05-अध्यात्मन्यायदीपिका{हिन्दी}-आ.पं.श्री.अनिलजी दुरुगकर,पुणे
Автор: Adhyatmyogi Veersagarji
Загружено: 2023-12-08
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05 अध्यात्म न्यायदीपिका - आ.पं.श्री.अनिलजी दुरुगकर, पुणे #jainism#Om
Friday 08-12-2023
प्रवचनसार गाथा सूत्र 80 के शिर्षक में लिखा है, की शुद्धोपयोग के अभाव में मोह का विनाश नहीं और मोह के विनाश के अभाव में निश्चयसम्यग्दर्शन नहीं ही होता। बारस अणुपेक्खा गाथा सूत्र 64 में बताया है की शुद्धोपयोग--धर्म्यध्यान & शुक्लध्यान दो प्रकारका होता है। प्रवचनसार गाथा सूत्र 14 में मुख्य श्रमणों के धर्म्यध्यान के वर्णन से तत्वार्थसूत्र एवं तत्वानुशासन में बताये हुए धर्म्यध्यान के स्वामि 4 से 7 गु. से 4 थे गुणस्थान योग्य जघन्य धर्म्यध्यान का निषेध तो नहीं ही होता। यह अपेक्षा भेद जो निकट भव्य जीव है उन्हे समझना ही होगा। अपेक्षाकृत कथन यह जिणवानी का प्राण है। --भो प्रभो महापद्म प्रथम तीर्थंकर भगवान का जीव अभी प्रथम नरक में है, वे श्रेणिक राजा चतुर्थ गुणस्थान वर्ती --जघन्य शुद्धोपयोग से प्रथमोपशम, क्षयोपक्षम एवं पश्चात क्षायिक सम्यग्दृष्टि हुए थे, इसका वर्णन प्रथमानुयोग में सर्व प्रसिद्ध होनें पर भी, अव्रती श्रावक को शुद्धोपयोग का अभाव कहना यह जिनाज्ञा का घोर उल्लंघन है। यह बात तो एसी हुई कि साक्षात कुंदकुंदाचार्य के प्रधान शिष्य तत्वार्थसूत्र में लिखते है-'मिथ्यादर्शनाविरती--बंध हेतवा:। और कोई जिनाज्ञा के विरुद्ध कहता है की मिथ्यात्व से बंध नहीं होता तो क्या वे तथाकथित महानुभाव जैन मार्गी है?????
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👉प्रवचनसार गा.सुत्र १०६-- आ.अमृतचंद्रजी अतत् भाव की सिध्दि एक ही द्रव्य मे बताते हुए हेतु देते है ---कि प्रदेशभेद नहीं है। इससे भी अन्योन्याभाव की सिद्धि प्रत्येक द्रव्य में हो जाती है।
👆 Also pl ref Chart No 26 - ---को न विमुह्यति शास्त्र समुद्रे---शास्त्राधार से सुक्ष्म भुल में सुधार कर लेना ही सम्यग्दर्शन रुपी रत्न की संरक्षण करना है।----ॐ नम:।
वस्तु स्वरुप समजने के लिए, द्रव्य गुण पर्यांय का स्वरुप अवश्य समझना चाहिए।
सर्वप्रथम
[१] द्रव्य-गुण- पर्याय स्वभाव/उत्पाद-व्यय-ध्रुव स्वभाव /प्रमाण- नय- निक्षेप स्वभाव
[२] ६ द्रव्य, पंचास्तिकाय आदि ग्रंथ
[३] समयसारादि अध्यात्मिक ग्रंथ यह क्रम माईल्ल धवल आचार्यादियों ने बताया है।
यह जिनाज्ञा के पालन से निश्चित ही अभिष्ट सिद्धि अति शिघ्रता से मिलती ही है। समयसारादि सभी शास्त्र श्रावक के लिये ही है, किन्तु स्वाध्याय के ३ वर्ग के सेवन का ही राजमार्ग बताया गया है। ॐ नम:।
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