पीथल और पाथल । महाराणा प्रताप विशेष । अरे घास री रोटी - pithle or Pathle।Maharana Partap Special
Автор: Desh Bhakti Geet
Загружено: 2020-05-26
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पीथल और पाथल - अरे घास री रोटी ।जद याद करूँ हल्दीघाटी नैना में रक्त उत्तर आवे-----
Are Ghas Ri Roti वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की गौरव गाथा
Maharana Partap special pithel or pathel
पीथळ और पाथळ । महाराणा प्रताप विशेष् ।
Hare ghas ri roti- Pithle aur pathale #Maharana_Partap_Special अरे घास री रोटी- जद याद करूँ हल्दघाटी....
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अरे घास री रोटी ही,
जद बन बिलावडो ले भाग्यो |
नान्हों सो अमरयो चीख पड्यो,
राणा रो सोयो दुःख जाग्यो ||
हूं लड्यो घणो, हूं सह्यो घणो,
मेवाडी मान बचावण नै |
में पाछ नहीं राखी रण में,
बैरया रो खून बहावण नै ||
जब याद करूं हल्दीघाटी,
नैणा में रगत उतर आवै |
सुख दुख रो साथी चेतकडो,
सूती सी हूक जगा जावै ||
पण आज बिलखतो देखूं हूं,
जद राजकंवर नै रोटी नै |
तो क्षात्र धर्म नें भूलूं हूं,
भूलूं हिन्वाणी चोटौ नै ||
आ सोच हुई दो टूक तडक,
राणा री भीम बजर छाती |
आंख्यां में आंसू भर बोल्यो,
हूं लिख्स्यूं अकबर नै पाती ||
राणा रो कागद बांच हुयो,
अकबर रो सपणो सो सांचो |
पण नैण करया बिसवास नहीं,
जद बांच बांच नै फिर बांच्यो ||
बस दूत इसारो पा भाज्यो,
पीथल ने तुरत बुलावण नै |
किरणा रो पीथल आ पूग्यो,
अकबर रो भरम मिटावण नै ||
म्हे बांध लिये है पीथल !
सुण पिजंरा में जंगली सेर पकड |
यो देख हाथ रो कागद है,
तू देका फिरसी कियां अकड ||
हूं आज पातस्या धरती रो,
मेवाडी पाग पगां में है |
अब बता मनै किण रजवट नै,
रजपूती खूण रगां में है ||
जद पीथल कागद ले देखी,
राणा री सागी सैनांणी |
नीचै सूं धरती खिसक गयी,
आंख्यों में भर आयो पाणी ||
पण फेर कही तत्काल संभल,
आ बात सफा ही झूठी हैं |
राणा री पाग सदा उंची,
राणा री आन अटूटी है ||
ज्यो हुकुम होय तो लिख पूछूं,
राणा नै कागद रै खातर |
लै पूछ भला ही पीथल तू !
आ बात सही बोल्यो अकबर ||
म्हें आज सूणी है नाहरियो,
स्याला रै सागै सोवैलो |
म्हें आज सूणी है सूरजडो,
बादल री आंटा खोवैलो ||
पीथल रा आखर पढ़ता ही,
राणा री आंख्या लाल हुई |
धिक्कार मनैं में कायर हूं,
नाहर री एक दकाल हुई ||
हूं भूखं मरुं हूं प्यास मरूं,
मेवाड धरा आजाद रहैं |
हूं घोर उजाडा में भटकूं,
पण मन में मां री याद रह्वै ||
पीथल के खिमता बादल री,
जो रोकै सूर उगाली नै |
सिहां री हाथल सह लैवे,
वा कूंख मिली कद स्याली नै ||
जद राणा रो संदेस गयो,
पीथल री छाती दूणी ही |
हिंदवाणो सूरज चमके हो,
अकबर री दुनिया सुनी ही ||
#कन्हैयालाल_सेठिया कृत इस रचना में मेवाङ शिरोमणि महाराणा प्रताप के कठिन पहाङी जीवन का सचित्र वर्णन है । कुँवर अमरसिंह के हाथ से घास की रोटी वनबिलाव द्वारा छीनकर भाग जाने पर प्रताप का हृदय द्रवित हो गया और उन्होनें अकबर की दासता स्वीकार करने के लिये अकबर को पत्र लिखा । अकबर ने अपने दरबार में रहने वाले पीथल को यह बात बताई कि तू जिस वीर शिरोमणि की वीरता और साहस का बखान करते नहीं थकता था, आज उसने मेरे चरणों में अपना शीश रख दिया है । यह सुनकर पीथल ने अकबर से कहा कि यह बात झूठी है और मेवाङी गौरव कभी नहीं झुक सकता । मैं प्रताप से पत्र के माध्यम से यह पूछूँगा कि यह बात सही है या गलत । अकबर ने खुशी में कहा जरूर पूछो । यह सुनते ही कवि पीथल ने ऐसा ओजस्वी पत्र प्रताप को लिखा कि उसे अपनी गलती का एहसास हो गया और उसने पीथल को चिट्ठी लिखी कि मेवाङी गौरव ऊँचा था और ऊँचा ही रहेगा । वापस पत्र मिला तो कवि पीथल की छाती गर्व से फूल गई और अकबर को अपने पैरों से जमीन खिसकती हुई नजर आ रही थी ।
#मीठी_बोली_मारवाङ_री
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