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Brihaspativar Vrat Katha in Hindi | गुरुवार व्रत कथा | Thursday Vrat - By Pandit Brahmanand Shastri

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गुरुवार व्रत कथा

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बृहस्पतिवार व्रत कथा

Автор: Pandit Brahmanand Shastri

Загружено: 2023-02-15

Просмотров: 93

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In this video, Pandit Brahmanand Shastri tells us "Brihaspativar vrat katha". Brihaspativar Vrat is dedicated to Lord Brihaspati, the guru or teacher of the gods. This vrat is observed on Thursdays and is believed to bring good luck, prosperity, and success in one's life.

So, if you want to know more about the Brihaspativar Vrat Katha and its significance, then this video is for you. Don't forget to like, share, and subscribe to our channel for more such informative and spiritual videos. Thank you for watching!

प्रणाम जय गुरुदेव आज हम बृहस्पतिवार व्रत कथा सुनेंगे एक बार की बात है कि जो देवराज इंद्र हैं,अपने आसन में विराजमान होकर के बड़े अहंकार में बड़ा। आनंद हो रहा था कि मुझे देखो स्वर्ग लोग का अधिपति बन रखा हूं। लेकिन संयोगवश उसी समय देव गुरु बृहस्पति वहां पधारे सभी देवता गण खड़े उठे उनके स्वागत में लेकिन देवराज इंद्र अपने अहंकार अहंकार वश उसी में डूबा रहा और उनके स्वागत पर खड़ा नहीं हो पाया। इस में बृहस्पति देव ने अपनाअपमान समझा और वहां से तुरंत चले गए। बृहस्पति देव के जाने के बाद सभी देवताओं ने देवराज इंद्र को समझाया और कहा कि आपने अच्छा नहीं किया। देव गुरु बृहस्पति नाराज हो गए हैं।उनके नाराज होने पर कुछ भी हो सकता है। इस बात को समझ करके देवराज इंद्र को बड़ा पश्चाताप हुआ और वह भी सोचने लग गई कि मैं इस गद्दी पर बैठा हूं तो देव गुरु बृहस्पति की वजह लेकिन मैंने इनको नाराज कर दिया है क्यों ना मैं उनसे क्षमा याचना मांगू।और उन्होंने कुछ देवताओं को साथ में लेकर के बृहस्पति देव के पास चले गए। लेकिन जैसे ही बृहस्पति देव को ये पता चला कि यह आ रहे हैं तो अपनी ज्योतिष विद्या के आधार पर, अपने मंत्रों की शक्ति के द्वारा वहां से गायब हो गए .....और जब देवराज इंद्र को वहां पर बृहस्पति देव नहीं मिले तो इनको बड़ा पशताचप हुआ और वहाँ बड़ा निराशा हुआ फिर वहां से वापस आ गए... मन ही मन विचार करने लग गए कि अब क्या होगा, इस बात का पता जब दैत्यों को चला तो इन्होंने सीधे इंद्रलोक परआक्रमण कर दिया.....। उस आक्रमण के कारण कई देवता गण मारे जा रहे थे और देव गणों का हार सुनिश्चित होने लग गई।....... इस चीज को देख कर के इंद्रदेव सीधा ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि भगवान अब क्या होगा तो ब्रह्मा जी ने कहा कि तुमने बृहस्पतिदेव को रुष्ट कर के खुद ही अपनी हार सुनिश्चित करली है।....... इसमें मैं क्या कर सकता हूं?........