जानिए पितरो की प्रेत योनि का सच | क्या गया में श्राद्ध करने के बाद तर्पण करना चाहिए ?
Автор: Daily Hindu Gyan
Загружено: 2022-09-15
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गया में नहीं कर सकें पिंडदान तो घर पर करें एकोदिष्ट श्राद्ध
Vdo Highlights:-
गयाजी में श्राद्ध कब करना चाहिए?
गया में श्राद्ध कैसे किया जाता है?
गया श्राद्ध के बाद क्या करना चाहिए?
गया जाने से पहले क्या करना चाहिए?
गयाजी जाने से क्या होता है?
गया में पिंडदान में कितना समय लगता है?
गया में श्राद्ध करने की विधि
गया में पिंडदान कहां होता है
गया में पिंडदान का खर्च 2022
पिंडदान की सामग्री
गया जी कब जाना चाहिए
श्राद्ध कब नहीं करना चाहिए
गया श्राद्ध पद्धति
पिंड दान कब करना चाहिए 2022
श्राद्ध करना क्यों जरूरी है?
हिन्दू श्राद्ध क्यों करते हैं?
श्राद्ध कब करनी चाहिए?
श्राद्ध कितनी पीढ़ी तक किया जाता है?
पितरों की आयु कितनी होती है?
मृत्यु के बाद पहला श्राद्ध कब करना चाहिए?
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Disclaimer: इस Video में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Daily Hindi Gyan channel इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें. Dhanyawaad!
पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व
डॉ. विवेकानंद बताते हैं कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। हालांकि हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जा सकता है। लेकिन, पितृपक्ष के 15 या 16 दिनों में श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण करने का अधिक महत्व माना जाता है। इन दिनों में पितर धरती पर किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के बीच में रहने के लिए आते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध करने के कुछ खास तिथियां भी होती हैं।
विधि
डॉ. विवेकानंद कहते हैं कि श्राद्ध पूरे विधि-विधान से करना चाहिए। मत्स्य पुराण के अनुसार, श्राद्ध की तिथि को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर सफेद वस्त्र धारण करें। दक्षिण दिशा में जल दें। पूरब की ओर मुख करके पितरों का मानसिक आह्वान करें। हाथ में तिल कुश लेकर बोलें कि आज मैं इस तिथि को अपने अमूक पितृ के निमित्त श्राद्ध कर रहा हूं। इसके बाद जल धरती पर छोड़ दें।
किसकी श्राद्ध कब करें
जिन लोगों के सगे-सबंधियों और परिवार के सदस्यों की मृत्यु जिस तिथि पर हुई है, पितृपक्ष में पड़ने वाली उस तिथि में उनका श्राद्ध करना चाहिए।
जिस महिला की मृत्यु पति के रहते हो गई हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में किया जाता है।
ऐसी स्त्री जो मृत्यु को तो प्राप्त हो चुकी किंतु उनकी तिथि नहीं पता हो तो उनका भी श्राद्ध मातृ नवमी को ही करने का विधान है।
आत्महत्या, विष, दुर्घटना आदि से मृत्यु होने पर मृत पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है।
पिता के लिए अष्टमी तो माता के लिए नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
अगर किसी कारणवश अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद न हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना उचित है।
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