Dhanteras Ki Katha || धनतेरस की कथा (धन्वंतरि जयन्ती) || Aryavart Ki Kahaniya
Автор: Aryavart Ki Kahaniya
Загружено: 2020-10-23
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Dhanteras Ki Katha | धनतेरस की कथा (धन्वंतरि जयन्ती) | आर्यावर्त की कहानियां
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कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी धन तेरस के रूप में मनाई जाती है। यह त्यौहार दीपावली के आने की शभ सूचना देता है।
इस दिन धन्वंतरि के पूजन का विधान है। कहते हैं कि इस दिन धन्वंतरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रकट हये थे। इसलिए धनतेरस को “धन्वंतरि जयन्ती" भी कहते हैं।
इस दिन घर के टूटे फूटे पुराने बर्तनों के बदले नये बर्तन खरीदते हैं। विशेषतया चाँदी के बर्तन खरीदना अत्याधिक शभ माना जाता है।
पूजा विधि-विधान :-धन तरेस के दिन एक मिट्टी का दिया बना ले। रात को घर की स्त्रियाँ दीये का पूजन करे तथा दीये में तेल डालकर उसमें चार बत्तियाँ एक कोड़ी में छेद करके दीया जला दे। जल का छींटा दे, रोली, चावल, चार सुहाली, गड, फल, दक्षिणा धूप रख दे। चार फेरी देकर बाद में दीया उठाकर अपने घर के आगे रख ले सुबह दिये मे से कोडी निकाल कर रख ले।
कथा :-एक दिन भगवान विष्णु विचरण करने के लिए लक्ष्मी सहित भूमण्डल पर आये। लक्ष्मी से बोले-कि मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ तुम उधर मत देखना। यह कह ज्योंही भगवान ने राह पकड़ी त्योंही लक्ष्मी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही दूर पर ईख का खेत मिला। वहीं लक्ष्मीजी ईख तोड़कर चूसने लगी। तत्क्षण भगवान लौट आये और यह देखकर लक्ष्मी पर क्रोधित होकर श्राप दिया-जिस किसान का यह खेत है 12 तक उसकी सेवा करों ऐसा कहकर भगवान क्षीर सागर चले गये और लक्ष्मी ने किसान के यहाँ जाकर उसे धन -धान्य से पूर्ण की दिया।
तत्पश्चात 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने पर हुई किन्तु किसान ने रोक लिया। भगवान जब कि लक्ष्मी को बुलाने आए तो किसान ने लक्ष्मी को नहीं तब भगवान बोले तुम परिवार सहित गंगा जाकर स्ना. इन कौड़ियों को भी जल में छोड़ देना। जब तक तमन तब तक मैं नहीं जाऊंगा। किसान ने ऐसा ही किया।
_जैसे ही उसने गंगा में कौड़ियां डाली वैसे ही गंगा चार चतुर्भुज निकले और कौड़ियां लेकर चलने को उद्यात तब किसान ने ऐसा आश्चर्य देखा गंगाजी से पूछा कि ये भुजाएं किसकी थीं। गंगाजी ने बताया कि-हे किसान! वे चारों हाथ मेरे ही थे, तूने जो कौड़ियां मुझे भेंट की हैं, वे किसकी दी हुई हैं ? किसान बोला- मेरे घर में दो सज्जन आए हैं, उन्होंने ही दी हैं। _तब गंगाजी बोलीं-तुम्हारे घर जो स्त्री है वह लक्ष्मी हैं और पुरुष विष्णु भगवान हैं। तुम लक्ष्मी को न जाने देना, नहीं तो पुनः निर्धन हो जाओगे। यह सुन जब वह घर लौटा तो भगवान से बोला कि-मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।
तब भगवान ने किसान को समझाया कि इनको मेरा श्राप था जो कि बारह वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही हैं। फिर लक्ष्मी चंचल होती हैं इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इस पर लक्ष्मीजी ने स्वयं कहा कि-हे किसान ! यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो सुनो। कल तेरस है, तुम अपना घर स्वच्छ रखो। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना, तब मैं तुम्हारे घर आऊंगी। उस समय तुम मेरी पूजा करना,
किन्तु मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। किसान ने कहा- ठीक है, मैं करूंगा। दूसरे दिन किसान ने लक्ष्मी के कथानुसार पूजन या। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी भांति वह वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा करने लगा। उस किसान ऐसा करते देखकर अन्य लोगों ने भी पूजा करना शुरु कर दिया।
कहानी कहने के बाद लप्सी तपसी की कहानी कही जाती है :-
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