रामचरितमानस बालकाण्ड नित्य पाठ, भाग 10, दोहा सं .26 से 29,
Автор: Raghunath madhavam
Загружено: 2023-08-18
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गुरुदेव ने बताया कि रामचरितमानस का पाठ सभी सनातन धर्म के अनुयायियों को करना चाहिए, इसकी हर एक चौपाई मंत्र है रामचरितमानस का पाठ करें और इस को जीवन में उतारने का प्रयास करें जीवन सफल होगा, रामचरितमानस का बालकांड दोहा संख्या 26 से 29,
दोहा.
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।
जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु ॥ २६ ॥
चौपाई -
चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भए नाम जपि जीव बिसोका ॥
बेद पुरान संत मत एहू। सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥
ध्यानु प्रथम जुग मखबिधि दूजें। द्वापर परितोषत प्रभु पूजें ॥
कलि केवल मल मूल मलीना। पाप पयोनिधि जन जन मीना ॥
नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला ॥
राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता ॥
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू ॥
कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू ॥
दोहा-
राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल ॥ २७ ॥
चौपाई -
भायँकुभायँ अनख आलसहूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा ॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती ॥
राम सुस्वामि कुसेवकु मोसो। निज दिसि दैखि दयानिधि पोसो ॥नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला ॥
राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता ॥
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू। राम नाम अवलंबन एकू ॥
कालनेमि कलि कपट निधानू। नाम सुमति समरथ हनुमानू ॥
दोहा-
राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल।
जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल ॥ २७ ॥
चौपाई -
भायँकुभायँ अनख आलसहूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा ॥
लोकहुँ बेद सुसाहिब रीतीं। बिनय सुनत पहिचानत प्रीती ॥
गनी गरीब ग्रामनर नागर। पंडित मूढ़ मलीन उजागर ॥
सुकबि कुकबि निज मति अनुहारी। नृपहि सराहत सब नर नारी ॥
साधु सुजान सुसील नृपाला। ईस अंस भव परम कृपाला ॥
सुनि सनमानहिं सबहि सुबानी। भनिति भगति नति गति पहिचानी ॥
यह प्राकृत महिपाल सुभाऊ। जान सिरोमनि कोसलराऊ ॥
रीझत राम सनेह निसोतें। को जग मंद मलिनमति मोतें ॥
दोहा-
सठ सेवक की प्रीति रुचि रखिहहिं राम कृपालु।
उपल किए जलजान जेहिं सचिव सुमति कपि भालु ॥ २८(क) ॥
हौहु कहावत सबु कहत राम सहत उपहास।
साहिब सीतानाथ सो सेवक तुलसीदास ॥ २८(ख) ॥
चौपाई -
अति बड़ि मोरि ढिठाई खोरी। सुनि अघ नरकहुँ नाक सकोरी ॥
समुझि सहम मोहि अपडर अपनें। सो सुधि राम कीन्हि नहिं सपनें ॥
सुनि अवलोकि सुचित चख चाही। भगति मोरि मति स्वामि सराही ॥
कहत नसाइ होइ हियँनीकी। रीझत राम जानि जन जी की ॥
रहति न प्रभु चित चूक किए की। करत सुरति सय बार हिए की
जेहिं अघ बधेउ ब्याध जिमि बाली। फिरि सुकंठ सोइ कीन्ह कुचाली ॥
सोइ करतूति बिभीषन केरी। सपनेहुँ सो न राम हियँहेरी ॥
ते भरतहि भेंटत सनमाने। राजसभाँरघुबीर बखाने ॥
दो. प्रभु तरु तर कपि डार पर ते किए आपु समान ॥
तुलसी कहूँ न राम से साहिब सीलनिधान ॥ २९(क) ॥
राम निकाईं रावरी है सबही को नीक।
जों यह साँची है सदा तौ नीको तुलसीक ॥ २९(ख) ॥
एहि बिधि निज गुन दोष कहि सबहि बहुरि सिरु नाइ।
बरनउँ रघुबर बिसद जसु सुनि कलि कलुष नसाइ ॥ २९(ग) ॥
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