजनैतिक व्यवस्था के बहुत घातक परिणाम आते हैं, जो इस पूँजीवादी व्यवस्था में निश्चित होते हैं, इसलिए पूँजीवादी व्यवस्था, इनसे भटकाने के लिए धर्म का इस्तेमाल करते है, आम जनता को दिमागी रूप से ये एहसास कराते है कि इस सब के लिए में खुद जिम्मेदार हूँ, क्योंकि मेरा नसीब किस्मत खराब है और मैने पिछले जन्म में गलत काम किए होगे, जिसका फल भोग रहा हूँ , ये दिमाग़ी गुलामी की सोच धर्म से निकलती है, जिसमे सुपर पावर की परिकल्पना है । यही दिमागी खेल है, जो पूँजीवादी राजसत्ता ने पैदा किया ।
जबकि जितनी भी समस्याएं है, वो आर्थिक कमजोरी के कारण होते हैं, जिसका कारण सरकार होती है, राजसत्ता होती है जो पैसे का बटवारा करती है, समाज में सन्तुलन बनाती है । इसलिए ये सब कुछ राजसत्ता के हाथ में होता है । इसमे किसी धर्म, भगवान, अल्लाह, ईसा मसीह, किसी का कोई रोल नहीं है । पहले तो इस बात को अच्छी तरह से समझना है ।

ये तीसरा हिस्सा हैं इसलिए दसवे नंबर से शुरू है :-

10. पूँजीवादी व्यवस्था की आर्थिक नीतियाँ, आम जनता के विकास के हिसाब से नहीं बनती, पूँजीवादी व्यवस्था में पूँजीपतियो के मुनाफे के हिसाब से नीतियाँ बनाई जाती है, जिसमे बिल्कुल नंगे रूप से ये सुनिश्चित किया जाता है कि पूंजीपतियो के मुनाफे बढ़े और उनको बेताहासा सम्पति अर्जित हो, इसी आधार पर पूँजीवादी राजसत्ता आर्थिक नीतियाँ बनाती है, नई आर्थिक नीतियाँ इसका नंगा रूप है, जिसमें निजि पूँजीपतियो का देश के सभी संसाधनों पर कब्जा करने की सुनियोजित योजना है । इस बात को समझना है ।

11. पूँजीवादी व्यवस्था में यह बहुत ही महत्वपूर्ण काम होता है कि आम जनता को कुछ न देकर के बहुत कुछ दे दिया का अहसास करवाना, यह बहुत ही कला का काम होता है, हमारे देश में आज नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने जो भी पॉलिसी लेकर आई उसमे, सरकार ने कोई बहुत बड़ा बजट नहीं लगाया, अधिकतर योजनाएं इंश्योरेंस के माध्यम से है, जो देशी विदेशी निजि बड़ी इंश्योरेंस कंपनियों के लिए किया है, इनको बड़ा मुनाफा करवाया गया । इसके चक्कर में कुछ पॉलिसी निकालनी पड़ी, उज्जवला योजना में तो वो एक रुपया नही दे रहे है, सब्सिटी से बसूल ले रहे है, इतना बड़े झूठ को उन्हौने सच बना दिया । सब लोग कह रहे है कि मुफ्त में सिलेंडर दे रहे है । गरीबी रेखा ऊपर नीचे, कन्यादान, कभी सुकन्या, ये सब बहुत ही कम बजट की योजनाएं है ।
यह मजदूर, गरीब की न्यूनतम वेतन नहीं बढ़ाते, उसके श्रम की कीमत नहीं बढ़ाते, उसको परमानेन्ट नौकरी नहीं देते, ताकि उसको तीस हजार रुपये महीना मिलने लगे, नहीं उसको वेतन के रूप में नहीं देते, उसका जो लगभग एक प्रतिशत भी नहीं है, ये स्कीम में एहसान के रूप में देते हैं, ताकि वो हर बार एहसान दिखाकर ही उसका वोट लेते रहेगे । इस बात को अच्छी तरह से समझना है । हमें स्थाई समाधान के लिए सोचना है, जिसमे श्रम की कीमत बढ़ाना ही विकल्प है और इन आर्थिक नीतियों को पलटना जो ये आर्थिक असमानता पैदा करती है ।
12. मेहनतकश वर्ग की एकता खत्म कर देते है, वो जाति,धर्म, क्षेत्र, रंग, पहनावा, भाषा, उप जातियां, सैकड़ों टुकड़े कर दिये,
आज इस पूरी व्यवस्था को यही पालते पोषते है, यह बंटवारा की सफल नीति है, जिसको हजारों सालो से पूरी दुनिया में इस्तेमाल किया गया, आज भी मेहनतकश वर्ग को बॉटने और उनको उनके जीवन के असल मुद्दों से भटकाने का सबसे बड़ा तंत्र है, इसी से वो राजसत्ता पर कब्जा करते है, इसी से दिमागी रूप से गुलाम बनाये रखने के लिए इस्तेमाल करते है, यह पूरा विषय बहुत ही महत्वपूर्ण है और अच्छी तरह से इसको समझना है ।

13. पूँजीवादी व्यवस्था का एक और नकारात्मक हिस्सा हैं कि ये व्यवस्था छोटे और मध्यम वर्गीय पूंजीपति वर्ग को भी ख़त्म कर देती है । इसको हमारे साथियों को बहुत ही ध्यान से समझना है जब विदेशी कंपनियां किसी भी देश में आती है तब वो जो समान बेचती है वो बहुत ही कम दामों में बेचती है जिसके कारण उसके कंपटीशन में जो भी कंपनी है उनका सामान कोई नहीं खरीदता और वे बंद हो जाती है उसके बाद में फिर वही सामान सौ गुना मंहगा बेचते है और देश की जनता को खरीदना पड़ता है, क्योंकि अब कोई कंपटीटर नहीं है, इनके पास पूंजी बहुत ज्यादा होती है, बड़ा बाजार होता है, ये सारे रिटिलर, होल सेलर, सप्लायर, सबको खत्म कर देते है, इनका मुनाफा भी यही ले लेते हैं, आज फुटकर व्यापार में विदेशी कंपनियों के आने के बाद, ऑनलाइन मार्केटिंग शुरू होने के बाद, बाजारो में बैठे दुकानदारों का व्यापार घट गया और अभी और ज्यादा घटेगा । वही किसानों की फसलों की खरीदी का हाल है, सरकार नगद पैसा नहीं देती, ये नगद पैसा देते है, कम दामो में खरीदते है, किसान मजबूरन इनको ही बेचते है, यही बाजार पर कब्जा है, बाद में आम आदमी को कई गुना दामों में बिकता है जिससे वो हजारों करोड़ मुनाफा कमाते है । यह राजसत्ता का खेल है जो पूँजीवादी व्यवस्था के हाथ में है ।
इसको भी हमको समझना है ।

इसके आगे चौथा हिस्सा पढ़े ।

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