खतड़ुवा एक पारम्परिक त्यौहार
Автор: Deep Pandey Garur
Загружено: 2025-09-18
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खीर संक्रान्ति (खतोड्डुवा)
भगवान सूर्य के कन्या राशि में प्रविष्ट होने पर शरद ऋतु आगमन हो जाता है भारत एक कृषि प्रधान देश है। पर्यावरण संरक्षणव पशु संरक्षण के बिना कृषि की कल्पना ही नहीं की जा सकती । आश्विन संक्रान्ति को मनाया जाने वाला यह पर्व खतड़ुवा पशुओं व पशुधन को समर्पित है। वर्षा ऋतु की समाप्ति पर जब शरदागमन होता है तब मौसम परिवर्तन के कारण पशुओं में कई प्रकार के रोग भी उत्पन्न होते की सम्भावना बढ़ जाती है, तभी ग्रामीण लोग पशुओं के आवागमन के मागों की सफाई करते हैं। पशुओं के आवागमन वाले मुख्य मार्गों के पास घास-फूस आदि इकट्ठा कर होलिका दहन की भाँति पुतले बनाये जाते हैं। सायंकाल के समय समस्त ग्रामीण जन एक शाखायुक्त डंडी में फूल, फल, काँस के फूल आदि लटकाकर और हाथ में जली हुई मशाल लेकर चौबटिया ( चार रास्तों का मिलन वाला स्थान)पर सामूहिक रूप से पहुँचते हैं। जली मशाल को पहले गौशाले में घुमाया जाता है फिर खतड़ुवा के पुतले में आग लगा दी जाती है। सभी लोग अपने घरों में लाये हुए भुने धान के चावल (भूटी खाज ), दाड़िम अखरोट व विशेष रूप से ककड़ी अग्निदेव को समर्पित करते हैं। अग्नि को अन्न, फल आदि समर्पित करने के बाद मार्ग के किनारों में भांग आदि के डंडों से अपने जानवरों के प्रस्थापित करते हुए अग्निदेव से उनकी रक्षा प्रार्थना की जाती है। इस अवसर पर सभी लोग अपने घरों से आये हुए फलों विशेष मे ककड़ी आदि को आपस में बाँटते हुए प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
इसके बाद इस आग को सेंका जाता है। और इस आग को घर लाकर सभी लोगों से सेकने को कहा जाता है,
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