लेकिन मैं तुम्हें एक सलाह देता हूं। तुम एक विश्वनाथ के जो ब्राह्मण हैं जो त्वष्टा के पुत्र को अपना गुरु बना लो और उनको अपने साथ रखो जिसके कारण से तुम विजय प्राप्त कर सकते हो।..... देवराज इंद्र विश्वनाथ के पास गए और कहा कि मैं आपको गुरु बनाना चाहता हूं,लेकिन विश्वनाथ ने कहा,मैं अपने पिता की आज्ञा के बिना तुम्हें चेला नहीं बना सकता हूं।........ शिष्य नहीं बना सकता हूं......., फिर विश्वनाथ और देवराजइंद्र त्वष्टा के पास गए और त्वष्टा ने सारी बात को समझ लिया कि अगर मैं इसको गुरु नहीं बनाता हूं। अपने पुत्र को तो देवगन सब हार जाएंगे।.... इस बात को मध्य नजर रखते हुए त्वष्टा ने अपने पुत्र कोआज्ञा दी और विश्वनाथ उनके गुरु बन गए।... देवराजइंद्र ने इनको गुरु मान करके अपने साथ में रखा। इन के सानिध्य में युद्ध किया तो उन्होंने दैत्यों को हरा दिया... और उन्होंने देवताओं की जीत हो गई। फिर अपने आसन पर देवराज इंद्र विराजमान हो गए | ....त्वष्टा के ही पुत्र हैं। विश्वनाथ जी इन्होंने इनको एक उपदेश दिया कि आप एक बहुत बड़ा यज्ञ करो जिससे देवताओं को शक्ति मिलेगी....,लेकिन जो यह विश्वनाथ से इनके तीन सिर थे,एक सिर से यह एक मुह से यानी भोजन करते थे तो दूसरे मुंह से मदिरापान और तीसरे मुंह से सोमरस..... इन्होंने बहुत बड़ा यज्ञ किया देवराज इंद्र ने और जो गुरु जो थे - विश्वनाथ जी जो तीन मुंह वाले थे,.....इन्होंने इनके यज्ञ में पूजन विधि जो भी यज्ञ होना था जो उसका नियम था जो पूजा-पाठ होता था,वह विश्वनाथ जी की करते थे।..... एक बार की बात है, यज्ञ कई दिनों तक चला था तो बीच मेंअवसर पाकर के यानी विश्वनाथ को दैत्यों ने अकेला पाया और.. उससे कहने लगे कि तुम्हारी पिता तो भले ब्राह्मण हैं,लेकिन जो तुम्हारी माता है वह राक्षस कुल की हैं... तो तुम्हें कुछ आहुतियां राक्षसों के लिए दैत्यों के लिए भी देना थी जिससे उनका भी थोड़ा सा भला होगा।... यह बात समझ गया और इस विश्वनाथ जो गुरु बना हुआ था,देवराज इंद्र का तो इन्होंने यज्ञ में क्या किया?....कुछ आहुतियां दैत्यों के नाम से भी दे दी अपने धीमे स्वर में।..... अब क्याभेजूं को भी दे देते ...और जो और आहुतियां थी देवताओं की उनको जोर से उचारण करते थे जिससे जो देवराज इंद्र का यज्ञ था,......उसमें जो उनको बड़ी शक्ति मिलनी थी,वहां मिल नहीं पाए। इस चीज से हैरान थे देवराज इंद्र और उन्होंने पता लगाया.....और उसमें उन्होंने पाया कि यह जो हमारे गुरु हैं,विश्वनाथ कुछ आहुतियां दैत्यों को भी देते हैं....जिससे क्रोध में आकर के देवराज इनका सर अलग कर दिया, तीनो सिरो को...जब तीनो सिर कट गए तो जो इनका मदिरापान करता था जो सिर जब गिरा तो वह मधुमक्खी बन गई।... जो मुंह भोजन करता था,उससे तीतर बन गया। और जिस मुंह से जहां सोमरस पीते थे,उससे कबूतर बन गया।..... और देवराज इंद्र को ब्रहम हत्या लग गई क्योंकि इन्होंने अपने गुरु के सिर काट दी और देवराज इंद्र का स्वरूप ही बदल गया। ....सभी देवता गणों ने बहुत प्रयत्न किया। बहुत यज्ञ पूजा पाठ कई उपाय किए लेकिन इनका स्वरूप नहीं बदल पाया।..... तब ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्मा जी ने जो इनको ब्रहम हत्या लगी थी उसके चार भाग किए ....

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