डोकरा के देखेंव मैं सियानी
Автор: हमर गंवई गांव Hamar Ganvai Gaon
Загружено: 2025-09-17
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डोकरा के देखेंव मैं सियानी
हबीब तनवीर के निर्देशन में “गाँव के नाँव ससुरार मोर नाँव दमाद” नाटक के पहिली प्रस्तुति मोतीबाग, रायपुर में 1973 में होय रिहिस ।
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डोकरा के देखेंव वो दाई~ डोकरा के देखेंव मैं सियानी वो~~
गुनेला भइगे, डोकरा के देखेंव मैं सियानी~~
दाई ददा पइसा के लोभी~~~ बुढ़वा सन रचे बिहावे
डोकरा सन रचे बिहा~वे~ रे भाई~~
हांसथे सब पारा परोसी~~~ अउ थोरको नई लजावे
अउ चिटको नई शरमा~वे~ रे भाई~~
दुखिया के सुनले वो दाई~ दुखिया के सुनले ये कहानी वो~~
गुनेला भइगे, डोकरा के देखेंव मैं सियानी~~
पंच अउ राजा महराजा~~~ अउ येकर करो बिचारे
अउ येकर करो बिचा~रे~ रे भाई~~
ये भव सागर अगम भरे हे~~~ अउ कइसे उतरव पारे
अउ कइसे उतरव पा~रे~ रे भाई~~
कइसे के काटंव दाई~ कइसे के काटंव जिंदगानी हो~
गुनेला भइगे, डोकरा के देखेंव मैं सियानी~~
बुढ़ूवा के देखेंव वो दाई~ बुढ़ूवा के देखेंव मैं सियानी वो~~
गुनेला भइगे, बुढ़ूवा के देखेंव मैं सियानी~~
ये बुढ़ूवा के देखेंव मैं सियानी~~
गायन शैली : छत्तीसगढ़ी लोक संगीत की शैली
गीतकार : गंगाराम शिवारे
रचना के वर्ष : 1972-73
गायन : फ़िदाबाई मरकाम, कौशल्या बाई सोनवानी, भुलवा राम यादव
हारमोनियम – देवीलाल नाग
तबला – अमरदास मानिकपुरी
क्लेरिनेट – जगमोहन कामले
मजीरा – मजीद खान
ढोलक – गणेश प्रसाद
संस्थान/लोककला मंच : नया थियेटर
डोकरा के देखेंव दाई | छत्तीसगढ़ी गीत | पारंपरिक लोक शैली
छत्तीसगढ़ी संस्कृति और परंपरा से जुड़ा सुंदर लोकगीत —
“डोकरा के देखेंव वो दाई, डोकरा के देखेंव मैं सियानी”
इस गीत में गाँव की बोली, भाखा और अपनापन झलकता है।
इसे सुनकर आपको छत्तीसगढ़ के गोंड़ा-गुड़ाखुशबू, माटी की महक और अपनापन महसूस होगा।
छत्तीसगढ़ी लोकगीत | परंपरा | संस्कृति | माटी की महक
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