मां कामाख्या मंदिर गहमर (करहिया) ग़ाज़ीपुर
Автор: Niraj Mishra Present
Загружено: 2022-02-22
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गांव वाले मां कामाख्या को अपनी कुल देवी मानते हैं और देश सेवा को अपना सबसे बड़ा फर्ज. गहमर गांव के औसतन हर घर से एक पुरुष सेना में कार्यरत है. गांव के हर घर में फौजियों की तस्वीरें, वर्दियां और सेना के मेडल फौजियों के इस गांव की कहानी खुद ही बयान कर देती हैं. वर्तमान में गहमर के 12 हजार से अधिक लोग भारतीय सेना के विभिन्न अंगों में सैनिक से लेकर कर्नल तक के पदों पर कार्यरत हैं. जबकि 15 हजार से ज्यादा भूतपूर्व सैनिक गांव में रहते हैं. बताया जाता है कि सैन्य सेवा को लेकर गहमर की ये परम्परा प्रथम विश्व युद्ध से शुरु हुई. द्वितीय विश्व युद्ध में गहमर के 226 सैनिक अंग्रेजी सेना में शामिल रहे, जिसमें से 21 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुये थे.
कामख्या हर मोर्चे पर गहमर के अपने बेटों की रक्षा स्वयं करती हैं
देशभक्ति और सैन्य सेवा का ये जुनून अब गहमर वासियों के लिए परम्परा बन चुका है. गहमर की पीढ़ियां दर पीढ़िया अपनी इस विरासत को लगातार संभाले हुये हैं. गहमर के सैनिकों ने सन 1962,1965 और 1971 के युद्धों में भी भारतीय सेना के लिए अपने हौंसले और जज्बे के दम पर मोर्चा संभाला था. देश सेवा इस गांव के हर बांशिदे के लिए सबसे बड़ी गर्व की बात है. फौजियों के इस गांव की एक सच्चाई ये भी है कि आजादी के बाद से आज तक गहमर के सैनिक विभिन्न युद्धो में अपनी वीरता और शौर्यता का परचम तो फहराते रहे, लेकिन आज तक कोई भी शत्रु सेना उनका बाल भी बांका नही कर पायी. गहमर के लोगों की मान्यता है कि उनकी कुल देवी मां कामख्या हर मोर्चे पर गहमर के अपने बेटों की रक्षा स्वयं करती हैं. यूपी के गाजीपुर जिले के गहमर गांव को पूरे देश में फौजियों के गांव के रुप में पहचाना जाता है. गहमर का हर युवा होश संभालते ही देश सेवा के लिए सेना में भर्त्ती होने के लिए अभ्यास शुरु कर देता है. फौजियों के इस गांव में युवाओं का मकसद सैनिक बनकर देश सेवा ही होता है. पूरा गांव अपने इस जज्बे पर गर्व भी महसूस करता है.
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