लोकप्रिय गीत।भारत एक खोज।मेडिटेशन।भजन।वेद ज्ञान ब्रह्मांड की रचना किसने की।सृष्टि का निर्माता कौन है
Автор: KhulkeHassoNetwork
Загружено: 2024-07-08
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वर्ष 1988 में दूरदर्शन पर हर रविवार की दोपहर श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित एक सीरियल प्रसारित हुआ करता था 'भारत एक खोज', जो कि पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा 1946 में लिखित किताब 'डिस्कवरी ऑव इंडिया' पर आधारित था। इसके 53 एपिसोड्स में भारत के 5000 सालों के इतिहास का फिल्मांकन किया गया था। लेकिन यहां हम सीरियल की बात नहीं करेंगे। बल्कि इस लेख का उद्देश्य इस सीरियल के शीर्षक गीत "सृष्टि से पहले सत् नहीं था..." का महत्व सामने लाना है।
सनातन धर्म के सबसे आरम्भिक स्त्रोत, ऋगवेद के संस्कृतनिष्ठ सूक्तों से शुरू होने वाले, इस शीर्षक गीत में गूंजने वाली संस्कृत, बेहद क्लिष्ट होने के बावजूद कानों में रस घोलती है और सुनने वाले को एक अलग श्रव्य रस से परिचित कराती है।
लेखक व अनुवादक वसंत देव के बोल, संगीतकार वनराज भाटिया का संगीत और सुरीला समूह गायन वो विशेषताएं हैं जो इस गीत को समय और काल के परे लोकप्रिय बनाती हैं। पर ऐसा क्या खास है इसके बोलों में कि जब यह गीत कानों में गूंजता है तो सुनने वाले को एक अलग अनुभूति देता है?
क्या आप जानते हैं कि यह पूरा गीत दरअसल ऋगवेद के नासदीय और हिरण्यगर्भ सूक्तों का हिन्दी अनुवाद है। जिसमें सृष्टि की उत्पत्ति की शुरुआत का वर्णन है। जी हां, वो प्रश्न जिसका उत्तर विज्ञान आज तक ढूंढ रहा है।
हिन्दु धर्म में पूज्यनीय ऋगवेद को विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ होने का गौरव प्राप्त है। 5000 वर्ष पूर्व लिखे गए ऋगवेद के नासदीय सूक्त में सृष्टि की रचना से पहले का जो वर्णन है वो आज भी प्रासंगिक है। इसके रचयिता ऋषि प्रजापति परमेष्ठी माने जाते हैं। इस सूक्त के अनुसार सृष्टि की शुरूआत से पहले किसी तरह का कोई तत्व नहीं था, कोई अणु, परमाणु या पार्टिकल कुछ भी नहीं। आकाश, हवा, दिन, रात वगैरह भी नहीं थे। केवल अंधकार था, गहन अंधकार और शून्य, निर्वात, खालीपन। और तब, ब्रह्मतत्व या जिसे ईश्वर भी कहा जा सकता है, के मन में सृष्टि रचने की इच्छा उत्पन्न हुई और 'कुछ नहीं' से 'कुछ' का निर्माण होने की नींव पड़ी।
जहां एक तरफ यह सूक्त ईश्वर के होने को स्थापित करता है और कहता है कि सृष्टि की शुरूआत को दरअसल ईश्वर के अलावा कोई नहीं जानता जो कि प्रकाशकणों के रूप में सब जगह उपस्थित हैं, वहीं उसके होने पर सवाल भी खड़ा करता है। यह भी पूछता है कि वाकई में ऐसा कोई करने वाला है भी या नहीं जिसके बल पर सूर्य, पृथ्वी या यह पूरा बृह्मांड स्थिर गति से चल रहे हैं।
इस गीत का दूसरा खंड जो कि सीरियल के अंत में गूंजता है, ऋगवेद के हिरण्यगर्भ सूक्त का हि्न्दी अनुवाद है। सूक्त का प्रथम श्लोक ज्यों का त्यों गीत में लिया गया है। हिरण्यगर्भ (golden womb) का अर्थ है उजला गर्भ या अंडा या उत्पत्ति स्थान। सनातन धर्म में इसे सृष्टि की शुरुआत का स्त्रोत माना जाता है। इसी के ज़रिए सूर्य, चन्द्रमा, देवताओं और जीवात्मा का जन्म हुआ है। हिरण्यगर्भ को सर्वाधिक पूज्यनीय बताया गया है। उगते सूर्य को भी हिरण्यगर्भ का रूप माना गया है जिसकी लालिमा उसकी पूर्ण शुद्धता से भरी उत्पत्ति का प्रतीक है , इसलिए यहां उसकी उपासना की भी बात कहीं गई है।
धारावाहिक की केवल अंतिम कड़ी में पूरा गीत लिया गया है। बाकि कड़ियों में शीर्षक गीत के कुछ ही अंतरे सुनाई पड़ते हैं ('अगम, अतल जल भी कहां था' के बाद सीधे 'सृष्टि का कौन है कर्ता' से लिया गया है।)
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