🎶"मंगल भवन अमंगल हारी" श्रीरामचरितमानस की सुंदरकांड में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित |
Автор: Ram Bhakt Hanuman 🚩
Загружено: 2025-06-23
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मंगल भवन अमंगल हारी,
द्रबहु सु दसरथ अजिर बिहारी।
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम।
हो, होइहै वही जो राम रचि राखा,
को करि तर्क बढ़ावै साखा।
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम।
हो, धीरज धरम, मित्र अरु नारी,
आपद काल परखिये चारी।
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम।
हो, जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू,
सो तेहि मिलय न कछु संदेहू।
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम।
हो, जाकी रही भावना जैसी,
रघु मूर्ति देखी तिन तैसी।
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम।
हो, रघुकुल रीत सदा चली आई,
प्राण जाए पर वचन न जाई।
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम।
हो, हरि अनंत, हरि कथा अनन्ता,
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता।
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम।
मंगल भवन अमंगल हारी,
द्रबहु सु दसरथ अजिर बिहारी।
राम सिया राम, सिया राम जय जय राम।
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